Ranchi: भारत में जितने कोल पावर प्लांट हैं और जितने पाइपलाइन में हैं. अगर वो सभी पावर प्लांट सुचारू रूप से शुरु कर दिये जायें, तो निश्चित रूप से 2030 तक बिजली का उत्पादन 300 जीडब्ल्यू हो जाएगा. जो 2018 में सिर्फ 200 जी डब्ल्यू था. लेकिन साथ ही साथ भारत को करीब 8.4 लाख जिंदगियों से समझौता करना पड़ेगा. मेरीलैंड विश्वविद्यालय, अरबन इमीशन इन्फो, मैसकहूसेट्स एमहर्स्ट एंड टेक्सस टेक विश्वविद्यालय और यूएस की नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेस की रिसर्च में यह बात सामने आयी है.
रिसर्च के मुताबिक, 2018 में ही कोल पावर प्लांट के प्रदूषण की वजह से 78000 लोगों की मौत हुई. इसी साल इन सभी विश्वविद्यालयों ने मिलकर यह रिसर्च किया था. रिपोर्ट में कहा गया कि पाइपलाइन में पड़ी कोल प्लांट अगर शुरू कर दिए जाएंगे तो मौत का आंकड़ा सलाना 1,12,000 हो जाएगा. वहीं इन कारखानों की वजह से 8,44,000 मौत हो सकती है.
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बिहार,बंगाल,ओडिशा और झारखंड में ज्यादा प्लांट लगने वाले हैं
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, कारखानों से फैले प्रदूषण से लोगों में हर्ट अटैक, हृदय से जुड़ी बीमारियां, obstructive pulmonary disease, सांस संबंधी बीमारी, डायबीटीज और लंग्स कैंसर जैसी बीमारियां लोगों के बीच बढ़ेंगी. ओडिशा और झारखंड में जितने कोल पावर प्लांट हैं. वो बढ़कर दोगुने होने वाले हैं. इससे प्रदूषण भारी मात्रा में बढ़ेगा और 50 फीसदी मौत के आंकड़े पर असर पड़ेगा.
बिहार और बंगाल के अलावा ओडिशा और झारखंड में ज्यादा प्लांट लगने वाले हैं. इसलिए इन दोनों राज्यों पर ज्यादा खतरा है. लेकिन ओडिशा और झारखंड के कोल पावर प्लांट की वजह से बिहार और बंगाल के बॉर्डर से सटे क्षेत्र के लोगों पर भी खतरा बढ़ेगा. इसपर रोक तभी लग सकती है. जब घर में कोयला का इस्तेमाल बंद हो और सरकार की तरफ से वायू प्रदूषण के लिए कड़े और नए गाइडलाइन जारी किए जाए. बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में 75 फीसदी आबादी घर में खाना बनाने के लिए सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल करते हैं. वहीं उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान दो तिहाई घर में सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल करते हैं.
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