Ranchi : एक साल से ज्यादा होने को हैं, लेकिन झारखंड के सूचना आयोग की कुर्सियां खाली हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रही तनातनी में आयोग पिस रहा है. सूचना आयोग में खाले पड़े पदों को भरने के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो बार पीआईएल भी दायर की गयी. लेकिन कोई फायदा अभी तक नहीं हुआ है. आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा आयुक्तों के 10 पद स्वीकृत हैं. कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी के 9 मई को रिटायर होने के बाद आयोग में कोई मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त नहीं है.
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जनवरी 2020 में सीआइसी और 5 आयुक्तों के लिए रिक्ति निकली थी
मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार ने जनवरी, 2020 में मुख्य सूचना के एक पद और सूचना आयुक्तों के 5 पदों के लिए आवेदन मंगाये थे. करीब 400 लोगों ने आवेदन दे रखा है. लेकिन नियुक्ति को लेकर सरकार ने ठंडा रुख अख्तियार कर रखा है. पहले चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष के सदस्य होने की बाध्यता रोड़ा बन रही थी. लेकिन महाधिवक्ता राजीव रंजन से राय लेने के बाद इसका भी रास्ता निकला. बावजूद इसके सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की जा रही है. दूसरी तरफ से सूचना आयोग के अध्यक्ष और सदस्य विहीन होने से अभी तक करीब 8000 अपीलवाद के साथ-साथ 70 से ज्यादा शिकायतवाद लंबित हैं.
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सत्ता और विपक्ष की राजनीति की भेंट चढ़ा सूचना का अधिकार
सूचना आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का मामला सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई की भेंट चढ़ गया है. नेता प्रतिपक्ष नहीं होने की सूरत में सरकार की तरफ से कहा गया कि बिना नेता प्रतिपक्ष के ही सूचना आयुक्तों की नियुक्ति होगी. एजी से राय भी ली गयी. एजी राजीव रंजन ने कार्मिक विभाग को भेजी गई अपनी राय में कहा कि बिना नेता प्रतिपक्ष के भी सूचना आयुक्तों की नियुक्ति हो सकती है. उन्होंने लोकायुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि नेता प्रतिपक्ष की घोषणा नहीं होने की स्थिति या एक निश्चित अवधि तक नेता प्रतिपक्ष के अनुपस्थित रहने की हालत में सबसे ज्यादा सदस्यों वाले विपक्षी दल का नेता बैठक में उनकी जगह ले सकता है. विपक्ष के इस नेता को 3 सदस्यीय चयन कमेटी में नेता प्रतिपक्ष की जगह दी जा सकती है.
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मुख्यमंत्री होते हैं चयन समिति के अध्यक्ष
ज्ञात हो कि चयन समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं. उनके अलावा नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होते हैं. महाधिवक्ता की इस राय के बाद कार्मिक विभाग ने विधानसभा सचिव से नेता प्रतिपक्ष के बार में जानकारी मांगी थी. पूछा था कि क्या नेता प्रतिपक्ष की घोषणा हो चुकी है. यदि नहीं हुई है तो सबसे बड़ा विपक्षी दल कौन है. इसके नेता कौन हैं. इन सभी सवालों का जवाब मिलने के बाद भी सूचना आयोग में नियुक्ति लंबित है. कार्मिक की तरफ से एक बार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बैठक भी बुलायी गयी, लेकिन सत्ता और विपक्ष की लड़ाई के बीच इस बैठक को रद्द कर दिया गया.
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इस निकम्मी सरकार से अब उम्मीद भी नहीं है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करे। अब देखिए ना लोकायुक्त का निधन हो गया पता नहीं अब लोकायुक्त कि भी नियुक्ति होगी भी की नहीं।