Ranchi: रांची जिले का हेहल अंचल के खाता नंबर-119 में आनेवाले प्लॉट काफी विवादों में घिरे हुए हैं. रांची की अनीता शर्मा का दावा है कि यह जमीन उनकी है. इस बाबत उन्होंने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया था. साथ ही एक प्रेस नोट उनकी तरफ से लगातार…को भेजा गया है. लगातार उनके पक्ष को हूबहू छाप रहा है.
अनीता शर्मा का कहना है कि विवाद ग्राम बाजरा, थाना-पंडरा टीओपी, जिला-रांची के अंतर्गत खाता नंबर-119 से संबंधित है. यह जमीन जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव, पिता-जुगल किशोर नाथ शाहदेव से उनके दादा ससुर देवकी नंदन मिश्र उर्फ शर्मा ने वर्ष 1936 में निबंधित पट्टा सं -3083 के द्वारा विधिसम्मत तरीके से प्राप्त किया था. तब से अब तक हमलोगों का लगातार… दखल-कब्जा सुचारू रूप से चला आ रहा है.
1932 का खतियान प्रकाशित होने के समय खाता- 119 की सभी जमीन कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव को उनके पिता जुगल किशोर नाथ शाहदेव से विधिवत् तरीके से मिली. चूंकि जमीन जमींदार की थी, इस वजह से खतियान प्रकाशित होने से पूर्व सर्वे में जमीन गैरमजरूआ अंकित की गयी थी. उस वक्त जमींदारी उन्मूलन की कोई चर्चा ही नहीं थी. जमींदार ही जमीन का सर्वेसर्वा हुआ करते थे.
जमींदारों को उनके अधीन किसी भी जमीन पर रैयत बैठाना, रैयत उठाना, बंदोबस्ती करना या जमीन वापसी कराना सभी अधिकार प्राप्त था. जमींदारी उन्मूलन के बाद यह अधिकार सरकार में निहित हो गया. 1934, 1935 में मुकदमा सं-276 में पारित आदेश द्वारा खाता नंबर- 113 में वर्णित सभी प्लॉट व जमीन जिनमें प्लॉट संख्या-83, 183, 270, 360/1348 और 485 शामिल हैं, खाता संख्या-119 में समायोजित हो गये.
उसी दरम्यान यानी सन् 1935 एवं 1936 तथा 1932 का खतियान प्रकाशित होने के उपरांत जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव ने निबंधित बंदोबस्ती डीड संख्या 486, दिनांक 10.02.1936 और डीड संख्या 487, दिनांक 14.02.1936 द्वारा देवकी नंदन मिश्र को की. देवकी नंदन मिश्र ने निबंधित कबूलियतनामा का निष्पादन बंदोबस्ती को स्वीकार करते हुए किया. इसके बाद कविराज देवकी नंदन मिश्र जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव के बतौर रैयत काबिज हुए और समय-समय पर रसीद के बावत जमींदार को लगान अदा करते रहे.
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दोनों निबंधित बंदोबस्ती/कबूलियतनामा के कुछ महीने के बाद 12.09.1936 को जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव ने निबंधित विक्रय पत्र के द्वारा कविराज देवकी नंदन मिश्र उर्फ शर्मा के नाम से खाता 119 के अंतर्गत सभी जमीन का पूरा मालिकाना हक दे दिया. उक्त खरीदगी के बाद देवकी नंदन मिश्र उर्फ शर्मा खाता नं-119 के रैयत से जमीन मालिक बन गये. यह मालिकाना आज तक बरकरार है. जमींदारी उन्मूलन के बाद देवकी नंदनन मिश्र उर्फ शर्मा के नाम से राजस्व कार्यालय में जमाबंदी कायम हुई.
इस पर मालगुजारी रसीद भी निर्गत होती रही है. लेकिन 1980 और वर्तमान समय के बीच उसी खाता 119 की कुछ जमीन की खरीद-बिक्री बगैर देवकी नंदन मिश्र की अनुमति के तत्कालीन जमींदार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव के सुपुत्र जय कुमार नाथ शाहदेव ने निराधार तरीके से भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को निबंधित केवाला के तहत बेच दिया गया.
ये भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने जाली, बनावटी व फर्जी तरीके से उक्त जमीन के कुछ अंशों की खरीद बिक्री बगैर देवकी नन्दन मिश्र के जानकारी और अनुमति के कर लिया, जो न तो न्यायसंगत है और न ही कानूनन प्रभावी व वैध है. इन सभी बातों की जानकारी देवकी नंदन मिश्र के उत्तराधिकारियों को हाल ही में मिली, जब उन्होंने अपने दखल-कब्जे वाली जमीन पर निर्माण कार्य प्रारंभ किया.
1936 में जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव ने खाता-119 के अन्तर्गत सभी जमीन को निबंधित विक्रय पट्टा द्वारा बेच ही दिया था, तो जमींदार और उनके द्वारा किसी भी व्यक्ति का उस जमीन पर हक, दावा व स्वामित्व पूरे तरीके से खत्म हो गया और इस पर कानूनी तरिके से हर प्रकार का अधिकार सिर्फ देवकी नंदन मिश्र को और उनके उत्तराधिकारियों को है. इसके अलावा बिहार लैंड रिफॉर्म एक्ट-1950 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार जमींदारी उन्मूलन की घोषणा के बाद कटऑफ डेट 01.01.1946 रखी गयी थी.
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इस आशय से कि यदि कोई जमींदार बदनीयती अथवा गलत तरीके से अपने अधिकार की किसी भी जमीन को किसी अन्य रैयत या व्यक्ति के नाम बंदोबस्त करता है, तो वह सभी कार्य संदेहास्पद समझा जायेगा. बीते समय में सर्वसाधारण एवं सरकार के जानकारी में यह भी बात आयी कि अवैध तरीके से विक्रय पत्र हुकुमनामा के द्वारा बहुत सी सरकारी जमीन/गैरमजरूआ जमीन का खरीद बिक्री/दाखिल-खारिज धड़ल्ले से हो रहा है.
इस वजह से 08.06.2017 को झारखंड राज्य में सभी जिलों के उपायुक्तों को लिखित सूचना जारी की गयी थी कि ऐसे सभी गैरकानूनी कार्य को न सिर्फ रोका जाये, बल्कि जांच के बाद ही किसी भी विक्रय पत्र, जमाबंदी एवं पंजी में फेरबदल करने का प्रमाण मिलने के बाद निष्पादित करना सुनिश्चित करें. इसके अलावा भी जमींदार के पुत्र जय कुमार नाथ शाहदेव ने यह हवाला देते कि उक्त खाता 119 की कुछ जमीन उन्हें 1935 में अपने पिता द्वारा प्राप्त सादा हुक्मनामा से हासिल हुई, कुछ जमीन को 1960 में भी निबंधित विक्रय पट्टा संख्या- 6459, बुक नंबर-1, भौलुम नंबर-44, पेज नं0-142 से 148 24.11.1960 के द्वारा पद्मावती देवी को बेचा गया.
यह जमींदार पिता द्वारा की गयी गलती/अवैध हस्तांतरण की पुनरावृत्ति है. अगर यह मान भी लिया जाय कि जमींदार कुमार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव ने अपनी संतान में से एक पुत्र को उक्त खाता 119 की सभी जमीन अथवा कुछ जमीन सादा हुक्मनामा के द्वारा बंदोबस्त कर दिया था तो फिर बंदोबस्ती के बाद पुत्र द्वारा सादा अथवा निबंधित कबूलियतनामा का कोई उल्लेख क्यों नही है. बल्कि जमींदार एवं उनके पुत्र का यह कथन कि खाता-119 की जमीन उन्हें सादा हुक्मनामा से मिली, उन्हें सिरे से झूठा साबित करती है.
एक जमींदार पिता ने अपने ही पुत्र को जिसे उसके मरणोपरांत पूरा अधिकार मिलनेवाला था, बतौर रैयत क्यों काबिज किया. यह भी उल्लेखनीय है कि जब विक्रय पट्टा सं-3083, दिनांक 12.09.1936 के द्वारा जमींदार जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव ने खाता 119 की सभी जमीन को बेच दिया, तो उसी खाता की जमीन के कुछ अंश को फिर से उनके अथवा उनके बेटे द्वारा बेचा जाना सरासर गैरकानूनी और अवैध है. 1936 के बाद खाता 119 की जमीन बेचने योग्य कोई अधिकार ना तो जमींदार के पास शेष रह गया और ना ही उनके पुत्र के पास.
अर्थात जय कुमार नाथ शाहदेव, पिता-जगदीश प्रसाद नाथ शाहदेव द्वारा 24.11.1960 को दस्तावेज संख्या-6459 का निष्पादन करना आरंभतः शून्य (Void Abinitio) होता है. दिनांक 24.11.1960 को दस्तावेज संख्या-6459 का अस्तित्व में होना ही अवैध है, तो उस दस्तावेज के आधार पर बाद में किया गया सभी विक्रय पट्टा को एक सिरे से अवैध समझा व माना जायेगा. 07.02.1983 में दस्तावेज संख्या-1104 के द्वारा पद्मावती देवी ने बाजरा कैलाशपुरी सहकारी गृह निर्माण समिति को जो विक्रय पट्टा निष्पादन किया, वह अवैध व निष्प्रभावी है.
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अवर निबंधक रांची के कार्यालय के अभिलेखागार में वॉल्यूम 36, 23 और 25 जो क्रमशः सन् 1945, 1966, एवं 1969 से सबंबंधित है, में छेड़छाड़ करके करीब 180 डीड के वास्तविक क्रेता-विक्रेता का नाम बदल कर अपने पारिवारिक संबंधी और छेड़छाड़ में सहयोगियों के नाम से फर्जी तरीके से फर्जी लिखावट से नयी डीड बनाकर उपरोक्त वॉल्यूम में संलग्न करके और तत्कालीन कर्मचारियों की मिलीभगत से अभिलेखागार में रख दिया और बाद में सभी की सत्यापित प्रतिलिपि निकाल के अपना दावा करने लगे.
ये भी सत्य उजागर हुआ कि इन अभियुक्तों और उनके सहयोगियों द्वारा पूरा का पूरा मूल वॉल्यूम 23 और 25 को बदल कर नया वॉल्यूम 23 और 25 अभिलेखागार में फेरबदल कर रख दिया गया. इस संदर्भ में तत्कालीन जिला अवर निबंधक राहुल चौबे ने कोतवाली थाना में एफआईआर दर्ज कराया था. डीड धारक का नाम राम दयाल साहू, पिता-सुकर महतो, 21.05.1966 को बुक नंबर-1, वॉल्यूम नंबर-25, पेज नंबर-100 से 102 के तहत फर्जी डीड पाने के उपरांत छानबीन के क्रम में वॉल्यूम 25, वर्ष 1966 और वॉल्यूम 23, वर्ष 1969 में भारी अनियमितता पाने के कारण कोतवाली थाना में फिर से एफआईआर दर्ज कराया गया.
तत्कालीन निबंधन महानिरीक्षक बाल मुकुंद झा ने संदिग्ध वॉल्यूम को फोरेंसिक जांच के लिए नेशनल फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री, कोलकाता भेजा. फोरेंसिक रिपोर्ट में छेड़छाड़, फर्जीवाड़ा की पुष्टि हुई. अभिलेखागार में उपस्थित रजिस्टर 1, रजिस्टर 2 तथा अंगुष्ठ बही से मिलान करने के उपरांत वॉल्यूम 23 तथा वॉल्यूम 25 के 80 डीड की डीड संख्या के क्रम में वास्तविक डीड होल्डर के नाम के साथ जिला अवर निबंधक अविनाश कुमार ने कोतवाली थाना को अवगत कराया.
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कानूनन दशरथ साहू और गणेश साहू जो अपने सहयोगियो एवं सदिग्धों के मदद से तथा अवर निबंधक कार्यालय, रांची के अभिलेखागार में उपर वर्णित दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर अपने-अपने स्वामित्व का जो दस्तावेज बनाये हैं, वे न सिर्फ फर्जी व बनावटी हैं, बल्कि इन्हीं लोगों ने जिन भी व्यक्ति को विक्रय पट्टा द्वारा जमीन हस्तांतरण किया है, वे सभी दस्तावेज एवं इनके आधार पर की गयी जमाबंदी भी निराधार, जाली, बनावटी औऱ फर्जी प्रतीत होता है. इन सभी स्वामित्व से संबंधित दस्तावेज कानूनन निष्प्रभावी समझा जायेगा.
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