JYOTI KUMARI
RANCHI : दुनिया में पानी की कमी के साथ-साथ शुद्ध पानी भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. यूएन की माने तो हर दिन, दुनिया में 6000 बच्चों की मौत दूषित पानी से हो रही है. पीने के पानी में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा एक बड़ी समस्या है.
झारखंड समेत पूरे भारत की स्थिति एक जैसी बनी हुई है. पलामू, धनबाद जैसे कई जिलों में भू-जल स्त्रोतों में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है, लोग फ्लोराइड की इस परेशानी से जूंझ रहे हैं. इस परेशानी से निपटने के लिए भुंगरू जल संरक्षण परियोजनाएं एवं तकनीक की तरफ से एक्वालाइनभुंगरू (AqualineBhungru) नाम से नई तकनीक शुरू की गयी है.
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क्या है भुगंरू ?
भुंगरू एक ऐसी तकनीक का नाम है, जिसका उपयोग वर्षा जल संरक्षण के लिए किया जाता है. यह एक अच्छी तरह से परीक्षण की गई पर्यावरण के अनुकूल तकनीक है. जो बारिश की पानी, खेतों आदि की पानी को साफ कर उस पानी को जमीन के अंदर के जल तक पहुंचाता है.
भुंगरू परियोजना के निदेशक रथिन भद्रा ने बताया कि एक्वालाइनभुंगरू तकनीक द्वारा दूषित पानी को डाइल्यूट कर जमीन के अंदर के पानी में फ्लोरोइड और आर्सेनिक की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है.
इस तकनीक से पानी और स्वास्थ्य को नुकसान होने से बचाया जा सकता है. साफ पानी की समस्या का समाधान के लिए एक्वा लाइन भूंगरु ब्रांड का निर्माण किया गया है.
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पानी में फ्लोरोइड और आर्सेनिक की मात्रा बढने के कारण
रथिन भद्रा ने कहा कि अनसाइंटिफिक तरीके से शहरीकरण और अंधाधुंध पेडों के काटे जाने के कारण भू-गर्भ जल की परिस्थिति खराब है. यही वजह है कि पहले की तुलना में भूमिगत जल को फिर से भरने के लिये काफी कम पानी मौजूद है. और जो थोडी बहुत बारिश होती है. कंक्रीट के कारण जमीन उसे पूरी तरह सोख नहीं पाता. नतीजतन जल स्तर कम होने के कारण फ्लोरोइड और आर्सेनिक की मात्रा पानी में ज्यादा नजर आती है. आम आदमी के साथ-साथ सरकार को भी इस पहल के लिए अपना दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है.
फ्लोरोइड प्रभावित क्षेत्र- पाकुड़, पलामू, साहेबगंज, गिरीडिह, गढ़वा, गुमला, रामगढ़, हाजीपुर.
आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र- साहेबगंज, रांची
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सेहत पर फ्लोरोइड और आर्सेनिक का प्रभाव
पीने के पानी में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा कैंसर, खराब लीवर का कारण बन रही है, जबकि फ्लोराइड-दूषित पानी के सेवन से दांतों और हड्डियों पर असर डालने वाली फ्लोरोसिस बीमारी हो सकती हैं. यदि पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक हो तो इसे हानिकारक माना जाता है. और आर्सेनिक के लिए स्वीकार्य स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है.
एक घंटे में होगा 5000 लीटर पानी साफ
एक्वालाइन प्रोजेक्ट के तहत ऐसी टेक्नोलॉजी लायी गयी है, जिससे पानी को तुरंत फिल्टर कर पीने योग्य बनाया जा सकता है. यह प्रोजेक्ट लोगों को ऐसा टैंक देगा, जो फ्लोरोइड, आर्सेनिक और पैथोजन को साफ करने की क्षमता रखता है.एक्वालाइन टेरेकोटा के नैनो पोरस टेक्नोलॉजी पर बेस्ड है. इस टंकी के माध्यम से एक घंटे में 5000 लीटर पानी को शुद्ध कर के घरेलू इस्तेमाल किया जा सकता है. एक्वालाइनभुंगरू की इस टेक्नोलॉजी को आईआईटी चेन्नई और भारत सरकार की मान्यता प्राप्त है.
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