NewDelhi : राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता के बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने कहा कि दो दिन पहले दिया गया प्रताप भानु मेहता का इस्तीफ़ा दिखाता है कि निजी ओहदे और निजी वित्त भी विश्वविद्यालय में अकादमिक अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं कर सकते.
बता दें कि इससे पूर्व अरविंद सुब्रमण्यम को 16 अक्टूबर, 2014 को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था. उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई थी. 2017 में उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था.
सुब्रमण्यम ने अपने इस्तीफे में लिखा
सुब्रमण्यम ने अपने इस्तीफे में लिखा, ऐसी प्रतिष्ठा और विद्वता के व्यक्ति (मेहता) जिसने अशोका के विचार को मूर्त रूप दिया, का इस्तीफा देना परेशान करने वाला है. अशोका निजी दर्जा और निजी पूंजी होने के बावजूद अब शैक्षणिक अभिव्यक्ति व आजादी नहीं दे पा रहा है जो चिंताजनक है. कुल मिलाकर अशोक की दृष्टि के लिए लड़ने की विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता पर अब सवाल खड़ा हो गया है और मेरे लिए अशोका के हिस्से के तौर पर जुड़े रहना मुश्किल हो गया है.
सुब्रमण्यम अशोका सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के संस्थापक रहे हैं
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले साल जुलाई में सुब्रमण्यम यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर के रूप में जुड़े थे. बता दें कि वे यूनिवर्सिटी के अशोका सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के संस्थापक भी थे. विश्वविद्यालय के अनुसार यह सेंटर भारत और वैश्विक विकास संबंधी नीतिगत मुद्दों पर शोध और विश्लेषण के लिए बनाया गया था.
एक्सप्रेस के अनुसार, सुब्रमण्यम का इस्तीफ़ा इस अकादमिक वर्ष के अंत से प्रभावी होगा. जान लें कि इससे पहले प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने मंगलवार को प्रोफेसर पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. इससे दो साल पहले उन्होंने यूनिवर्सिटी के कुलपति के पद से त्यागपत्र दिया था.
मेहता ने भाजपा और इसकी सरकार को ‘फासीवादी’ बताया था
कुछ सालों में मेहता केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की राजनीति के मुखर आलोचक रहे हैं. द वायर को गत वर्ष दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने भाजपा और इसकी सरकार को ‘फासीवादी’ बताया था.इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जब विश्वविद्यालय से यह पूछा गया कि क्या मेहता के इस्तीफे के फैसले के पीछे उनकी राजनीतिक राय और लेखन हैं, तब विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने इसका जवाब नहीं दिया
यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया कि कुलपति और फैकल्टी मेंबर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय में बहुत योगदान दिया है. विश्वविद्यालय उन्हें भविष्य के लिए शुभकामननाएं देता है. मेहता ने अपने इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने आधिकारिक दबाव का संकेत देते हुए यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज को रीढ़विहीन और झुकने की कहने पर रेंगने वालों की संज्ञा दी है.
मेहता ने कहा था कि वे फुलटाइम अकादमिक जीवन में लौटना चाहते हैं.
मेहता में साल 2017 में यूनिवर्सिटी के कुलपति का कार्यभार संभाला था. इससे पहले सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में प्रोफेसर जैसे कई प्रतिष्ठित पदों पर रह चुके थे.जुलाई 2019 में उन्होंने कुलपति का पद छोड़ते हुए कहा था कि वे वहां प्रोफेसर के बतौर काम करते रहेंगे. छात्रों को लिखे एक पत्र में मेहता ने कहा था कि वे फुलटाइम अकादमिक जीवन में लौटना चाहते हैं.
यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने द वायर को बताया कि तब मसला यह था कि यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज़ मेहता के अख़बारों में लेखन को लेकर खुश नहीं थे और मेहता को लिखना छोड़ने से बेहतर कुलपति का पद छोड़ना लगा.
जहां मेहता ने अपने इस्तीफे के कारणों के बारे में कुछ कहने से इनकार कर दिया था, सुब्रमण्यम द्वारा वर्तमान कुलपति मालबिका सरकार को लिखे पत्र में ऐसा नजर आता है कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है.
सुब्रमण्यम ने लिखा है, ‘मैं उस विस्तृत संदर्भ से वाकिफ हूं,जिसमें अशोका और इसके ट्रस्टियों को काम करना है और अब तक यूनिवर्सिटी ने इसे जैसे संभाला, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं.’
हालांकि उन्होंने आगे कहा कि ‘मेहता जैसे निष्ठावान और प्रखर व्यक्ति, जो अशोका के विज़न को पूरा करते थे, को इस तरह इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
जहां मेहता के इस्तीफे को केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना से जोड़ा जा रहा है, वहीं इससे पहले सुब्रमण्यम के देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद छोड़ने को भी पार्टी और संघ परिवार से असहज संबंधों से जोड़ा गया था.