Ranchi: भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी संथाल परगना में पार्टी की कोई हुई जमीन तलाश कर रहे हैं. 6 महीने के अंदर वे चौथी बार संथाल दौरे पर हैं. 15 फरवरी को वे तीन दिवसीय संथाल प्रवास पर थे. इसके बाद 27 अप्रैल को 5 दिवसीय दौरे पर पहुंचे. 1 जून को भी वे दुमका में थे. इसके बाद फिर 5 जुलाई को वे संथाल प्रवास पर निकल गये. मुख्य रूप से उनका साहिबगंज, दुमका, पाकुड़ और देवघर जिले के विधानसभा क्षेत्रों में फोकस है. जिन इलाकों में जेएमएम की जड़ें मजबूत हैं, उन जगहों पर बाबूलाल का दौरा सबसे ज्यादा हो रहा है.
जेएमएम का गढ़ माना जाने वाले संथाल परगना में भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में 3 सीटों का नुकसान हुआ था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दुमका से साहिबगंज तक विकास के दर्जनों बड़ी योजनाएं शुरू की. कई बार संथाल का दौरा किया, लेकिन संथाल के आदिवासी समुदाय का जेएमएम से मोहभंग नहीं कर पाये. 2019 में संथाल की तीन सीटें गंवाने के बाद बीजेपी यह समझ गई कि संथाल में आदिवासी वोटरों को माइग्रेट करने के लिए कोई बड़ा आदिवासी चेहरा चाहिए. बाबूलाल जेवीएम छोड़ भाजपा में आये तो उन्हें संथाल का विशेष जिम्मा मिल गया. भाजपा ने इस उम्मीद से उन्हें संथाल का दारोमदार दे दिया है, क्योंकि वे पहले जेएमएम के गढ़ में घुसकर उसे शिकस्त देते रहे हैं. 1991 से उन्होंने शिबू सोरेन को चुनौती देना शुरू किया था. आखिरकार 1998 में उन्हें गुरुजी को हराने में सफलता मिली. इसके बाद 1999 का भी चुनाव उन्होंने शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन को हराया. इस बार भी भाजपा को बाबूलाल से कुछ ऐसे ही करिश्मे की उम्मीद है.
एक तरह से देखा जाए तो संथाल के 6 जिलों के 18 विधानसभा क्षेत्रों का पूरा जिम्मा अकेले बाबूलाल मरांडी के कंधों पर है. आदिवासी वोटरों को भाजपा के पक्ष में करने की राह में उनके सामने कई रोड़े हैं. संथाल परगना आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जबकि भाजपा ने अपनी कार्यसमिति में संथाल में आदिवासी नेताओं को दरकिनार कर दिया. पिछली कार्यसमिति में संथाल से एकमात्र आदिवासी नेता हेमलाल मुर्मू की भी छुट्टी इस कार्यसमिति से कर दी गई. जिला अध्यक्ष, जिला प्रभारी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी 90 प्रतिशत से ज्यादा गैर आदिवासी नेताओं को जगह दी गई है. 2014 में हेमंत सोरेन को हराने वाली डॉ लुईस मरांडी को भी न तो प्रदेश और न राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह मिली है. वैसे ये हैरानी की बात जरूर है कि संथाल जैसे आदिवासी बहुल इलाके में विधानसभा की 4 सीटें गंवाने के बाद भी भाजपा ने कार्यसमिति में आदिवासी नेताओं को क्यों नहीं रखा. इसके पीछे का कारण तो पार्टी ही बता सकती है, फिलहाल बीजेपी को संथाल में सिर्फ बाबूलाल से ही किसी करिश्मे की उम्मीद दिख रही है.
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2019 में संथाल के 18 विधानसभा सीटों की स्थिति
विधानसभा | विधायक | पार्टी |
दुमका | बसंत सोरेन | जेएमएम |
शिकारीपाड़ा | नलिन | जेएमएम |
लिट्टीपाड़ा | दिनेश विलियम मरांडी | जेएमएम |
महेशपुर | स्टीफन मरांडी | जेएमएम |
बरहेट | हेमंत सोरेन | जेएमएम |
जामा | सीता सोरेन | जेएमएम |
बोरियो | लोबिन हेंब्रम | जेएमएम |
नाला | रविंद्र नाथ महतो | जेएमएम |
मधुपुर | हफीजुल हसन | जेएमएम |
जामताड़ा | इरफान अंसारी | कांग्रेस |
जरमुंडी | बादल पत्रलेख | कांग्रेस |
पाकुड़ | आलमगीर आलम | कांग्रेस |
महगामा | दीपिका पांडेय सिंह | कांग्रेस |
देवघर | नारायण दास | बीजेपी |
राजमहल | अनंत ओझा | बीजेपी |
गोड्डा | अमित मंडल | बीजेपी |
सारठ | रणधीर सिंह | बीजेपी |
पोडैयाहाट | प्रदीप सिंह | कांग्रेस |
फिलहाल संथाल की 18 में से 4 सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि 9 सीट जेएमएम के पास है. कांग्रेस ने 4 सीटें जीती है, लेकिन प्रदीप यादव के कांग्रेस में आने के बाद अब संथाल में कांग्रेस 5 सीटों पर है. वहीं 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने संथाल में 7 सीटें जीती थी. इनमें से बोरियो, दुमका, मधुपुर और महगामा में 2019 में भाजपा हार गई. सिर्फ राजमहल, गोड्डा और देवघर ही भाजपा के हाथ आए. वहीं 2014 के चुनाव के बाद रणधीर सिंह के जेवीएम से भाजपा में आने के बाद सारठ सीट भी 2019 में भाजपा की हो गई, लेकिन जीते हुए यह चारों विधानसभा सीट आदिवासी सुरक्षित सीट नहीं हैं.
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