Kolkata : अपने बयानों के लिए चर्चित रहने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने फिर एक बार मोदी सरकार पर निशाना साधा है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सेन (87) ने पीटीआई को ईमेल के जरिए दिये एक साक्षात्कार में केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए जोर दिया कि इन कानूनों की समीक्षा की जानी चाहिए
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असहमति और चर्चा की गुंजाइश कम होती जा रही है.
अपने साक्षात्कार में अर्थशास्त्री सेन ने मोदी सरकार पर करारा हमला करते हुए कहा कि देश असहमति और चर्चा की गुंजाइश कम होती जा रही है. लोगों पर देशद्रोह का मनमाने तरीके से आरोप लगा कर बगैर मुकदमा चलाये जेल भेजा जा रहा है. उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे युवा कार्यकर्ताओं के साथ अक्सर दुश्मनों जैसा व्यवहार किया गया है.
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भाजपा ने आरोप को बेबुनियाद करार दिया
हालांकि, अकसर ही सेन की आलोचना के केंद्र में रहने वाली भाजपा ने इस आरोप को बेबुनियाद करार दिया है. सेन ने कहा, कोई व्यक्ति जो सरकार को पसंद नहीं आ रहा है, उसे सरकार द्वारा आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और जेल भेजा सकता है. लोगों के प्रदर्शन के कई अवसर और मुक्त चर्चा सीमित कर दी गयी है या बंद कर दी गयी है.
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कन्हैया, खालिद या शेहला के साथ दुश्मनों जैसा बर्ताव
उन्होंने दावा किया, शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले कन्हैया, खालिद या शेहला जैसी युवा एवं दूरदृष्टि रखने वाले नेताओं के साथ राजनीतिक संपत्ति की तरह व्यवहार करने के बजाय उनके साथ दमन योग्य दुश्मनों जैसा बर्ताव किया जा रहा है. जबकि उन्हें गरीबों के हितों के प्रति उनकी कोशिशों को शांतिपूर्ण ढंग से आगे बढ़ाने का अवसर दिया जाना चाहिए था.
असहिष्णुता जानने के लिए पश्चिम बंगाल की यात्रा करें सेन : भाजपा
चर्चा और असहमति की गुंजाइश कथित तौर पर सिकुड़ने के बारे में अमर्त्य सेन के विचारों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई प्रमुख दिलीप घोष ने कहा कि उनकी दलील बेबुनियाद है.
दिलीप घोष ने पलटवार करते हुए कहा कि सेन का आरोप बेबुनियाद हैं. यदि वह देखना चाहते हैं कि असहिष्णुता क्या है तो उन्हें पश्चिम बंगाल की यात्रा करनी चाहिए, जहां किसी भी विपक्षी दल के पास अपने कार्यक्रम करने के लिए लोकतांत्रिक अधिकार नहीं है.
भाजपा नीत सरकार को लेकर सेन के विचारों के बारे में पूछे जाने पर प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा, ‘जब सरकार गलती करती है तो उससे लोगों को नुकसान होता है, इस बारे में न सिर्फ बोलने की इजाजत होनी चाहिए, बल्कि यह वास्तव में जरूरी है. लोकतंत्र इसकी मांग करता है.
इस क्रम में सेन ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों की समीक्षा करने के लिए मजबूत आधार हैं क्योंकि इन कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली से लगी सीमाओं पर पिछले करीब एक महीने से नये कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसानों के प्रदर्शन करने के मद्देनजर सेन ने यह टिप्पणी की है.
लॉकडाउन लागू किये जाने के बाद करोड़ों लोग बेरोजगार हुए
सेन ने यह भी कहा कि भारत में वंचित समुदायों के साथ व्यवहार में बड़ा अंतर मौजूद है. उन्होंने कहा, शायद सबसे बड़ी खामी, नीतियों का घालमेल है, जिसके चलते बाल कुपोषण का इतना भयावह विस्तार हुआ है. इसके उलट, हमें विभिन्न मोर्चों पर अलग-अलग नीतियों की जरूरत है.
कोविड-19 महामारी से लड़ने की देश की कोशिशों पर सेन ने कहा कि भारत सामाजिक मेलजोल से दूरी रखने की जरूरत के मामले में सही था लेकिन बगैर किसी नोटिस के लॉकडाउन थोपा जाना गलत था. कहा, आजीविका के लिए गरीब श्रमिकों की जरूरत को नजरअंदाज करना भी गलती थी.
उन्होंने यह बात मार्च के अंत में लॉकडाउन लागू किये जाने के बाद करोड़ों लोगों के बेरोजगार हो जाने और प्रवासी श्रमिकों के बड़ी तादाद में घर लौटने का जिक्र करते हुए कही. सेन ने कहा कि देश के विभाजन के बाद शायद पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने पलायन किया.