– नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर बैकफुट पर आयी बीजेपी
– सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास न मुद्दे, न रणनीति
– विधानसभा छोड़ बंगाल में व्यस्त हैं बाबूलाल, सदन में एक शब्द नहीं बोला
– झारखंड में कौन देगा बीजेपी को संजीवनी ?
Satya Sharan Mishra
Ranchi: सबका साथ सबका विकास वाली पार्टी बीजेपी झारखंड में कमजोर हो चुकी है. यहां बीजेपी एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में नजर नहीं आ रही है. पार्टी मुद्दा विहीन, दिशा विहीन और नेता विहीन दिख रही है. सत्ता पक्ष की रणनीति ने बीजेपी को लाचार कर दिया है. विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, लेकिन बीजेपी के पास न नेता हैं और न मुद्दे हैं. नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर लगातार कई दिनों तक हंगामा करने के बाद आखिरकार बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा. यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया. सदन में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली पड़ी है. 23 मार्च को सत्र समाप्त होने वाला है, लेकिन अबतक बीजेपी ने विधायक दल की बैठक नहीं बुलाई.
विधानसभा में विपक्ष को कैसे और किन मुद्दों पर घेरा जाएगा. यह रणनीति तक नहीं बनी. सदन के अंदर बीजेपी का कोई विधायक शिक्षा, कोई स्वास्थ्य, कोई सड़क तो कोई रोजगार का मुद्दा उठा रहा है, लेकिन बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी चुप हैं. जब जेवीएम में थे तब उनके पास मुद्दों की कमी नहीं होती थी. पूरे तथ्यों और सबूतों के साथ सरकार को घेरते थे, लेकिन इस सत्र में उन्होंने विधानसभा में मुंह तक नहीं खोला.
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झारखंड में बीजेपी की इस हालत पर न केंद्रीय नेतृत्व और न प्रदेश नेतृत्व का ध्यान है. सबका ध्यान है तो सिर्फ पश्चिम बंगाल पर. बाबूलाल मरांडी विधानसभा में कम बंगाल में ज्यादा नजर आ रहे हैं. पश्चिम बंगाल में अगर बीजेपी को सफलता मिल भी जाती है तो झारखंड में बीजेपी को क्या मिलेगा. बंगाल में बीजेपी को मजबूत हो जाएगी, लेकिन झारखंड में कमजोर होती बीजेपी को मजबूत करने के लिए कौन संजीवनी देगा ?
मुद्दों को कैश करने में बीजेपी फेल
बीजेपी के पास सरकार को घेरने के लिए मुद्दे ही मुद्दे हैं, लेकिन वह इन मुद्दों को कैश नहीं करा पा रही. नियोजन नीति पर जितनी मजबूती से सरकार को बीजेपी को घेरना चाहिए था वह नहीं घेर सकी. विपक्ष के विधायकों में एकजुटता नहीं दिखी. सत्र शुरू होने के बाद नियोजन नीति पर विपक्ष सरकार का हमलावर रहा, लेकिन फिर इससे भटककर दूसरे मुद्दों पर आ गया. बजट सत्र के दौरान रांची में दो-दो मॉब लिंचिंग की घटना घटी. इसपर भी बीजेपी हेमंत सरकार को सही तरीके से नहीं घेर सकी. अवैध खनन के मुद्दे पर तो बीजेपी को सत्ता पक्ष के विधायकों का साथ भी मिला, लेकिन इसे भी भुनाने में बीजेपी कामयाब नहीं हो सकी.
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सरकार को नहीं घेर पा रहे बीजेपी के विधायक
विधानसभा में बीजेपी के 25 विधायक हैं, लेकिन उनका सही नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है. विपक्ष के मुख्य सचेतक बिरंची नारायण, विधायक सीपी सिंह, भानू प्रताप शाही, रामचंद्र चंद्रवंशी और नीलकंठ सिंह मुंडा बीजेपी की तरफ से कमान संभाले हुए हैं, लेकिन इनके सवालों और आरोपों में सरकार घिर नहीं पा रही. सत्ता पक्ष पूरी मजबूती से डटकर और एकजुट होकर इन्हें जवाब दे रहा है. राज सिन्हा, अनंत ओझा, मनीष जायसवाल, नवीन जायसवाल, नारायण दास, अमित मंडल समेत अन्य विधायक विधानसभा की कार्यवाही में शामिल हो रहे हैं, लेकिन उनके पास अपने क्षेत्र के मुद्दों के अलावा सरकार को घेरने के लिए कुछ भी नहीं.
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बंगाल में फोकस, झारखंड में ठंड़ी पड़ी बीजेपी
विधानसभा के बाहर भी बीजेपी कमजोर दिख रही है. सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रमों की कमी हो गई है. केंद्रीय नेताओं का झारखंड दौरा भी बंद है. कार्यकर्ताओं में जोश और ऊर्जा का संचार तभी होता है जब केंद्रीय नेताओं का दौरा होता है और पार्टी चरणबद्ध तरीके से कार्यक्रमों को चलाती है. सरकार के खिलाफ कोई कार्यक्रम बीजेपी के पास फिलहाल नहीं है. राज्य से लेकर मंडल तक के कार्यकर्ताओं को कोविड वैक्सिनेशन के काम में लगा दिया गया है, जो बड़े नेता बचे हैं वो बंगाल में कैंप किये हुए हैं.
सरकार से डरकर बंद हो गये प्रदर्शन !
यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी ने सरकार के डर से आंदोलनों और प्रदर्शनों पर विराम लगा दिया है. किशोरगंज में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सीएम के काफिले पर हमला हुआ था. इस मामले में बीजेपी से जुड़े लोगों को चिन्हित कर उन्हें जेल भेजा गया था. इस घटना के बाद रांची में सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन या प्रदर्शन नहीं हुआ.
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प्रदर्शन की नई परंपरा से हो सकता है नुकसान
बीजेपी ने जेएमएम के सामने तो हथियार डाल दिया, लेकिन उसे लंबे समय बाद सरकार में शामिल कांग्रेस को घेरने का मौका मिला था. हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने महिला दिवस के दिन महिलाओं से ट्रैक्टर खिंचवा कर बीजेपी को एक मुद्दा दिया. झारखंड बीजेपी महिला मोर्चा की नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर इसके विरोध में प्रदर्शन किया. इस दौरान कांग्रेस के प्रवक्ता ने महिला मोर्चा की अध्यक्ष के मुंह पर हाथ रखकर उन्हें चुप कराने की कोशिश की.
इसके बाद तो बीजेपी को एक और मौका मिल गया. वरिष्ठ नेता सीपी सिंह भी मामले में कूद गये और कांग्रेस को जमकर कोसा, लेकिन इस प्रदर्शन के बाद बीजेपी ने विपक्षी दलों के दफ्तरों में जाकर प्रदर्शन करने की जो परंपरा शुरू की है उसके गंभीर परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकते हैं. कांग्रेस ने साफ कह दिया है कि अगर बीजेपी के लोग उनके दफ्तर में प्रदर्शन करते हैं तो उन्हें भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए.अगर भविष्य में ऐसे ही एक-दूसरे के पार्टी दफ्तरों में प्रदर्शन होते रहे तो हिंसा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.