Dumka : दुमका की चुनावी जंग में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के द्वारा दिया गया बयान अब उनके गले की हड्डी बनता दिख रहा है. सत्ताधारी दल जेएमएम के सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने दीपक प्रकाश के बयान पर आपत्ति जताते हुए दुमका थाना में प्राथमिकी दर्ज करवायी है और इस एफआइआर के बाद भाजपा राज्य सरकार पर हमलावर हो चुकी है.
जानें क्या है धारा 124A
अब आइये आपको बताते हैं कि आइपीसी की जिस धारा के तहत दीपक प्रकाश पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करवाया गया है, उससे उनकी मुश्किलें कितनी बढ़ सकती हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A गैरजमानती धारा है और इसके अनुसार जो भी व्यक्ति लिखित या फिर मौखिक शब्दोंत, या फिर चिन्हों के अलावा प्रत्यैक्ष या अप्रत्यीक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है, तो उसपर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाता है.
इसके तहत दोषी पाये जाने वाले व्यक्ति को 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. जेएनयू छात्रसंघ के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार को आइपीसी की धारा 124 (ए) के तहत देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया था. भारत में फिलहाल जो देशद्रोह का कानून है वह 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में बनाये गये कानून के आधार पर चला आ रहा है. उस वक्त सांसदों का मानना था कि सरकार के प्रति केवल अच्छी राय होनी चाहिए, क्योंकि बुरी राय सरकार और राजतंत्र के लिए हानिकारक थी.
इस भावना को अंग्रेजों ने 1870 में IPC की धारा 124A में डाला. अंग्रेजों ने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को दोषी ठहराने और सजा देने के लिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल किया. इसका उपयोग पहली बार 1897 में बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए किया गया था.
धारा 124A के कई मामलों को कोर्ट में दी गयी चुनौती
कई मामलों में धारा 124 A को विभिन्न अदालतों में चुनौती दी गयी है.
इस प्रावधान की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय (SC) की संविधान पीठ ने 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में बरकरार रखा था.
यह निर्णय इस मुद्दे पर गया कि क्या देशद्रोह पर कानून अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत मौलिक अधिकार के अनुरूप है.
अनुच्छेद 19 (1) (A) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर नागरिक को आलोचना या टिप्पणी के माध्यम से सरकार के बारे में कहने या लिखने का अधिकार है.
इसमें यह भी कहा गया है कि यह टिप्पणी बशर्ते लोगों को कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने फैसला सुनाया कि दो व्यक्तियों द्वारा एक या दो बार अकेले नारे लगाने का उद्देश्य सरकार द्वारा घृणा या असहमति को उत्तेजित करने का प्रयास करना या रोमांचक नहीं कहा जा सकता.
1995 में पंजाब के बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिनेमा के बाहर “खालिस्तान जिंदाबाद” और “राज करेगा खालसा” जैसे नारे लगाने के लिए देशद्रोह के आरोपों से बरी कर दिया.
वहीं झारखंड में रघुवर दास सरकार के दौरान पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ भी आइपीसी की धारा 120 4a के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. जिसमें लगभग 250 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था, जबकि 10 हज़ार से ज्यादा लोगों को अभियुक्त बनाया गया था.