Vishnu Nagar
सुप्रीम कोर्ट में कल यह सामने आया कि देश के दो से चार करोड़ लोगों के राशन कार्ड मोदी सरकार के आदेश पर रद्द कर दिए गए हैं. जाहिर है राशनकार्ड उन्हीं के बनते हैं, जो देश के निर्धनतम वर्गों से हैं. आदिवासी हैं, दलित आदि हैं. सरकार ने इन राशनकार्डों को बोगस बताते हुए रद्द कर दिया है, क्योंकि ये आधार कार्ड से जुड़े नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इतने बड़े पैमाने पर राशनकार्ड रद्द करने को बहुत गंभीर मामला बताया है.
दिलचस्प यह है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय पहले ही यह निर्णय दे चुका है कि नागरिकों की मूल जरूरतों के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता पर जोर नहीं दिया जा सकता. मगर यह सरकार कब किसी आदेश-अनुदेश को मानती है? अभी दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश का मामला फिर सामने आया है.
सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट रूप से उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित कर चुका था. मगर मोदी सरकार फिर एक विधेयक लेकर आई है, जिसमें दिल्ली विधानसभा की हैसियत नगरपालिका से भी बदतर हो जाएगी. जो भाजपा कभी दिल्ली को राज्य का दर्जा देने की बात घोषणापत्र में शामिल करती थी, वह राज्य सरकार के अधिकारों को सीमित करके भी खुश है. भाजपा की सिद्धांत निष्ठा, मोदी निष्ठा में बदल चुकी है.
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ग्रामीण-आदिवासी अंचलों में आधार कार्ड बनवाना अभी भी कठिन
सब जानते हैं कि ग्रामीण-आदिवासी अंचलों में रहनेवालों के लिए आधार कार्ड बनवाना कितना कठिन है. बन जाए तो इंटरनेट की सुविधा की हालत इन इलाकों में खस्ता है. ज्यादातर ऐसे अंचलों में ये काम नहीं करते. इसके अलावा एक उम्र के बाद मध्यवर्ग के लोगों के अंगूठे के निशान तक काम नहीं करते तो मेहनती गरीब वर्गों के लिए यह कितना कठिन है? इस कारण बिना सूचना दिए बड़े पैमाने पर कार्ड रद्द कर दिये गए हैं. इस कारण उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के लोगों के राशनकार्ड रद्द कर दिए गए हैं.
भक्तों के दिमाग कुंद हो गए हैं
गरीबों-आदिवासियों को राशन न देकर मारो, रसोई गैस पर सब्सिडी खत्म कर के मारो. उनके जंगल और जमीनें छीनकर मारो. विकास के नाम पर उन्हें मारो. उन्हें हिन्दू बना कर (या ईसाई बना कर) उनकी संस्कृति को भी मारो. नक्सली बता कर भी मारो. शहर आएं तो गंदगी और बेरोजगारी से मारो. सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है, इस नाम पर उनकी झुग्गी झोपड़ियों को खत्म करके उन्हें मारो. उन्हें मारने के लिए गोली चालन ही जरूरी नहीं. गोली चला कर भी मारो. तो जरूरी है प्रेस ऐसे मामलों को कवर करना चाहे और चाहे तो सरकार कवर करने दे?
भक्तों के दिमाग कुंद हैं, दिल में कंकर पत्थरों का निवास जमा लिया है. लोकसभा का हाल यह है कि वहां विरोध सुना नहीं जाता और सरकारी पक्ष केवल जय मोदी, जय मोदी करना जानता है. अदालतें भी कभी -कभी ही आशा जगाती हैं, मगर उनकी भी सुनता कौन है? राशन का मुद्दा किसान आंदोलन का ही मुद्दा नहीं बनना चाहिए, अन्य उतने ही सशक्त लोकतांत्रिक आंदोलन भी जरूरी हैं. वरना लॉकडाउन में अंबानियों-अडानियों की संपत्ति बेतहाशा बढ़ती रहेगी और साधारण जन मरते, डूबते रहेंगे. टीवी चैनल सुशांत सिंह राजपूत और कंगना रनौत की माला जपते रहेंगे.
Disclaimer : ये लेखक के निजी विचार हैं
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