Ranchi : कल आपने पढ़ा कि झारखंड में लगने वाले चापानलों में किस तरह भ्रष्टाचार हुए है. अब पढिए राज्य में जितने बोरिंग हुए है, उसकी वजह से राज्य के ग्राउंड वाटर की स्थिति चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है. बोरिंग पर रोक से ग्राउंड वाटर की स्थिति सुधर सकती थी, मगर नये बोरिंग होने से ग्राउंड वाटर लेबल रसातल में पहुंच जायेगा.
यह हम नहीं, बल्कि जल विशेषज्ञ गौतम राय, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के सीनियर हाइड्रोलोजिस्ट टीबीएन सिंह, भूगर्भजल निदेशालय के पूर्व निदेशक(जल विशेषज्ञ) एसएलएस जोगेश्वर का कहना है. वे कहते हैं ऐसी परिस्थिति में अगर हजारों चापाकल लगाये जाते है, तो आने वाले कुछ सालों में झारखंड में पानी को लेकर हाहाकार मच जायेगा.
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भूमिगत जल का तेजी से हो रहा दोहन
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड और भूगर्भजल निदेशालय की मानें, तो झारखंड में भूमिगत जल का तेजी से दोहन हो रहा है. अतिदोहन की वजह से प्रदेश के ग्राउंड वाटर लेबल में औसतन 13 मीटर तक की गिरावट दर्ज हुई है. रांची में 18 मीटर तक अधिकतम गिरावट पाई गई.
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आने वाले समय में ग्राउंड वाटर लेबल रसातल में चला जाएगा
ऐसे ही झारखंड में भू-गर्भ का दोहन जारी रहा, बोरिंग पर पूर्णत रोक नहीं लगाया गया, तो आने वाले कुछ वर्षों में ग्राउंड वाटर लेबल रसातल में चला जाएगा. ग्राउंड वाटर के अतिदोहन को देखते हुए ही पिछली सरकार ने चापाकल लगाने पर पूरी तरह से रोक लगा दिया था. राज्यगठन के बाद हर साल हजारों चापाकल लगाए गए, सरकारी व निजी. जिससे जमकर भूगर्भजल का अतिदोहन बढा.
आइये जानते है झारखंड के ग्राउंड वाटर के बारे में किया कहते हैं विशेषज्ञ
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के जल विशेषज्ञ गौतम राय का कहना है कि ग्राउंड वाटर लेबल का लगातार नीचे जाना बेहद चिंता का विषय है. ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट एसएलएस जागेस्वर के अनुसार बोरिंग के माध्यम से जितने पानी का दोहन हो रहा है, उतने पानी का 10 प्रतिशत हिस्सा भी भूगर्भ जल भंडार में मानसून के दौरान जमा नहीं हो पा रहा है. राज्यभर में अब मात्र 500 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) भूगर्भ जल भंडार है.
ग्राउंड वाटर लेबल में तेजी से आ रही है गिरावट
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के सीनियर हाइड्रोलोजिस्ट टीबीएन सिंह के अनुसार झारखंड पठारी इलाका होने के कारण प्रदेश में होने वाली बारिश का ज्यादातर हिस्सा बह जाता है. औसतन हर साल राज्य में 1400 मिमी बारिश होती है. जिसमें से 80% बारिश का पानी बह जाता है. यानी बारिश का ज्यादातर पानी बर्बाद हो जा रहा है. भू-गर्भ जल का भंडारण बहुत कम मात्रा में हो पा रहा है. जिस वजह से ग्राउंड वाटर लेबल में तेजी से गिरावट आ रही है. यह बेहद गंभीर और चिंता का विषय है .
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बोरिंग पर पूर्णत रोक नहीं लगा तो ग्राउंड वाटर लेबल रसातल में चला जाएगा
भूगर्भजल निदेशालय के पूर्व निदेशक(जल विशेषज्ञ) एसएलएस जोगेश्वर का कहना है कि अगर ऐसे ही झारखंड में भू-गर्भ का दोहन जारी रहा, बोरिंग पर पूर्णत रोक नहीं लगाया गया, तो आने वाले कुछ वर्षों में ग्राउंड वाटर लेबल रसातल में चला जाएगा. ग्राउंड वाटर के अतिदोहन को देखते हुए ही पिछली सरकार ने चापाकल लगाने पर पूरी तरह से रोक लगा दिया था। राज्यगठन के बाद हर साल हजारों चापाकल लगाए गए, सरकारी व निजी। जिससे जमकर भूगर्भजल का अतिदोहन बढा.
अतिदोहन की वजह से रांची के प्रमुख स्थानों का ग्राउंड वाटर लेबल
जामचुआं, टाटा रोड में 11 मी., निफ्ट,हटिया 35मी., एचईसी, सेक्टर-2 15मी., हवाईनगर में 10मी., जेवीएम श्यामली 27.8मी, एसई ऑफिस, एचएचसी, हरमू में 18.75मी., हाई कांके 17.70मी., मिलिट्री कैंप,नामकुम 13मी., फॉरेस्ट नर्सरी, नामकुम 8 मी. मिला है.
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अतिदोहन से झारखंड के जिलों में कहां कितना नीचे गया जल स्तर
जिला |
गिरावट |
रांची | 17.4 मी |
सिमडेगा | 10.6 मी |
गुमला | 11.2 मी |
पलामू | 13.8 मी |
लोहरदगा | 11.7 मी |
हजारीबाग | 12.3 मी |
चतरा | 14.6 मी |
गिरिडीह | 14.9 मी |
सिंहभूम | 13.8 मी |
बोकारो | 12.1 मी |
धनबाद | 15.7 मी |
दुमका | 11.8 मी |
जामताड़ा | 12.5 मी |
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