- राजभवन पर आरोप, किसी के दबाव में आकर कर रहा काम
- अंदर प्रवेश नहीं मिला तो गेट पर तैनात संतरी को सौंपा ज्ञापन
- 1932 आधारित स्थानीय, नियोजन नीति, ओबीसी आरक्षण और मॉब लिंचिंग बिल लौटाने का मामला
Ranchi : राजभवन से समय नहीं मिलने के बाद नाराज हेमंत सोरेन सरकार की राज्य समन्वय समिति के सदस्य राजभवन पहुंचे. लेकिन उन्हें राजभवन के अंदर जाने नहीं दिया गया. समिति के सदस्यों ने राजभवन और राज्यपाल की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुए गेट पर तैनात सुरक्षा सेल के एक संतरी को मांग पत्र रिसीव कराया और वहां से चले गये. प्रतिनिधमंडल में राज्य समन्वय समिति के सदस्य विनोद कुमार पांडेय, राजेश ठाकुर, बंधु तिर्की, योंगेद्र महतो और फागू बेसरा आदि शामिल थे.
राजभवन को पत्र लिखकर मांगा समय, फिर भी नहीं मिला
राजभवन के निकट पत्रकारों से बातचीत करते हुए समिति के सदस्य व झामुमो महासचिव विनोद कुमार पांडेय और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने राजभवन पर तीखे हमले किये. उन्होंने कहा कि इसके पहले भी राजभवन से समय मांगा गया था, लेकिन नहीं दिया गया था. इस बार विधिवत रूप से 1 सितंबर को राजभवन को पत्र लिखकर 3 सितंबर का समय मांगा गया था, लेकिन न तो समय मिला और न ही कोई सूचना दी गयी. इससे साफ है कि राजभवन और राज्यपाल किसी विशेष दल या व्यक्ति विशेष के दबाव में आकर काम कर रहे हैं.
राजभवन में प्रवेश नहीं मिलने पर संतरी को ही मांग पत्र सौंपा
समन्वय समिति के सदस्यों से जब पूछा गया कि राजभवन से समय नहीं मिलने के बाद भी आप राजभवन क्यों गये? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि राज्यहित से जुड़े मसले थे. इसलिए राजभवन से समय नहीं मिलने के बावजूद हमलोग मांग पत्र सौंपने आये. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजभवन में न तो कोई ओएसडी उपलब्ध था और ना ही कोई सचिव और न ही कोई जिम्मेवार अधिकारी. इसलिए समन्वय समिति ने सुरक्षा में तैनात एक संतरी को ही मांग पत्र सौंपा.
राज्यपाल पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप
विनोद कुमार पांडेय कहा कि जब भी कोई बिल विधानसभा से पास कर उसे राजभवन भेजा जाता है. और अगर राज्यपाल उसे वापस करते हैं तो उसकी सूचना उन्हें देनी पड़ती है, ताकि सरकार उसमें संशोधन कर फिर से उसे विधानसभा में पारित कराये. उसके बाद बिल को राजभवन भेजा जा सके. पांडेय ने कहा कि हेमंत सरकार के तीन महत्वपूर्ण बिल लौटाने के मामले में राजभवन ने ऐसा नहीं किया. आरोप लगाया कि राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन किया है. लगता है कि राज्यपाल किसी के इशारे पर तीन अहम बिल को लटकाना चाह रहे हैं. कहा कि वे दल विशेष के इशारे पर काम रहे हैं. राज्यपाल नहीं चाहते कि स्थानीय और नियोजन नीति बने और ओबीसी का आरक्षण बढ़े.
पांडेय ने कहा कि 1932 खतियान आधारित नियोजन और स्थानीय नीति, एसटी, एससी और ओबीसी का आरक्षण दायरा बढ़ाने व मॉब लिचिंग बिल राज्य की जनता के हित से जुड़ा है. यह झारखंड वासियों की प्रतिष्ठा का प्रश्न है. स्थानीय नीति अलग राज्य की लड़ाई में मुख्य मुद्दा रही थी. इसके बाद भी तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने बिना संदेश के ही इसे लौटा दिया था. नये राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने भी इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया.