Nalanda: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष मई 2016 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए गए, तो उम्मीद जगी थी कि अब यहां का कायाकल्प हो जाएगा. पर्यटन सुविधाएं विश्वस्तरीय हो जाएंगी और भग्नावशेषों का रख-रखाव और बेहतर तरीके से होगा. परंतु ऐसा कुछ नहीं हो सका. उल्टे विश्वविद्यालय परिसर की चहारदीवारी पांच से छह जगहों पर ढह गई हैं. प्राचीन दीवारों व चैत्यों पर घास-पात उग आए हैं. आस-पास के पशुपालक बेरोकटोक चहारदीवारी के अंदर आकर घास काट ले जाते हैं. दिनकर स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने इन सभी अनदेखी तस्वीरों के साथ प्रधानमंत्री को 9 जून को ई-मेल किया तो हड़कंप मच गया. पीएम ऑफिस के निर्देश पर संस्कृति मंत्रालय ने उच्चस्तरीय टीम का गठन कर दिया है. जो विश्व धरोहर की बदहाल स्थिति का मुआयना कर जवाबदेह अफसरों पर कार्रवाई की अनुशंसा करेगी.
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सोमवार को मॉन्यूमेंट डायरेक्टर नवरत्न कुमार पाठक के ई-मेल से इस बारे में नीरज कुमार को सूचित किया गया है. जांच टीम का नेतृत्व उप-अधीक्षण पुरातत्वविद (स्मारक) नंदकिशोर सवाई करेंगे. पटना एएसआई के पुरातत्व अधीक्षक एचए नायक ने बताया कि चहारदीवारी बनाने के लिए शीघ्र डीपीआर बनायी जाएगी.
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जानिए इंचार्ज दीपक चौधरी ने क्या कहा ?
नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर के इंचार्ज दीपक चौधरी ने कहा- मैं इसकी सुरक्षा के लिए तैनात किया गया हूं. मैं नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में ज्यादा नहीं जानता. उन्होंने बताया एक जगह 12 मीटर दीवार टूटी हुई है. इसे कई बार तार से घेरवाया, लेकिन स्थानीय लोग तोड़ देते हैं. बजट ही नहीं है तो बाउंड्री कैसे बनेगी. उन्होंने यह भी कहा कि पहले 50 से अधिक मजदूर इसकी देखरेख के लिए काम करते थे. अब महज चार मजदूरों से काम चलाया जा रहा है. ऐसे में विहारों पर से झाड़ी कैसे हटायी जा सकती है.
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जानें क्या है इतिहास ?
सम्राट अशोक ने नालंदा महाविहार के निर्माण की नींव रखी थी, लेकिन 5वीं सदी में इसका निर्माण गुप्त वंश के कुमार गुप्त में कराया. इसके बाद पालवंशीय राजा देवपाल ने मरम्मत करायी. कन्नौज के राजा हर्षवर्द्धन ने तीसरी बार फिर से इसका निर्माण करवाया था. 5वीं से 12वीं सदी (1199 ई.) तक यह बुलंदियों पर रहा। मई 2016 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था.
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