Soumitra Roy
जम्मू में ड्रोन का उड़ना कोई मामूली घटना नहीं है. भारत सरकार की इस मामले पर चुप्पी समझ से परे है. लद्दाख में चीन के साथ सीमा विवाद को देखते हुए सरकार ने पाकिस्तान की सरहद से 4 डिवीजन यानी 60 हज़ार से ज़्यादा जवानों को हटाकर चीनी सीमा पर तैनात किया है.
लद्दाख से लेकर हिमाचल और उत्तराखंड में चीन से लगी सीमा पर 2 लाख सैनिक तैनात हैं.
क्या इसका फायदा उठाते हुए पाकिस्तान पश्चिमी मोर्चे पर भी भारत के साथ जंग के खतरे को बनाये रखना चाहता है?
इन हालात के बरक्स कल करण थापर ने रणनीतिक विश्लेषक कर्नल अजय शुक्ला से लंबी बात की थी. जिसमें यह बात सामने आयी थी कि भारत इस वक़्त दो मोर्चों पर तनाव झेल रहा है.
पहले लद्दाख फ्रंट पर 12 और पाकिस्तान सीमा पर 25 डिवीजन तैनात हुआ करती थीं. ताजा घटनाक्रम के बाद बना असंतुलन चिंता का विषय है.
लेकिन इसका आर्थिक पक्ष कहीं ज़्यादा चिंताजनक है. क्योंकि मोदी सरकार देश की इकॉनमी को संभाल नहीं पा रही है. सरकार के आर्थिक स्रोत पहले से ज़्यादा सीमित हैं.
पहले बजट का 17% रक्षा मंत्रालय के हिस्से आता था, जो अब घटकर 15% हो गया है. जीडीपी के हिसाब से देखें तो यह 2.1% ही है. अब अगर सेना पश्चिमी मोर्चे को मजबूत करने का कदम उठाती है तो उसके आधुनिकीकरण पर दबाव पड़ेगा.
देपसांग, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और गलवान में भले ही चीन थोड़ा पीछे हटा हो, लेकिन उसने करीब 1000 वर्ग किलोमीटर इलाके में भारत की पहुंच को भी रोक दिया है.
मौजूदा हालात में भारत को उत्तरी कमांड से सैनिकों को हटाना मुमकिन नहीं है. इसके अलावा जवानों के लिए जरूरी साजो-सामान और खासकर हल्के लड़ाकू टैंक, बख्तरबंद गाड़ियों को जुटाने में काफी खर्च होना है.
पर मोदी सरकार बीते 15 महीने से तस्वीर साफ करने के बजाय पर्दा डालने का काम ज़्यादा कर रही है. मुमकिन है संसद के मानसून सत्र में इस पर कुछ बात हो.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.