गांव की कहानी
(रुड़ी पहान,एतवा पहान,गौड़ पहान,जावरा पहान,ध्वनसिंह मुण्डा)
’’चिया ले चाल लेका दा लेलोव तना अबु निता रेञ अबु ताइना चिंचल’’ से ही चिंचल हो गया जिसका अर्थ होता है स्वच्छ पानी. गांव बसाने वाले पूर्वजों ने यहाँ पर स्वच्छ पानी देखकर गाँव बसाने को सोचा और इस गाँव का नाम चिंचल रखा. सुतियाम्बे-कुड़ुम्बे से चलने के बाद सबसे पहले इनके पूर्वज चोन्डोर में बसे. चोन्डोर से कुछ लोग पिड़ीहातू होते हुए गड़ामड़ा, सुकनडीह, टोटादाह होते हुए इस जगह पर पहुँचे और चिंचल गाँव को बसाया. यह गांव हस्सा किलि के लोगों का है.
चिंचल ग्राम खूँटी जिला के खूँटी थाना के डाड़ीगुटु पंचायत में स्थित है. यह गाँव खूँटी से लगभग 20 किलोमीटर पर पूरब में है. इस गाँव में हस्सा किलि के 44 मुण्डा परिवार रहते हैं, जिनकी जनसंख्या 208 है. इस गाँव का क्षेत्रफल 256 एकड़ है.
इस गाँव के पूरब में बुड़ाडीह गाँव स्थित है. पश्चिम दिशा में हेन्देबा और गड़ामड़ा गाँव है. उत्तर दिशा में कुरकुटा और हाबुईडीह बसा हुआ है तथा दक्षिण दिशा में टोटादाह और सुकनडीह है. गाँव का जंगल मुरमुर गुट और मुरमुर बुरू ;पहाड़ उत्त्र दिशा में है. चिंचल के पूरब में पच्ंडा लोर ;छोटा जंगल स्थित है. पश्चिम उत्तर दिशा में भी एक जंगल है जिसे बड़ागुर के नाम से जाना जाता है. गाँव का जयर पूरब दिशा में स्थित है. पूरब दिशा में ही गाँव का दिबि स्थान स्थित है. गाँव का ससन उत्तर दिशा में है. पूरब दिशा में ही माड़ाबुरू है तथा पश्चिमोत्तर कोना में देशाउली स्थित है. डाऊ इकिर गाँव के पूरब दिशा में स्थित है. पश्चिम दिशा में चिंचल इकिर तथा सरजोम इकिर पश्चिम उतर कोना में विद्यमान है. दिसम्बर माह में सुकनबुरू मेला के समय आंगन में पूजा करते हैं. इस समय आंगन से ही इकिर बोंगा का नाम लेते हुए पूजा करते हैं.
गाँव में सबसे पहले आने वाले व्यक्ति का नाम लेंकोया मुण्डा था. उनके दो पुत्र थे राणा और किषणा. राणा के वंशज गाँव के मुण्डा हो गए और उन्होंने दूसरी टोली बसा ली. वहीं किषणा के वंशज गाँव के पहान हो गए.
खान-पान
इस गाँव के लोग धान, मड़ुआ, अरहर, उरद, कुर्थी, सुरगुजा, आलू, मूली, ओल, कुदरूम सहित प्राय सभी साग-सब्जियों की खेती करते हैं. खेतों में उपजाये गये अनाज तथा साग-सब्जियां, खान-पान में शामिल होते हैं. इसके साथ ही ये लोग मुनगा, जोजो ;इमली, आम, कुसुम, केंउंद, बैर, कोइनार साग, सेरली ,कटई साग इत्यादि खाते हैं. जंगल से प्राप्त अनेक तरह के कंद.-मूल भी इनके भोजन में शामिल होत है.
बुजुर्गों के प्रति समाज का नजरिया
इस गाँव में बुजुर्गों के खासकर युवा वर्ग बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. ये लोग अपने बुजुर्गों का सम्मान करते हैं और उनकी हर बातों को मानते हैं. युवक गाँव के बुजुर्गं के साथ बैठक में शामिल होते हैं और उनसे अच्छी बातें सीखते हैं. शादी-विवाह अथवा अन्य पर्व-त्योहारों में बुजुर्ग जैसा कहते हैं वैसा ही युवा करते हैं. गाँव में युवा अपनी भाषा में ही बात करते हैं तथा हिन्दी एवं अन्य भाषा बहुत कम जानते हैं.
आय के स्रोत
चिंचल गाँव के लोगों की आय का मुख्य स्रोत कृषि और जंगल है. कृषि में उपजाए गए अनाज और सब्जियाँ समय-समय पर बेचकर ये लोग अपनी अन्य जरूरतों को पूरा करते हैं. जंगल से प्राप्त लकड़ी, पत्ता, दतवन, फल और सब्जियों के साप्ताहिक बाजार में बेचते हैं. जिससे उन्हें कुछ आमदनी हो जाती है. अपनी आय की वृद्धि के लिए इस गाँव के लोग मुर्गी पालन तथा बकरी पालन करते हैं. जिसकी बिक्री ये लोग साप्ताहिक हाट-बाजार में करते हैं. इसके आलावे इस गाँव के लोग बेर, कुसुम तथा पलाश के पेड़ो पर लाह की खेती करते हैं. लाह की खेती से अच्छी आमदनी हो जाती है.
गाँव के सांस्कृतिक केन्द्र
अखड़ा, पुण्डी सेरेंग;सफेद चट्टान, तथा सभी पूजा स्थल इस गाँव के सांस्कृतिक केन्द्र हैं. अखड़ा में लोग पर्व-त्योहारों में सामूहिक रूप से नाचते-गाते हैं. गाँव की साप्ताहिक बैठक पुण्डी सेरेंग नामक चट्टान में होती है जो कि गाँव के अन्दर ही स्थित है. चिंचल के मुण्डा और पहान दोनों टोलियों की बैठक एक साथ उसी जगह पर होती है, इसलिए यह गाँव का मुख्य सांस्कृतिक केन्द्र बन गया है.
श्रम व्यवस्था
इस गाँव में भी श्रम व्यवस्था के अन्तर्गत मदइत की परंपरा देखने को मिलती है. मदइत के अंतगर्त धान रोपना, धान काटना, घर बनाना, आड़ बाँधना, घर छारना, जमा किया हुआ खाद खेतों में फेंकना और अन्य सभी काम किए जाते हैं.
मदइत का काम आधा बेला का ही होता है, जिसके बदले लोगों को हँडि़या पिलायी जाती है और भोजन कराया जाता है. काम एक बेला से अधिक का रहने पर लोगों को मजदूरी दी जाती है. मजदूरी दर ग्राम सभा में विचार-विमर्श के बाद तय किया गया है. मदइत के अन्तर्गत जिलु नाला ;बकरा-बकरी, मुर्गा-मुर्गी निकालना होता है. काम के आधार पर अपनी क्षमता के अनुसार, लोग सहायता के रुप में जिलु नाला करते हैं.
जंगल से संबंध
इस गांव के लोगों का 20 प्रतिशत काम कृषि से और 80 प्रतिशत काम जंगल से होता है. अर्थात कृषि से ये लोग केवल अनाज और सब्जियाँ प्राप्त करते हैं. परन्तु जंगल ही इनके आय का मुख्य स्रोत है. पूजा-पाठ के लिए शत-प्रतिशत ये लोग जंगल पर ही र्निभर है. इसलिए ये लोग सांस्कृतिक रूप से जंगल से जुड़े हुए हैं. घर बनाने से लेकर मृत्यु संस्कार तक के लिए ये लोग जंगल पर ही र्निभर हैं, इसलिए सामाजिक रूप से भी ये लोग जंगल से जुड़े हुए हैं.
वाद्य-यंत्र
पर्व-त्योहारों में ये लोग मुख्य रूप से नगाड़ा, ढोल का प्रयोग करते हैं. बाँसुरी का प्रयोग कम हो गया है. अन्य प्राचीन वाद्य.-यंत्र भी यहाँ पर लुप्त हो गए हैं. पारंपरिक नृत्य-गीत तो होता है परन्तु युवा वर्ग आधुनिक गीतों का भी शौक रखते हैं. 2013 वर्ष में गाँव का एक दल जदूर और करम नाचने दिल्ली तक गया था.
स्वशासन की स्थिति
प्राचीन स्वशासन पद्धति यहाँ पर बहुत मजबूत बनी हुई है. यहाँ पर ग्राम सभा की बैठक नियमित रूप से रविवार को की जाती है. सभी सरकारी योजना पर ग्राम सभा निगरानी रखती है. इनकी स्वशासन व्यवस्था बहुत ही मजबूत है, जिसका निर्णय कभी नहीं बदलता है. लोग भी इस निर्णय पर अटल रहते हैं.
बहुत दिन पहले सुकनबुरू ;पहाड़, पर सरकार द्वारा के दूर संचार विभाग का केन्द्र बनाया जा रहा था. सुकनबुरू इनका सांस्कृतिक केन्द्र है जहाँ पर हर वर्ष दिसम्बर-जनवरी में आसपास सभी गाँव के मुण्डा एकत्रित होते आ रहे हैं. यह पहाड़ मुण्डाओं की सामूहिकता का प्रतीक है. लोगों ने संघर्ष करके बने हुए दो तल्ला मकान को दो घंटे में ध्वस्त कर दिया और अपनी संस्कृति के बचाया. यह घटना इस गांव के ग्राम सभा की मजबूती तथा अटल निर्णय को प्रदर्शित करता है.
घर का स्वरूप
यहाँ पर प्राय सभी घर मिट्टी के हैं. जो खपड़ा से छारे हुए हैं. गाँव की लम्बाई पूरब-पश्चिम में है और चौड़ाई उत्तर-दक्षिण में फैला हुआ है.
जरूरत की वस्तुएँ
इस गाँव के लोग जरूरत की वस्तुएँ मारंगहादा बाजार खूँटी बाजार अथवा बुण्डू बाजार से लाते हैं. सोना-चाँदी की वस्तुएँ बुण्डू बाजार से ही आती हैं, क्योंकि ये वस्तुएँ और गहने वहाँ सस्ते दामो में मिलती हैं.
उपचार के तरीके
मलेरिया डायरिया जैसी अन्य छोटी बीमारियाँ जड़ी-बूटियों से ही ठीक की जाती हैं. इस गाँव में जड़ी-बूटियों से मिर्गी जैसी बीमारी का भी इलाज होता है. जड़ी-बूटियाँ कुछ देर से असर करती हैं, इसलिए कुछ लोग बीमार होने पर डॉक्टर के पास इलाज कराते हैं.