Ranchi : मांडर विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर झारखंड राज्य के विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर बनने के लिए पीएचडी की डिग्री को अनिवार्य करने के फैसले को पुन विचार करने का आग्रह किया है. विधायक बंधु तिर्की ने अपने पत्र में कहा है सरकार यूजीसी रेगुलेशन 2018 में निहित शिक्षक नियुक्ति के लिए 55 प्रतिशत अंकों के साथ post graduate उत्तीर्ण होना और पीएचडी की डिग्री को अनिवार्य है. यह जुलाई 2021 से प्रभावी हो जाएगी, जबकि पीएचडी को अनिवार्य करने की शर्तों पर राज्य सरकार को यहां के एसटी, एससी, ओबीसी सहित पिछड़े तबके युवकों के व्यापक हित में गंभीर पुन विचार करना चाहिए. इस निर्णय से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग से आने वाले हजारों युवा सहायक प्रोफेसर बनने के अवसर से वंचित हो जाएंगे. अकादमिक संस्थाओं खासकर उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों में इनका प्रतिनिधित्व नगण्य हो जाएगा.
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अनुच्छेद 46 का किया उल्लेख
बंधु तिर्की ने तर्क दिया है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 46 राज्य सरकार को विशेष उपाय कर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और आर्थिक संरक्षण करने का अधिकार देता है, ताकि इन्हें सामाजिक न्याय के लिए संरक्षण दिया जा सके. इसके बावजूद हम पाते हैं कि विभिन्न अकादमिक और उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों मे इन समुदाय के लोगों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है. केंद्र और राज्य सरकार के कानूनों के बावजूद यूजीसी विश्वविद्यालयों में आरक्षण नियमों का समुचित पालन कराने में विफल रहा है.
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सीएम से किया आग्रह
विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मांग की है कि सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों में आरक्षण को लेकर बनी गाइडलाइन 2006 के अनुपालन की समीक्षा करते हुए शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों पर अनुसूचित जाति/ जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के प्रतिनिधित्व की पड़ताल की जानी चाहिए. बैकलॉग के पदों को सबसे पहले भरने की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए. पूर्व की तरह पीएचडी, नेट या जेट जो भी किसी एक शर्त को पूरा करता हो, इसे न्यूनतम अर्हता स्वीकार करने पर विचार किया जाना चाहिए, ताकि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जाति समुदाय के छात्राओं को सहायक प्रोफेसर बनने का समुचित अवसर मिल सके.