Ranchi: आदिवासियों की मिनी असेंबली कही जाने वाली जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की नयी नियमवाली हेमंत सरकार ने बनायी है. इस नियम के तहत राज्यपाल की ओर से टीएसी के गठन के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है. अब टीएसी के सर्वे-सर्वा मुख्यमंत्री होंगे. राज्य सरकार ने टीएसी गठन को लेकर दो बार प्रस्ताव राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा था, लेकिन राज्यपाल ने कुछ सवाल उठाते हुए इसे वापस कर दिया.
इसके बाद हेमंत सरकार ने नियमावली में ही बदलाव कर नई नियमावली बनाकर टीएसी गठन कर दिया. कई आदिवासी संगठन से जुड़े आदिवासी बुद्धिजीवी हेमंत सरकार के द्वारा बनाये गये टीएसी नियमवाली के माध्यम से राज्य में शिड्यूल एरिया को खत्म करने की दूरगामी साजिश बता रहे हैं. वर्तमान नियमवाली के तहत गठित टीएसी को असंवैधानिक करार दे रहे हैं. साथ ही इसे संविधान की पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन बता रहे हैं.
वर्तमान आदिवासी बुद्धिजीवीयों ने कहा कि नियम बनाने का अधिकार राज्यपाल को है. टीएसी में कौन अध्यक्ष और कौन सदस्य होगा, यह राज्यपाल के क्षेत्राधिकार में है. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल एक स्वतंत्र संस्था होगी, जो जनजातीय लोगों के हित और उसकी रक्षा के लिए काम करना है. लेकिन इसे सरकार का एक अंग बना दिया जा रहा है.
क्या कहते हैं नियमवाली को लेकर आदिवासी समाज के लोग
समाजिक कार्यकता वॉल्टर कडुलना कहते हैं, वर्तमान नियमावली के तहत TAC का गठन किया गया है, अब यह भी पूर्व की रघुवर सरकार की तरह ही टीएससी सरकार बन गया है. इसे कठपुतली की तरह सरकार अपने कार्य के लिय इस्तेमाल करेगी. वर्तमान नियमावली शिड्यूल एरिया को खत्म करने की दूरगामी साजिश है. वॉल्टर आगे कहते हैं, राज्य में अगर कोई गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनेगा तब इस नियमावली के तहत अध्यक्ष बन जायेगा. जबकि TAC को स्वतंत्र होना चाहिए, यह सविंधान की मूल भावना है.
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TAC अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विधायिका है. पांचवी अनुसूची के सेक्शन 4 में भूमि संबंधी सवाल मुख्य रूप रेखांकित किया गया है. पूर्व की रघुवर सरकार ने भी TAC के माध्यम से सीएनटी-एसपीटी एक्ट को संशोधन करने का प्रयास किया था. लेकिन झारखंड की जनता के विरोध के कारण रघुवर सरकार ने अपने निर्णय को वापस ले लिया.
राजभवन और सरकार के टकराव का खामियाजा राज्य की आदिवासी जनता को भुगतना पड़ेगा. पांचवी अनुसूची में टीएससी के संबंध में लिखा गया है कि इसके 5 सदस्य नॉमिनेट होंगे, और 15 एमएलए सदस्य होंगे. वर्तमान टीएससी में 17 एमएलए कर दिया गया है. दो मनोनित सदस्यों को बैठाया गया है. सरकार ने वैसे लोगों को ही बैठया है जिनका सामाजिक सरोकार ले दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है.
संविधान ने आदिवासियों के संरक्षण का जिम्मा सरकार को सौंपा था, लेकिन वो उन्हें ख़त्म कर रही है
अमरनाथ लकड़ा कहते है ‘संविधान ने आदिवासियों के संरक्षण का जिम्मा सरकार को सौंपा था, लेकिन वो उन्हें ख़त्म कर रही है’ झारखंड में TAC को सरकार स्टांप की तरह इस्तेमाल करती है.
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वर्तमान अबुआ सरकार की बात करने वाली हेमंत सरकार भी यही कर रही है. आदिवासी को नक्सलियों के नाम पर गोली मारी जा रही है. जहां तक TAC का सवाल है, यहां राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्री-परिषद होना चाहिए. संविधान के -अनुछेद -163 इसे स्पष्ट किया गया है. आर्टिकल 163 कहता है हर राज्य में राज्यपाल की सहायता और सलाह के लिए मंत्रिपरिषद होगा (साधारण मंत्रिपरिषद, जो हमारे राज्य में है, जिसमें अन्य मंत्री पद हैं) लेकिन जनजातियों के लिए विशेष परिषद जो अनुसूचित क्षेत्रों में शांति और सुशासन के लिए राज्यपाल का सलाहकार परिषद होगा (मंत्री परिषद से अलग), जिसको संविधान की पांचवीं अनुसूची में उल्लेखित किया गया है, जिसको जनजाति सलाहकार परिषद कहा जाएगा और जिसमें कम से कम 25% मनोनित सदस्य होंगे. आदिवासी समाज से, अगर विधानसभा में जनजातीय विधायक कम हैं, तो उनकी सीट मनोनित सदस्यों से भरी जाएगी.
वर्तमान अबुआ सरकार ने TAC को लेकर क्या किया
पूर्व की सरकार की तरह ही राज्य सरकार वर्तमान TAC मंत्री-परिषद की सलाहकार समिति है, लेकिन नाम जनजाति सलाहकार परिषद रख दिया है जो असंवैधानिक है.
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आदिवासी समाज से मनोनित सदस्यों की संख्या कम से कम 5 होनी चाहिए, 5 से कम नहीं हो सकती 20 सदस्यों वाली जनजाति सलाहकार परिषद में 17 एमएलए को रखा गया है.
जनजाति सलाहकार परिषद का मुखिया मुख्यमंत्री होगा ये जरूरी नहीं है, लेकिन इसे अबुआ सरकार में जरूरी बनाया गया है.
राज्यपाल को परिषद की नियमावली बनाने का अधिकार है, पर वो भी संविधान में निहित स्ट्रक्चर को बदल नहीं सकता है. (राज्यपाल के द्वारा टीएसी- 2021 जो कि 5वीं अनुसूची के अनुरूप नहीं है, को लागू करना असंवैधानिक है, उनको विधायकों और मनोनित सदस्यों के अनुपात को बदलने का अधिकार नहीं है लेकिन ऐसा कर दिया गया है.