Soumitra Roy
जिंदगी ऊपर-नीचे होती लकीरों वाले ग्राफ जैसी है. विरले ही होंगे, जिनकी जिंदगी की लकीर बिना नीचे गिरे, सीधे ऊपर की ओर जाती है.
बिल्कुल ECG ग्राफ की तरह, जो दिल का हाल बताती है. मरीज की हालत को डॉक्टर उस बीच की लाइन से समझता है, जिसे रिग्रेशन लाइन कहते हैं. इकॉनमी भी कुछ ऐसी ही है. बीच की लाइन के ऊपर रहने का मतलब है, इकॉनमी अभी ज़िंदा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्री और भाजपा के छोटे से बड़े नेता व कार्यकर्ता, बात-बात पर नेहरू और कांग्रेस सरकारों को इकॉनमी की बदहाली के लिए दोष देते हैं. लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं.
ग्राफ बताता है, देश जब आजाद हुआ, तब जीडीपी शून्य थी. लेकिन नेहरू ने ये नहीं कहा कि उन्हें अंग्रेजों ने विरासत में खाली खजाना दिया है. वे देश की जीडीपी को 0 से 4.5% तक लेकर आए. उनके बाद आयीं इंदिरा गांधी ने पहली पारी के 12 साल में वामपंथियों के दबाव में इकॉनमी का बेड़ा गर्क किया. नतीजतन, सालाना औसत बढ़त 3% पर आ गई. फिर आई जनता खिचड़ी सरकार, जिसने इकॉनमी का और नुकसान किया. इंदिरा फिर सत्ता में लौटीं और इस बार उदारवादी आर्थिक दृष्टिकोण से देश चलाया. नतीजा यह निकला कि देश की इकॉनमी नीचे नहीं गिरी और 2014 तक बढ़ती ही रही.
किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कैसा रहा देश की इकोनॉमी
1980 के बाद से भारत की इकॉनमी कभी इस बात पर निर्भर नहीं रही कि देश की बागडोर किसके हाथ है. इंदिरा काल में इकॉनमी की सालाना औसत रफ़्तार 6% तक बढ़ गई. (यहां मोदी काल का हाल देखें. आज इकॉनमी 5% से नीचे है.) राजीव गांधी ने भी लगाम कसी रही. पीवी नरसिंह राव नव उदारवादी व्यवस्था लेकर आए और ग्राफ को 6% से ऊपर पहुंचाया.
अटल बिहारी सरकार ने भी इसे ज़्यादा छेड़ने की कोशिश नहीं की और स्थिति सामान्य रही. मनमोहन सिंह के 10 साल देश की इकॉनमी के सबसे सुनहरे साल रहे. जब देश चीन को पछाड़ते हुए 7% से अधिक की सालाना औसत रफ्तार से दौड़ा.उसके बाद कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी कहने वाले के हाथ में सत्ता आयी. वर्ष 1970 के बाद देश ने पहली बार इकॉनमी को 5% सालाना औसत तक गिरा पाया.
मोदी और उनके मंत्री व भाजपा नेता कोरोना को दोष देते हैं. असल में कोरोना से पहले की इकॉनमी की सालाना बढ़त 4.5% से नीचे चली गई थी. अब यह लगभग साफ हो गया है कि भाजपा, जिसके अधिकांश नेता आरएसएस से आते हैं, इनके पास इकॉनमी की न तो कोई समझ है और न दिशा. नोटबंदी, खराब तरीके से लागू जीएसटी, महामारी व बेरोजगारी के वक्त गरीब जनता पर पेट्रोल-डीजल के मूल्य में बढ़ोतरी से यह साबित हो चुका है.
आज भी नेहरू, इंदिरा और मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की बदौलत देश की इकॉनमी सालाना 7% की औसत बढ़त पर खड़ी तो है, लेकिन लड़खड़ा रहा है. इकॉनमी के पैर कमजोर हो चुके हैं. अगर कुछ माह यही हाल रहा तो देश 3.5% के ग्रोथ की तरफ़ मुड़ जाएगा. दरअसल, मोदी सरकार का पूरा ध्यान बेचने, बांटने और जीतने में लगा है. और देश चलाने के लिए सरकारी संपत्तियों को बेचने की जिद पर अड़ी है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.