Uday Verma
क्रिकेट के दीवाने आईपीएल का जैसा रोमांच से भरा फाइनल देखना चाहते थे, उन्हें सोमवार की रात वैसा ही मुकाबला देखने को मिला. आईपीएल के फाइनल में चेन्नई सुपर किंग और गुजरात टाइटंस के बीच अंतिम गेंद तक चले मुकाबले में किसी को पता नहीं था कि दोनों दिग्गज टीमों में से कौन सी टीम विजेता बनेगी. अंतिम ओवर की अंतिम दो गेंदों में चेन्नई को विजय-लक्ष्य (171 रन) पाने के लिये 10 रनों की जरुरत थी. यह लक्ष्य मुश्किल तो था, लेकिन इसे पाया जा सकता था. जरुरत थी एक छक्का और एक चौका की. ऐसे में रवींद्र जडेजा महानायक बनकर अवतरित हुये और करिश्माई बल्लेबाजी करते हुए पांचवीं गेंद पर छक्का और अंतिम गेंद पर चौका जड़ कर चेन्नई को एक बार फिर आईपीएल का बादशाह बना दिया. गुजरात ने 20 ओवर में चार विकेट पर 214 रन बनाए थे, लेकिन बारिश के कारण डकवर्थ लुईस नियम लागू किया गया और चेन्नई को 15 ओवर में जीत के लिये 171 रनों का लक्ष्य दिया गया. गुजरात के सशक्त गेंदबाजी आक्रमण को देखते हुए चेन्नई के लिए यह लक्ष्य कतई आसान नहीं था. पर गुजरात के सामने धौनी की टीम थी, जो अंतिम गेंद तक संघर्ष करने और चुनौतियों को अवसर में बदलने में माहिर मानी जाती रही है. धौनी की इस टीम ने छोटी-छोटी पर तेज साझेदारी वाली रणनीति के साथ अपने संघर्ष को परवान चढ़ाया और अंततः 15 वें ओवर की अंतिम गेंद पर 171 रनों के लक्ष्य को पांच विकेट के नुकसान पर हासिल कर आईपीएल के इतिहास में एक और स्वर्णिम गाथा रच दी.
देखा जाए तो चेन्नई ने आईपीएल का यह संस्करण जरूर जीता, लेकिन जिस अंदाज में फाइनल मुकाबला हुआ, वह हार-जीत के परंपरागत मिथक से ऊपर रहा. इस फाइनल की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें क्रिकेट का संघर्ष, सौन्दर्य, रणनीति की बारीकियां और अंत तक हार न मानने के जज्बे का रोमांच अपने चरम तक पहुंचा. हम कह सकते हैं कि यह फाइनल ऐसा था जिसमें भले ही चेन्नई की पांच विकेट से जीत हुई हो, लेकिन इसे समग्रता में क्रिकेट की जीत के रूप में भी देखा जाएगा. इस फाइनल की एक खास बात यह भी रही कि इसमें कोई एक खिलाड़ी नायक बन कर नहीं उभरा, बल्कि दोनों टीमों के दो-तीन खिलाड़ियों में नायकत्व के दर्शन हुए.
चेन्नई सुपर किंग के कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी और गुजरात टाइटन के कप्तान हार्दिक पांडेया दोनों के प्रभावशाली नेतृत्व और टीमवर्क के मंत्र ने दोनों टीमों को फाइनल तक का सफर तय कराया. चाहे गेंदबाजी हो या बल्लेबाजी अथवा क्षेत्ररक्षण, चेन्नई और गुजरात दोनों टीमें एक या दो स्टार खिलाड़ियों पर आश्रित नहीं रहीं. इन दोनों टीमों के हर मैच में अलग-अलग खिलाड़ी नायक बन कर उभरे और टीम को जीत की राह दिखलायी . दूसरी ओर टूर्नामेंट की अन्य सभी टीमें अपने खास-खास कुछ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर निर्भर रही. अगर वे चल गये तो टीम जीत गयी नहीं तो हार गयी.
चेन्नई के साथ फाइनल खेलने वाली गुजरात टूर्नामेंट की संभवत:सबसे तगड़ी टीम थी. लीग तालिका में वह पहले स्थान पर थी उसकी क्षमताओं पर किसी को शक नहीं था. रणनीति के मामले में यह टीम धौनी की टीम से ,जो लीग तालिका में दूसरे स्थान पर थी, जरूर उन्नीस थी लेकिन जीत के प्रति प्रतिबद्धता के मामले में इस टीम का कोई जबाब नहीं था. यही कारण रहा कि फाइनल में संघर्ष अंतिम गेंद तक पहुंचा.
वैसे आईपीएल ने कुछ गंभीर सवाल भी खड़े किये हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए. सबसे चिंतित कर देने वाली बात यह है कि टी-20 के मैच अब दो टीमों के बीच सौहार्दपूर्ण मुकाबले नहीं रह गये हैं बल्कि यह लाल, पीली, नीली, हरी वर्दियों में सजी सेनाओं के बीच जंग का एहसास दिलाते हैं. क्रिकेट का यह बदला हुआ स्वरूप वस्तुत: मौजूदा विश्व के उस चेहरे को भी सामने लाता हैं जो अपने वर्चस्व की जंग लड़ते हुए कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ चुका है और उसे अपनी जीत के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आता. वर्तमान समय में जब सभी खेल पूंजीवाद के खिलौने बन रहें हैं तब क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल को उसके चंगुल में जाने से रोका तो नहीं जा सकता लेकिन क्रकेट के मूलस्वरूप पर कुठाराघात करने वाली ताकतों के खिलाफ खड़ा तो हुआ ही जा सकता है. तभी क्रिकेट भी बचेगा और उसका वास्तविक रोमांच भी.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.