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Ranchi: हिन्दू समाज में कई ऐसा पर्व होते हैं जहां लोग बड़े श्रद्धा भाव और आस्था के साथ भगवान की मूर्ति खरीदते हैं. दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, गणेश चतुर्थी जैसे कुछ महत्वपूर्ण त्यौहार हैं जहां विशेषकर लोग मूर्ति पूजा करते हैं.
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पूरी आस्था के साथ करते है मूर्ति का निर्माण
16 जनवरी को सरस्वती पूजा है. शहर में पूजा के दो महीने पहले से ही कई जगहों पर मूर्तियां बननी शुरु हो जाती है. भक्त केवल रांची से ही नहीं बल्कि कोलकाता से भी मूर्तियां मंगवाते हैं. जहां लगभग सभी लोग मूर्तियां खरीदते हैं वहीं शहर में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पूरी आस्था के साथ खुद अपनी हाथों से मां सरस्वती की मूर्ति बनाकर पूजा करते हैं.
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15 सालों से बना रहे मूर्ति
आज हम रांची के ऐसे ही शख्स की बात कर रहे हैं जो पेश से तो डांस टीचर हैं. पर वो हर साल सरस्वती पूजा पर मां की मूर्ति अपने हाथों से ही बनाते हैं.और उसी मूर्ति की पूजा पूरी आस्था के साथ करते हैं. कडरू के रहने वाले अमित पिछले 15 सालों से काली पूजा,दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा पर मां की मूर्ति बना रहे हैं.
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लगातार डॉट इन से कलाकार अमित ने की खास बातचीत
लगातार डॉट इन की टीम से बात करते हुए अमित ने बताया कि जब को क्लास 1 में थे. तो उनके स्कूल के पास मूर्तिकार रहा करते थे. और वो पूजा के समय मूर्ति का बनाया करते थे. अमित दो घंटे वहीं खड़े होकर मूर्तिकारों द्वारा बनायी जा रही प्रतिमा को देखा करते थे. उनके मन में हमेशा से ही ये इच्छा थी कि वे भी इसे बनायें.
उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपना पहली मूर्ति बनाया तो वो आढ़ा-टेढ़ा था. सभी उसे देखकर काफी हंसे.पर उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा के कारण मूर्ति बनाने का काम नहीं छोड़ा. वो मूर्ति बनाते रहे. अब अमित लगभग 15 सालों से मूर्ति का निर्माण कर रहे हैं. उनकी बनायी गयी मूर्ति किसी प्रोफेशनल मूर्तिकार से कम नहीं दिखती है.
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खरीदी मूर्ति की पूजा करने से नहीं मिलती उतनी खुशी
अमित का कहना है कि एक-दो वर्ष ऐसे थे. जब उन्होंने मूर्ति बनाने के बजाये उसे मार्केट से खरीदा था. पर उससे वे संतुष्ट नहीं थे. बनाने में जो खुशी उन्हें मिली वो खरीदने में नहीं मिली. मूर्ति बनाना अमित का पैशन है.
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खुद की बनाई प्रतिमा से हो जाता है जुड़ाव
अमित ने बताया कि अपनी बनाई गई मूर्तियों का वह विसर्जित नहीं करते. जब मैं खुद मूर्ति बनाता हूं तो उससे एक अलग तरह का जुड़ाव हो जाता है. अपनापन लगता है. जिसके कारण उन्हें कुछ समय तक वे अपने पास ही रखते है. पर मूर्तियों को समय-समय पर मेंटेनेंस की जरुरत होती है. वरना वे खराब होने लगते हैं. उसके बाद हम उसे विसर्जित कर देते हैं.
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विलुप्त होती मिट्टी के साथ ही खोता जा रहा है हिंदू सभ्यता
अमित ने बताया कि उन्हें मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी ढुढ़ने में काफी परेशानी होती है. आस-पास खेतों और खाली पड़े प्लॉटों पर देखने के बाद भी उन्हें अच्छी मिट्टी नहीं मिलती. अंत में उन्हें कुम्हारों के पास जाकर मिट्टी खरीदनी पड़ती है. कुम्हारों को भी मिट्टी नामकुम जैसे इलाकों से भारी कीमत चुका कर ट्रैक्टर से मंगवानी पड़ती है.
वहीं जहां मिट्टी नहीं मिल रहा वहां लोगचाइनिज मूर्तियों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. सनातन धर्म में मिट्टी को शुद्ध माना जाता है. चाइनिज मूर्तियां मिट्टी की नहीं बनी होती हैं. अगर हमें अपनी संस्कृति को जिंदा रखना है तो जरुरी है कि हम मिट्टी का संरक्षण करें.
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