Akshay Kumar Jha
Ranchi: ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से पंचायत प्रतिनिधियों को लेकर दो आदेश निकाले गये हैं. पहला यह कि मुखिया को दोबारा अगर चुनाव लड़ना है तो उसे अपने कार्यकाल का पूरा हिसाब-किताब विभाग को बताना होगा. उसे एक लिस्ट तैयार करनी होगी कि उसने कौन-कौन से काम किये हैं. सरकारी पैसे का कहां उपयोग किया. क्या खरीददारी की और तमाम विवरण तैयार कर उसे बीडीओ को सौंपना है.
बीडीओ 30 दिनों के अंदर इसका फिजिकल वेरिफिकेशन करेंगे और पंचायती राज पदाधिकारी को रिपोर्ट सौंप देंगे. फिर से एक बार पंचायती राज पदाधिकारी फिकिजकल वेरिफिकेशन करेंगे और सब कुछ ठीक रहने पर विभाग को रिपोर्ट सौंप देंगे. दोबारा चुनाव लड़ने के लिए जब मुखिया उम्मीदवार शपथ पत्र दायर करेंगे, तो उन्हें यह रिपोर्ट भी साथ में देनी होगा. ऐसा नहीं करने पर शपथ पत्र अधूरा माना जायेगा. उनके खिलाफ संबंधित अधिकारी कार्रवाई करेंगे. कुछ ऐसा ही फरमान अब विभाग की तरफ से जिला परिषद सदस्य और प्रखंड के प्रमुखों के लिए निकाला गया है.
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डीसी करेंगे जिप सदस्यों और डीपीआरओ करेंगे प्रमुखों के काम का फिजिकल वेरिफिकेशन
ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से जो अधिसूचना जारी की गयी है. उसके मुताबिक जिप सदस्य और प्रमुख भी मुखिया की ही तर्ज पर एक लिस्ट तैयार करेंगे. इसमें उनके कार्यकाल के सभी योजनाओं और सरकारी पैसे से खरीदी गयी चीजों का जिक्र होगा. इस लिस्ट में शामिल सभी योजनाओं और खरीददारी की जांच डीसी खुद या डीसी की तरफ से नामित अधिकारी करेंगे.
वहीं प्रमुखों के मामले में जिला पंचायती राज पदाधिकारी (डीपीआरओ) ऐसा करेंगे. जांच करने के बाद डीसी और डीपीआरओ विभाग को इसकी सूचना देंगे और रिपोर्ट जमा करेंगे. दोबारा चुनाव लड़ते वक्त जिप सदस्यों या प्रमुखों को अपने शपथ पत्र के साथ यह रिपोर्ट भी जमा करनी होगी. नहीं तो शपथ पत्र को अधूरा माना जाएगा. ऐसा नहीं करने पर संबंधित अधिकारी जिप सदस्य या प्रमुख पर कार्रवाई करेंगे.
तो फिर विधायक और सांसदों को राहत क्यों
विभाग की तरफ से मुखिया से काम का डीटेल मांगने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा था कि मुखिया एक साइनिंग अथॉरिटी है. चेक पर साइन करने का उसके पास पावर है. इसलिए ऐसा किया जा रहा है. लेकिन जिप सदस्य और प्रमुख के मामले में तो ऐसा नहीं है. सरकारी पैसा खर्च करने की जो प्रक्रिया सांसद और विधायक के पास है, उसी प्रक्रिया के तहत जिप सदस्य और प्रमुख पैसा खर्च करते हैं. ऐसे में जिप सदस्यों और प्रमुखों से उनके कार्यकाल का ब्योरा बनवाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि विभाग की तरफ से अधिसूचना नहीं बल्कि फरमान जारी किया जा रहा है. क्यों नहीं ऐसी ही व्यवस्था विधायकों और सांसदों के लिए भी हो. आखिर क्यों छोटे जनप्रतिनिधियों को विभाग की तरफ से परेशान किया जा रहा है.
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