Vijay Shankar Singh
दिल्ली दंगों की जांच और अदालतों की टिप्पणी. दिल्ली दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के कम से कम 25 मामले अदालत में उजागर हो चुके हैं. पिछले साल उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है. हाईकोर्ट ने पुलिस को घोंडा निवासी की अपील पर केस दर्ज करने को कहा था. इस व्यक्ति ने कहा था कि दंगों के दौरान उसकी आंख में गोली लगी थी. दिल्ली पुलिस ने FIR रजिस्टर करने के आदेश का विरोध किया था.
इस मामले पर हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली पुलिस पर सख्त टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने कहा, “ऐसा दिख रहा है कि पुलिस ने अलग FIR में आरोपियों के बचने के लिए रास्ता बनाया और दुख की बात है कि पुलिस अधिकारी अपनी जांच के दौरान संवैधानिक कर्तव्य निभाने में फेल हो गए.”
राजनीतिक शत्रुता या प्रतिद्वंदिता का सबसे अधिक शिकार पुलिस होती है. और पुलिस की मुसीबत तब और बढ़ जाती है जब वह एक ऐसे राजनीतिक तंत्र के आदेश और इशारे पर काम करने लगती है, जो राजनीतिक दुर्भावना से पगा हो और पुलिस के ही कंधे पर चुनाव जीतने से लेकर राजनीतिक गुणा भाग का हित लाभ देखता हो.
दिल्ली दंगों में जितनी अधिक दिल्ली पुलिस की तफ़्तीशों की किरकिरी अदालतों ने की है और अब भी हो रही है, उससे दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को सोचना चाहिए कि कहीं न कहीं एक ऐसी सीमा रेखा खींचनी पड़ेगी कि अब और अधिक जी जहां पनाह को झुक कर कोर्निश नहीं की जा सकती है.
अब बस यही बाकी रह गया है कि केस डायरी भी सरकार में बैठा कोई अफसर या सत्तारूढ़ दल का कार्यकर्ता लिख दे और पुलिस का आईओ उस पर बस दस्तखत कर दे. वैसे अब यूपी में एसओ की कुर्सी पर सत्तारूढ़ दल के विधायक जलवा अफरोज होने ही लगे हैं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.