Shiwani Pandey
2013 में केदारनाथ में आयी आपदा की मुख्य वजह उत्तराखंड में पर्यावरण की अनदेखी कर बनाई जा रही जल विद्युत परियोजनाएं और अनियोजित कंक्रीट विकास को माना गया था. जिसका इस आपदा के पहले और बाद में पर्यावरणविदों ने इतनी तादाद में बन रहे इन बांधों को बंद करने और नई परियोजनाओं के प्रस्तावों का विरोध किया था. ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना भी उन्हीं परियोजनाओं में से एक है, जिसका विरोध भू-गर्भ वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने किया था.
लेकिन उनकी राय को दरकिनार करके ये बना और हाल आज हमारे सामने है. केदारनाथ आपदा के बाद लोगों को पर्यावरण की कीमत समझ जानी चाहिए थी और सरकार को पेड़-पौधों नदी नालों की. पर अगर सरकार और लोग इतनी जल्दी पर्यावरण की कीमत समझ लेते तो आज का दिन नही देखना पड़ता.
लेकिन 2013 के बाद हमने देखा कि दक्षिण एशिया के सबसे ऊंचे 315 मीटर ऊंचे पंचेश्वर बांध को पिथौरागढ़ में बनने पर मंजूरी दी गयी. वो भी उस जमीन पर जो भूकंप के जोन 5 के अंदर आती है. इस बांध से भारत नेपाल के 80 हज़ार लोग प्रभावित होते. यह बांध ज़ोन 5 में होने की वजह से जमीन पर पड़ने वाले वजन से आने वाले सालों में नई आपदाओं की जमीन तैयार करेगा. जिन सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध किया, उनपर पुलिस ने मुकदमे ठोके. लेकिन आज की ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना ने इन्हीं लोगों की बात को सच साबित किया है.
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दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट मोदी जी और गडकरी जी का ड्रीम चारधाम चौड़ीकरण प्रोजेक्ट हाल फिलहाल में चल रहा है. इसके खत्म होने तक एक लाख के करीब पेड़ों की बलि दी जा चुकी होगी. पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के विरोध के बावजूद नियमों को ताक पर रख कर अभी भी रोड बनाने का काम जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने मशहूर पर्यावरणविद रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी तब बनायी. जब आधा से ज्यादा काम हो चुका था और उस कमेटी के जवाब देने के बावजूद काम में कोई बाधा नहीं आयी.
आज ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के टूटने से आई बाढ़ ने पॉवर प्रोजेक्ट में काम करने वाले 150 से ज्यादा मजदूरों की जान खतरे में डाल दी है. जिनके अब शव खोजने के लिए सरकार अभियान चलाएगी. लेकिन क्या इन मजदूरों की जान की कीमत अब भविष्य के लिए रास्ते खोजेगी ? शायद नहीं. क्योंकि अगर कीमत समझी होती तो केदारनाथ में जिन हज़ारों लोगों को हमने गंवाया. उनके बाद पर्यावरण की अनदेखी करके इतनी परियोजनाएं नहीं बनायी जाती.
पर क्या सवाल यही खत्म हो जाएगा? नदियों को बांधने, कंक्रीट के जंगल खड़े करने और सड़क बनाने के नाम पर एक बनी बनाई बायो डायवर्सिटी को खत्म करने वाली इन परियोजनाओं को स्वीकृति देने वाली सरकारों पर अभी सवाल उठेगा या नहीं? ये चल रही परियोजनाएं बंद होंगी या नहीं?
विकास जरूरी है पर, किसके लिए और किसकी कीमत पर?
डिस्क्लेमर : ये लेखिका का निजी विचार हैं.