मिथिलेश कुमार
Dhanbad: कभी बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के शानदार काल का साक्षी धनबाद का बस डिपो अब दुर्दिन की घड़ियां गिन रहा है. यात्रियों की चहल-पहल तो है, मगर यहां यात्री सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है. कतरास के लिलोरी स्थान के पास नया बस स्टैंड बनने की घोषणा के बाद अब डिपो के सौंदर्यीकरण की उम्मीद भी खत्म हो चुकी है.
एजेंट चिल्लाकर यात्रियों को बैठाते हैं बस में
अब भी इस बस डिपो से बिहार, झारखंड और बंगाल के विभिन्न हिस्सों तक बसों का आवागमन होता है. यात्रियों का झुंड डिपो में घुसते ही अपने गंतव्य के लिए बसों की तलाश करता है. मगर इंतजार करना पड़ा तो उनके लिए बैठने तक की जगह नहीं. खाने पीने के सामान के लिए ठेला-खोमचे वालों का सहारा है या परिसर में झोपड़ीनुमा होटलों का रुख करना पड़ता है, जहां न साफ-सफाई का कोई खयाल है और न खाद्य पदार्थों की शुद्धता गारंटी है. स्टैंड में पीने के पानी के लिए नल तक नहीं है.
न रोशनी का प्रबंध, न टिकट काउंटर
रात में रोशनी का प्रबंध भी आधा अधूरा है. बस का टिकट कटाना हो तो कोई काउंटर नहीं है. एजेंट चिल्ला कर यात्री बटोरते हैं और बस में बैठाने के बाद टिकट बनाते हैं. कुछ काउंटर हैं भी तो उसे बस मालिकों ने शेड बनाकर खुद के बैठने-उठने की कामचलाऊ व्यवस्था बना रखी है. यहां खाने पीने की सामग्री भी टाट में ही बिकती है.
कभी बिहार के बड़े बस डिपो में होती थी गिनती
एकीकृत बिहार में धनबाद बस डिपो की गिनती राज्य के कुछ बड़े बस स्टैंड में होती थी. यहां पथ परिवहन निगम के कमिश्नर भी बैठते थे. उनका कार्यालय बस डिपो के पीछे हुआ करता था, जहां उनके साथ कर्मचारियों का बड़ा दल काम करता था. उस स्टैंड भी व्यवस्थित हुआ करता था. कमिश्नर का कार्यालय अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. यह अब जिला परिवहन विभाग के अधीन है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है.
डिपो के आधे हिस्से में चलती है कचरे की दुकान
बस डिपो अभी नगर निगम के अधीन है. इसके आधे से अधिक हिस्से में कचरे की दुकान चल रही है. कबाड़ में तब्दील हो चुके वाहन, कूड़ों का ढेर, कम्पैक्टर स्टेशन, सफाई एजेंसी रेमकी का वर्कशॉप और जंगल, झाड़ नजर आते हैं. पिछले साल निगम के अफसरों ने अपने कर्मियों के साथ श्रमदान कर हरियाली लाने की कोशिश की थी. हरियाली के उद्देश्य से लगाए गए वे पौधे भी अब सूख चुके हैं.
गुजरात के बड़ोदरा की तर्ज पर जीर्णोद्धार की हुई थी घोषणा
19 जुलाई 2017 को तत्कालीन मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल ने गुजरात के बड़ोदरा शहर की तर्ज पर बस डिपो के जीर्णोद्धार की घोषणा की थी. 250 करोड़ की लागत से इंटर स्टेट बस टर्मिनल का निर्माण होना था. प्रस्ताव तैयार हुआ, डीपीआर भी बना. मगर कुछ ही दिन बाद सब कुछ शांत हो गया. कुछ साल बाद नगर आयुक्त ने बस डिपो में यात्री शेड, आधुनिक शौचालय, वेटिंग हॉल, पेयजल, छोटा मार्केट कांप्लेक्स निर्माण आदि की घोषणा की. मगर हुआ कुछ नहीं. अब 8 लेन सड़क के किनारे लिलोरी मंदिर के समीप 18 एकड़ सरकारी जमीन पर उनकी नजर है. मगर काम वहां दिखाई नहीं पड़ रहा है.
अभी कुछ फाइनल नहीं है: अपर नगर आयुक्त
अपर नगर आयुक्त महेश्वर महतो कहते हैं कि बड़टांड बस डिपो का जीर्णोद्धार कब होगा, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. जहां तक इंटर स्टेट बस टर्मिनल का सवाल है, तो कतरास के लिलोरी स्थान के पास जमीन देखी गई है. नगर विकास व आवास विभाग को प्रस्ताव भी भेज दिया गया है. लेकिन अभी कुछ फाइनल नहीं है.
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