Mithilesh Kumar
Dhanbad : बीसीसीएल कर्मी रहे मदन मोहन सहाय को धनबादवासी आज भी आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के लिए सम्मान से याद करते हैं. मदन मोहन बाबू महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. यही वजह रही कि पटना से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होकर अंग्रेजों के जुर्म के खिलाफ आवाज बुलंद की. अंग्रेजों को यह रास नहीं आया और गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. अंग्रेज सिपाही जेल में उन्हें पेट के बल लिटा कर पीटते थे, शरीर पर गर्म पानी डालते थे, खाना भी आधा पेट देते थे. इसके खिलाफ बाहर चल रहे विद्रोह को देखते हुए कुछ महीने बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन इतने जुल्म सहने के बाद भी उनके हौसले कम नहीं हुए और अलग-अलग आंदोलनों में सक्रिय रहे.
दस साल की उम्र में गांव छोड़ धनबाद आ गए, बुआ ने पाला
मदन मोहन सहाय के दूसरे पुत्र प्रदीप मोहन सहाय बताते हैं कि पिता जी का जन्म वर्ष 1922 में भागलपुर के नाथनगर गांव में हुआ था. वे तीन भाई थे. पिताजी जब 10 साल के थे तभी दादा और दादी का निधन हो गया. इसके बाद तीनों भाई गांव छोड़कर धनबाद अपने बहन और जीजा के पास आ गए. बुआजी ने यहीं पर सभी का भरन-पोषण किया. प्ररंभिक पढ़ाई धनबाद में पूरा करने के बाद पिताजी पटना चले और वहीं से मैट्रिक की पढ़ाई की. इसी दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गए.
शुरुआत में कोलियरियों में करते थे फेरी का काम
प्रदीप मोहन सहाय ने बताया कि आजादी मिलने के बाद पिताजी ने फेरी का काम शुरू कर दिया. कोलियरी क्षेत्रों में घूम-घूम कर कपड़ा बेचते थे. कुछ दिन बाद सुदामडीह कोलयरी में काम मिल गया. कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण के बाद सरकारी कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमटेड बनी और पिताजी सुदामडीह से धनसार कोलयरी में आ गए. मां माधुरी सहाय भी बीसीसीएल में कार्यरत थीं. पूरा जीवन यहीं बिताया. वर्ष 2017 में पिताजी का निधन हो गया.
इंदिरा गांधी ने किया था सम्मानित
1970 के दशक में मदन मोहन सहाय को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सम्मानित किया था. उन्हें पेंशन के अलावा रेलवे का पास भी मिला था. सहाय को पांच संतानें हैं. बड़ा बेटा धनबाद में मेडिसिन का कारोबार करते हैं, दूसरे बेटे प्रदीप मोहन सहाय मर्चेट नेवी में हैं, जबकि सबसे छोटे पुत्र चिन्नई में निजी कंपनी में कार्यरत हैं.
नेताजी की सेना में शामिल थे दोनों भाई
प्रदीप मोहन सहाय ने बताया कि पिताजी तीन भाई थे, सभी स्वतंत्रा सेनानी थे. दोनों चाचा, चाची और एक चाचा की बेटी ने सुभाष चंद्र बोस की सेना में शामिल होकर आजादी की लड़ाई लड़ी. सिंगापुर से रंगून (वर्मा) तक लड़ाई में परिवार शामिल रहा. कजिन भारती चौधरी की शादी नेताजी के भाई के लड़के से हुई है. पिछले दिनों कोलकाता में हुए कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कजिन को सम्मानित किया था.
यह भी पढ़ें : धनबाद: बारिश से हालात थोड़े सुधरे, सुखाड़ की हालत नहीं बदली