Dhanbad : बहरेपन के इलाज़ के लिए प्रयोग किये जाने वाले आधुनिकतम कॉकलियर इम्प्लांट की विस्तृत जानकारी कोलकाता के पीयरलेस हॉस्पिटल के हेड एंड नेक सर्जन डॉ एमएन भट्टाचार्य ने बुधवार 2 मार्च को धनबाद क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में दी. पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि बच्चे में पांच वर्ष की उम्र तक इस बीमारी की पहचान कर इस तकनीक के जरिये डिवाइस को मरीज़ के कान के भीतर इम्प्लांट करने से यह बेहतर रिजल्ट देता है. उन्होंने कहा कि इस तकनीक की खोज 1970-80 के दशक में हुई थी. इस तकनीक में टाइटेनियम से बनी हुई एक कृत्रिम नस को कान के भीतर इम्प्लांट किया जाता है, जबकि कान के बाहर एक डिवाइस (प्रोसेसर) लगा दिया जाता है.
इस प्रोसेसर की मदद से साउंड वेब इलेक्ट्रिक एनर्जी में बदलकर ब्रेन तक पहुंचती है. ऑपरेशन के बाद फिजियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है. इसके बाद मरीज बातों को सुनने और समझने लगता है. उन्होंने बताया कि पश्चिमी देशों में लोग इसके प्रति जागरूक हैं. वहां बच्चे के जन्म के समय ही डॉक्टर ओएई और वेरा टेस्ट करके जांच लेते हैं और समय पर इसका इलाज हो जाता है. भारत में यह तकनीक नई है. इसलिए प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से लोगों तक इस तकनीक की जानकारी पहुंचाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि कोलकाता स्थित पीयरलेस अस्पताल में इस डिवाइस को इम्प्लांट करने का खर्च 1.05 लाख से तीन लाख तक आता है, जबकि इस डिवाइस की कीमत 5 लाख से 14 लाख तक है.
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