Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) कृषि बिल से राज्य सरकार को कितना फायदा होगा, व्यवसायियों पर टैक्स की कैसी मार पड़ेगी व आम जनता को कितनी महंगाई झेलनी पड़ेगी, यह तर्क उन मजदूरों के लिए बेमानी हो गया है, जो फिलहाल रोजी-रोटी के लिए बिलबिलाते फिर रहे हैं. विगत 15 फरवरी से ही उन्हें दिन में ही तारे दिखने लगे हैं. कृषि बिल के निरस्तीकरण की मांग को ले व्यवसायी सड़क पर हैं. मंडी की दुकानें बंद हैं, ट्रकों की आवाजाही ठप हो गई है तो कृषि बाजार के सैकड़ों मजदूर जाएं तो कहां. यह सवाल मुंह बाये खड़ा है और जवाब किसी के पास नहीं.
कौन जिम्मेवारी लेगा इन 1000 मजदूरों की
हड़ताल के बाद से कृषि बाजार के ठेला चालक और मोटिया मजदूर दाने दाने को मोहताज हो रहे हैं. जानकारी के अनुसार बाजार समिति में थोक व्यवसायियों के साथ लगभग 1000 मजदूर जुड़े हुए हैं. ये मजदूर बाज़ार समिति में प्रतिदिन खाद्यान्न , फल और सब्जी से भरे ट्रकों की अनलोडिंग व सामान लोकल बाजार तक पहुंचा कर अपना गुजर-बसर करते हैं. परंतु हड़ताल के बाद वे बेरोजगार बैठे हैं. 100 से अधिक रिक्शा – ठेला चालक, कई भोजनालय और 10 से अधिक चाय पानी बेचनेवाले दुकानदारों की हालत खस्ता होती जा रही है. व्यवसायी संगठन के महासचिव बिकास कंधवे कहते हैं कि हड़ताल का असर इन मजदूरों की रोजी रोटी पर पड़ा है. ये सभी कृषि बाजार के सहयोगी हैं, जिनकी रोजी-रोटी पर आफत आ गई है.
कैसे भरें अपना पेट, कैसे चलेगा घर का खर्चा
बिहार के जमुई जिले से 5 वर्ष पूर्व रोजगार की तलाश में आये मुकेश यादव कृषि बाजार में मोटिया मजदूर हैं. इसी मजदूरी की बदौलत परिवार का पेट पाल रहे हैं. अब हड़ताल के बाद से मजदूरी मिलना बंद हो गया है तो चिंता सता रही है कि आखिर अपना और अपने बच्चों का पेट कैसे भरें. हड़ताल भी ऐसी, जिसकी कोई सीमा नहीं है. ऐसे में वह काफी चिंतित हैं.
नमक रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो रही है साहब
बिहार के सौदागर साव पिछले 20 वर्षों से कृषि बाजार में मोटिया मजदूर का काम करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि हड़ताल के बाद यहां के मजदूर, रिक्शा चालक समेत तमाम लोगों को खाने के लाले पड़ रहे हैं. पिछले 2 दिनों से सूखी रोटी और नमक खाकर गुजर बसर कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले महीने ही बचे खुचे पैसे अपने परिवार के पास गांव भेज चुके हैं. हाथ खाली है और हड़ताल के कारण अब पेट भी काली ही रहेगा.
होली सिर पर नहीं होती तो गांव चले जाते
बिहार, जमुई के रामधनी राम बताते हैं कि गांव में उनके परिवार में 8 सदस्य हैं जिनमें माता-पिता, बीवी और 5 बच्चे शामिल हैं. सभी के भरन पोषण का पूरा जिम्मा उन्हीं पर है. उन्होंने बताया कि इस हड़ताल के बाद हम गांव लौट जाते, लेकिन सामने होली है और ऐसे में खाली हाथ गांव किस मुंह से जाएं.
जानकारी होती तो गांव से आते ही नहीं
कृषि बाजार में मोटिया का काम करने वाले रामाशीष राम ने कहा कि वह पिछले 20 दिनों से गांव में थे. उन्हें जानकारी नहीं थी कि झारखंड में अनिश्चितकालीन हड़ताल होने वाली है, वरना धनबाद लौटते ही नहीं. वह बताते हैं कि गांव से मात्र ₹1000 लेकर सुबह धनबाद पहुंचे हैं. अब कितने दिनों तक गुजर-बसर कर सकेंगे, भगवान ही मालिक है.