महापड़ाव में संयुक्त मोर्चा ने किया केंद्र की नीतियों के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान
Dhanbad: केंद्र सरकार द्वारा लेबर कानूनों में संशोधन के विरोध सहित अन्य मुद्दों को लेकर बुधवार 9 अगस्त को गांधी सेवा सदन में धरना दिया और सरकार की नीतियों के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया. महापड़ाव के नाम से इस आंदोलन के जरिये संयुक्त मोर्चा ने सरकारी और निजी क्षेत्र में नित नये नियमों का पुरजोर विरोध किया. इंटक के वरिष्ठ नेता एके झा ने कहा कि भाजपा के शासनकाल में सबसे ज्यादा कोई प्रताड़ित हुआ है तो वह मजदूर वर्ग है. यह सरकार मजदूर, किसानों पर अग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर रही है. नया लेबर कानून सहित किसानों को एमएसपी का लाभ देने में सरकार मनमानी कर रही है. केंद्र सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के इशारे पर काम करती है.
उन्होंने कहा कि इस सरकार को इंडिया नाम से भी दिक्कत है. आए दिन अनाप शनाप बयानबाजी की जा रही है. सरकार हर मोर्चे पर विफल है. महंगाई, बेरोजगारी चरम पर पहुंच गईं है. इसीलिए 17 सूत्री मांगों को लेकर चरणबद्ध आंदोलन शुरू कर दिया है, जिसका पहला पड़ाव आज है. जब तक सरकार मजदूर विरोधी कानूनों को खत्म नहीं कर देती, आंदोलन जारी रहेगा. सीटू के ज्ञान शंकर मजूमदार, विश्वजीत चक्रवर्ती, इंटक के मन्नान मल्लिक, वैभव सिन्हा, माले के उपेंद्र सिंह आदि ने मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ाई में सभी से साथ आने की अपील की.
अरूप चटर्जी ने किया एकजुटता का आह्वान
बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के महासचिव सह पूर्व विधायक अरुप चटर्जी ने कहा बीजेपी पब्लिक सेक्टर को बेचने में लगी है. लेबर कानून बदलकर मजदूरों के तमाम अधिकारों का हनन करने का प्रयास किया जा रहा है. रघुवर सरकार के समय में 40 से 80 मजदूर वाले संस्थान श्रम कानून के अंतर्गत नहीं आते थे.कांड्रा जैसे इंडस्ट्रियल एरिया में जहां 200 मजदूर काम करते हैं, वहां 15 मजदूर की ही गिनती होती है. इनपर भी श्रम कानून लागू नहीं होता है. उन्हें पीएफ, ईएसआई का लाभ नहीं मिलता है. आज लेबर डिपार्टमेंट पहले के मुताबिक काफी कमजोर है. वे दबाव में काम कर रहे हैं. बैंको का निजीकरण किया जा रहा है, कोल इंडिया के शेयर बेचे जा रहे हैं. रेलवे का निजीकरण किया जा रहा है. सभी यूनियनों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है, तभी मजदूरों को न्याय दिलाने में सफल होंगे.
17 सूत्री मांगें
केंद्र द्वारा बनाए गए 4 लेबर कानून को रद्द करने, सी 2 + 50 प्रतिशत की दर से कृषि उत्पाद की खरीद सुनिश्चित करने तथा बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लेने, सार्वजनिक उपक्रम और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण बंद करने, सरकारी परियोजनाओं में कार्यरत कर्मियों के लिए न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने, मनरेगा के लिए आवंटित राशि में बढ़ोतरी तथा शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना का विस्तार करने, आउटसोर्स कंपनियों में कार्यरत कर्मियों को स्थाई करने, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वापस लेने, एनपीएस को रद्द करने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने, प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने तथा उन्हें कल्याण बोर्ड के अंतर्गत लाने, आईएलओ कन्वेंशन के अनुसार अविलंब त्रिपक्षीय भारतीय श्रम सम्मेलन आदि मांगें शामिल हैं.