- रांची से बाहर रहने के कारण राज्यपाल से नहीं हो सकी मुलाकात
- राजभवन ने 4 दिन बाद राज्यपाल से मिलने का समय दिया
- विस्थापितों में 84 मौजा के 116 गांव के ग्रामीण हैं शामिल
Ranchi : अपनी मांगों को लेकर 109 दिन तक धरना- प्रदर्शन करने के बाद चांडिल डैम के विस्थापितों के सब्र का बंध टूट गया. सरकार की बेरुखी को देखते हुए 84 मौजा के 116 गांव के विस्थापित तीन दिन में 96 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर मंगलवार को अपनी व्यथा सुनाने राजभवन पहुंचे. हालांकि राज्यपाल से उनकी मुलाकात नहीं हो पायी. अखिल झारखंड विस्थापित अधिकार मंच के तत्वावधान में इन लोगों ने जाकिर हुसैन पार्क में धरना- प्रदर्शन किया. इस दौरान राज्यपाल को 10 सूत्री मांग पत्र सौंपने पहुंचे. राज्यपाल के रांची से बाहर रहने के कारण विस्थापितों की उनसे मुलाकात नहीं हो पायी. राजभवन की ओर से सूचित किया गया कि 4 दिन के उपरांत राज्यपाल विस्थापितों की समस्या सुनने को इच्छुक हैं. उनसे मुलाकात के लिए विस्थापित प्रतिनिधियों को टोकन दिया गया.
भारी बारिश के बीच तीन दिन तक पैदल चलते रहे सभी
चांडिल डैम के विस्थापित 1 अक्टूबर से पदयात्रा करते हुए 3 अक्टूबर को दिन में राजभवन के समक्ष पहुंचे. इस पदयात्रा में शामिल लोगों के चेहरे पर थकान झलक रही थी. चांडिल से रांची आयी बैशाखी ने कहा कि बाप-दादा की जमीन डैम बनाने और विकास के नाम पर तो ले लिया गया, लेकिन हमारी हालात को बदलने के लिए किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. निर्मला महतो जिनकी उम्र 70 की है, ने कहा कि मुसलाधार बारिश में हम सभी पिछले 3 दिनों से पैदल चल रहे हैं. मजबूरी है. कुछ महिलाएं तो चप्पल तक नहीं पहनी थी. पदयात्रा में महिला, पुरुष, युवा, वृद्ध सभी शामिल थे. कहा कि बस एक उम्मीद राजभवन की तरफ है. इसलिए अपना दर्द और व्यथा सुनाने के लिए पदयात्रा में निकल पड़े. इससे पहले ये लोग 109 दिन तक चांडिल डैम स्थित पुराना अधीक्षण अभियंता कार्यालय के पास धरना दे रहे थे. आंदोलन में मुख्य रूप से सनातन सिंह मुंडा, दीनबंधु कुम्हार, अरुण धीवर, विवेक सिंह बाबू, गीता रानी महतो, मंजू गोराई, लक्ष्मी महतो, प्रथमी महतो, मोनिका महतो, सीमंत कुमार महतो, काशीनाथ महतो, सागर महतो, गोराचांद, धनंजय, हरेकृष्ण महतो, विभोचना महतो, त्रिलोचन महतो, इंद्रजीत महतो, राजेश महतो, मलखान महतो, सुधांशु महतो, तापस महतो, हाराधन महतो शामिल हैं.
हमें बेघर करनेवाले अफसरों को नींद से जगाने आये हैं- राकेश
पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे राकेश महतो ने कहा कि आज हमें पुश्तैनी घर से बेघर कर भिखारी बनाकर दर-दर भटकाने वाले अफसरों एवं सरकारों को उनकी कुंभकर्णी नींद से जगाने के लिए हम सभी कफन बांधकर निकल पड़े हैं. दुर्भाग्य है कि हम सभी 40 वर्षों से अपना अधिकार पाने के लिए संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं एवं अपनी मांगों को रख रहे हैं . परंतु इतने दिनों तक आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला. हमारे घर में पानी भर जाता है. फसलें खराब हो जाती है. यह हमारी आखिरी लड़ाई है. सिविल कोर्ट के वकील मदन महतो ने कहा कि विस्थापितों को न्याय दिलाने के लिए पीआईएल फाइल करेंगे.
क्या हैं इनकी दस सूत्री मांगें
1. पुनर्वास के लिए मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराया जाए एवं पुनर्वास स्थल पर बसाए गए सभी विस्थापितों को जमीन का पट्टा दिया जाए.
2. चांडिल डैम द्वारा विस्थापन के बदले में मुआवजा, नौकरी, विकास पुस्तिका, पुनर्वास पैकेज दिया जाए.
3. प्लॉटों की सीबीआई जांच हो. सभी विस्थापितों को खतियान के समतुल्य एक विशेष पहचान पत्र दिया जाए.
4. चांडिल डैम के माध्यम से सृजित होने वाली हर योजना में रोजगार और लाभ का पहला अधिकार चांडिल डैम विस्थापितों को प्राप्त हो.
5. चांडिल डैम विस्थापितों की संपूर्ण समस्या का समाधान होने तक डैम का जलस्तर 177 आरएल पर रखा जाए.
6. 28 सितंबर 2022 को अनशन के दौरान चांडिल डैम कार्यालय परिसर के समक्ष ट्रैक्टर द्वारा कुचले जाने से घायल हुए व्यक्तियों को मुआवजा तथा सरकारी नौकरी दी जाए.
7. विस्थापित परिवार को सरकारी नौकरी दी जाए .
8. प्रत्येक विस्थापित परिवार को आज की महंगाई दर के अनुसार मुआवजा दिया जाए.
9. प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक विस्थापित परिवार को 25 डिसमिल जमीन दी जानी थी, जो अब तक किसी को नहीं मिली, जिसे जल्द पूरा किया जाए.
10. 18 वर्ष पूरा करने वाले सभी विस्थापितों के नाम विकास पुस्तिका निर्गत किया जाए. हमारी मांगों में विस्थापित एवं सरकार के बीच सांमजस्य स्थापित हेतु समन्वय समिति का गठन किया जाए एवं उस समिति में अखिल झारखंड विस्थापित अधिकार मंच को भी रखा जाए.
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