NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट ने, कामकाजी पतियों द्वारा पत्नियों को अक्सर यह सुनाने पर कि तुम घर में करती ही क्या हो? अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर में काम करने वाली महिला पुरुषों की तुलना में बिना पैसे के ज्यादा काम करती हैं.
कहा कि घर में काम करने वाली पत्नियों की कीमत कामकाजी पतियों से कहीं भी कम नहीं है. कोर्ट का मानना था कि घर में काम करने वाली महिलाओं के श्रम को पहचानना जरूरी है. उनके काम के जरिए घर की आर्थिक हालत को मजबूती मिलती है और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है.
बता दें कि जस्टिस एनवी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए एक दंपती के रिश्तेदार का मुआवजा बढ़ाने का फैसला सुनाया. खबर है कि इस दंपती की मौत दिल्ली में एक दुर्घटना में हो गयी थी.
इसे भी पढ़ें : प्रणब मुखर्जी की किताब में पीएम को सलाह, मोदी को विपक्ष की आवाज सुननी चाहिए, द प्रेसिडेंसियल ईयर्स बाजार में आ गयी
इंश्योरेंस कंपनी को 11.20 लाख की राशि बढ़ाकर 33.20 लाख मुआवजा देने का आदेश
पीठ ने मृतक के पिता को इंश्योरेंस कंपनी से मिलने वाली मुआवजे की 11.20 लाख की राशि बढ़ाकर 33.20 लाख करने और इसपर मई 2014 से 9% ब्याज देने का फैसला सुनाया. जस्टिस रमन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के लता वाधवा केस में दिये गये फैसले को आगे बढ़ाते हुए यह फैसला दिया.
दरअसल, 2001 में वाधवा केस में सुप्रीम कोर्ट ने मृतक महिला के घर में किये जाने वाले काम को आधार मानते हुए उसके परिजनों को मुआवजा देने का फैसला सुनाया था. उस महिला की मौत एक समारोह में आग लगने की वजह से हो गयी थी.
इसे भी पढ़ें : रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट : लद्दाख में चीन को भारतीय सैनिकों ने करारा जवाब दिया
जस्टिस रमन्ना ने घरेलू कामकाज को महिलाओं को मुख्य व्यवसाय माना
जस्टिस रमन्ना ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 16 करोड़ महिलाएं घरेलू कामकाज में लगी रहती हैं. जस्टिस ने इसे महिलाओं को मुख्य व्यवसाय माना. जनगणना में महज 57 लाख के लगभग पुरुषो ने अपना व्यवसाय घरेलू कामकाज बताया. जान लें कि जस्टिस रमन्ना ने अपने फैसले में हाल में नैशनल स्टैटिकल ऑफिस की रिपोर्ट का भी हवाला दिया.
टाइम यूज इन इंडिया 2019 नामक इस रिपोर्ट में दर्ज है कि औसतन, महिलाएं एक दिन में करीब 299 मिनट घरेलू कामों में लगाती हैं. इसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है, जबकि पुरुष औसतन 97 मिनट घरेलू काम में खर्च करते हैं.
इसे भी पढ़ें : संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से, आम बजट एक फरवरी को
पुरुष घरेलू कामकाज में 76 मिनट, महिलाएं134 मिनट खर्च करती हैं
जस्टिस रमन्ना ने कहा कि एक दिन में महिलाएं घर के सदस्यों की देखभाल के कामों में 134 मिनट खर्च करती हैं, जबकि पुरुष ऐसे कामों में केवल 76 मिनट ही जाया करते हैं. इसका मतलब महिलाएं औसतन 16.9% समय बिना पैसे के घरेलू कामकाज में खर्च करती हैं जबकि 2.6% घर के सदस्यों की देखभाल में लगाती है. पुरुषों की बात करें तो यह औसत 1.7% और 0.8% है.
घरेलू कामकाज में पुरुषों की तुलना में महिलाएं कहीं आगे
जस्टिस के अनुसार अगर किसी शख्स के घरेलू कामकाज के लिए लगाये जाने वाले समय पर बात करें तो महिलाएं इसमे कहीं आगे हैं. वह कई तरह की घरेलू कामकाज को करती हैं. महिलाए पूरे परिवार के लिए खाना बनाती हैं, खाने-पीने के सामान और घरेलू जरूरतों की चीजें खरीदती हैं. घर की साफ-सफाई का ख्याल रखती हैं. बच्चों और बुजुर्गों की जरूरतों का ख्याल रखती हैं. घरेलू खर्चे को मैनेज भी करती हैं.
कामकाजी महिलाओं की नैशनल इनकम फिक्स करना जरूरी
इस क्रम में जस्टिस रमन्ना ने कहा कि ग्राणीम इलाकों की महिलाएं अक्सर खेती के कामों में मदद करती हैं. महिलाएं खेती की गतिविधियों से लेकर मवेशियों के खान-पान पर भी ध्यान देती हैं. उन्होंने कहा कि कामकाजी महिलाओं की नैशनल इनकम फिक्स करना, उनके कामों को मान्यता देना अहम होगा. महिलाएं अपनी पसंद से या फिर सामाजिक/सांस्कृतिक नियमों को तहत भले ही ऐसा करती हैं, लेकिन उनके कामों को पहचान मिलनी जाहिए