- जलाशय के बन जाने से सैकड़ों ग्रामीण होते लाभान्वित
Sabbir Alam
Koderma/ markachho : डोमचांच प्रखंड में बनने वाला केशो जलाशय पिछले 40 वर्षों से लंबित पड़ा हुआ है. इसका उद्धार कब होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. हजारों हेक्टयर भूमि पर सिंचाई सुविधा बहाल करने को लेकर एकीकृत बिहार में इस योजना की शुरूआत हुई थी. लेकिन झारखंड बनने के 23 वर्ष पूरा होने के बाद भी यह परियोजना अब तक अधूरी है. जानकारी के अनुसार, एकीकृत बिहार में वर्ष 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने इलाके के किसानों को पटवन की सुविधा उपलब्ध कराने को लेकर दो महत्वपूर्ण योजना का शिलान्यास किया था. उस समय यह हजारीबाग जिले के मरकच्चो प्रखंड में आता था. पचखेरों जलाशय व केशो जलाशय दोनों मरकच्चो प्रखंड के किसानों के लिए वरदान साबित होना था. पचखेरो जलाशय का कार्य 8 वर्ष पूर्व 2015 में पूर्ण हो चुका है, जबकि केशो जलाशय परियोजना अब तक फाइलों में ही सिमटी है.
जांच में साढ़े 12 करोड़ की अनियमितता सामने आई थी
दोनों जलाशय योजना पर काम विजेता कंस्ट्रक्शन रांची कर रही थी. एक योजना पूरी हुई, तो दूसरी योजना पर विजेता कंस्ट्रक्शन ने दोबारा काम शुरू किया था. लेकिन कंस्ट्रक्शन कंपनी के द्वारा योजना में भ्रष्टाचार का मामला सामने आने पर झारखंड मंत्रिमंडल निगरानी की तकनीकी समिति से जांच कराई गई थी. जांच में साढ़े 12 करोड़ की अनियमितता सामने आई थी. इसके बाद विजेता कंस्ट्रक्शन के खिलाफ वर्ष 2017 में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. जांच रिपोर्ट में तकनीकी समिति ने कहा था कि कंपनी ने बगैर कार्य कराये ही भुगतान ले लिया. इस मामले में 13 अभियंता दोषी पाए गए थे. मामले की जांच 2016 से ही चल रही थी.
2017 से ही केशो जलाशय का कार्य बंद पड़ा है
इससे पहले हजारीबाग जलपथ प्रक्षेत्र के मुख्य अभियंता की अध्यक्षता में केशो जलाशय परियोजना से संबंधित विजेता कंस्ट्रक्शन कंपनी के क्रियाकलापों की जांच की गई थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सिर्फ 25 करोड़ का काम हुआ और कंपनी ने 44 करोड़ का भुगतान ले लिया. ठेकेदार पर प्राथमिकी दर्ज होने के बाद 2017 से ही केशो जलाशय का कार्य बंद पड़ा है. विजेता कंस्ट्रक्शन कंपनी पर एसीबी की ओर से मामला दर्ज किए जाने के बाद से ही केशो जलाशय परियोजना का कार्य बंद पड़ा है.
वर्षों से जंग खा रहे करोड़ों के उपकरण
वहीं परियोजना निर्माण स्थल पर संवेदक-कंपनी के करोड़ों के उपकरण वर्षों से जंग खा रहे हैं. कार्य स्थल पर पाया गया कि निर्माण स्थल पर जेसीबी, पोकलेन, हाईवा सहित कई वाहन जंग खा रहे हैं. इसकी पहरेदारी के लिए बिनोद राम, इंदरदेव राम, सिकंदर राम, नारायण राम, विजय राम, सकलदेव राम को रखा गया था, जो 2007 से लेकर अभी तक पहरेदारी कर रहे हैं. लेकिन इन पहरेदारों का पैसा 2010 से ही बकाया है. इन लोगों ने बताया कि कंपनी के करोड़ों रुपए की संपत्ति की पहरेदारी छोड़ भी नहीं सकते हैं. इन सभी पहरेदारों के सामने अपनी बकाया राशि किससे मांगें, यह सबसे बड़ी समस्या हो गई है. इन लोगों के समक्ष भुखमरी जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है. मामले को लेकर इन पहरेदारों ने पूर्व उपायुक्त आदित्य रंजन को आवेदन देकर अपनी समस्या से अवगत कराया था. लेकिन समस्या जस की तस पड़ी हुई है. अब तक निर्माण कार्य पूर्ण भी नहीं हो सका है. बांध – कैनाल का भी कार्य अधूरा पड़ा है.
500 किसान जमीन देकर विस्थापित हो चुके हैं
ज्ञात हो कि डैम (जलाशय) का निर्माण होने पर डोमचांच प्रखंड व जयनगर प्रखंड की करीब 1000 हेक्टेयर जमीन में पटवन की सुविधा बहाल हो सकती है. लेकिन लगभग 40 वर्ष बीत जाने के बाद भी किसानों का सपना धरा का धरा रह गया है. इस डैम के लिए लगभग 500 किसान जमीन देकर विस्थापित हो चुके हैं. डूब क्षेत्र में गैरमजरुआ खाता की जमीन पर सरकार किसानों का उनका उचित मुआवजा भी नहीं दे रही है. जबकि वह 5 -6 दशकों से भी ज्यादा दिनों से अपनी जमीन पर खेती -बाड़ी करते हुए मालगुजारी रसीद कटवाने के साथ-साथ वर्षों से खरीद -बिक्री भी कर रहे थे.
66 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी
जानकारी के अनुसार केशो जलाशय परियोजना की कुल लागत 7 करोड़ थी, जो वर्तमान में बढ़कर 66 करोड़ हो चुकी है. भूमि अधिकरण किए जाने के बाद वर्ष 1987 में डैम का निर्माण कार्य शुरू किया गया था. निर्माण कार्य को पांच ठेकेदारों के बीच कार्य आवंटित किया गया था. सभी ठेकेदार 1990 में कार्य को अधूरा छोड़कर चले गए. झारखंड बनने के बाद सरकार ने योजना की सुध लेते हुए पूरा करने का बीड़ा उठाया था. वर्ष 2011 में योजना के लिए 66 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी.
सरकार की रवैया उदासीन- शालिनी गुप्ता
पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष शालिनी गुप्ता ने बताया कि इस जलाशय के निर्माण होने से लगभग 10000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो पाता. साथ ही 500 से ज्यादा किसान लाभान्वित हो पाते. साथ ही इस जलाशय का निर्माण होने के बाद आसपास के गांव में पीने के पानी की समस्या भी दूर हो पाती .इस जलाशय को लेकर सरकार की रवैया उदासीन है.
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