Ranchi : मैथिली की एक सुप्रसिद्ध लेखिका-अनुवादक-भाषाविद् और जेएनयू में प्राध्यापिका ने पिछले दिनों जब रक्त से लथपथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की तो लोग हतप्रभ रह गये. अंग्रेजी में शेयर इस पोस्ट में उन्होंने अपने घरेलू हिंसा के शिकार होने और करीब 25 साल की शादीशुदा जिंदगी में अनवरत शोषित होने की बात कही और कहा कि अब तक चुप रही पर अब नहीं. सभी वैधानिक कदम उठाउंगी और अन्याय का प्रतिकार करूंगी. एक पढ़ी लिखी आत्मनिर्भर महिला जब अपने खिलाफ होने वाले अन्याय का प्रतिकार 25 साल तक नहीं कर पातीं तो आम महिलाओं का क्या हाल होगा, सहज समझा जा सकता है. यह केस यह भी जाहिर करता है कि घरेलू हिंसा का आर्थिक स्थिति, अशिक्षा आदि से कोई संबंध नहीं होता. झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली महिलाएं/लड़कियां भी इसकी उतनी ही शिकार होती हैं, जितना अट्टालिकाओं और लग्जरियस अपार्टमेंट में रहने वाली महिलाएं. (पढ़ें, मास्टर प्लान 2037 पर 60 लोगों ने दर्ज करायी आपत्ति)

क्या है घरेलू हिंसा
किसी व्यक्ति को शारीरिक-मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना घरेलू हिंसा है. दोषी भी कोई अपना, नजदीकी परिजन ही होता है. इस कारण पीड़ित हमेशा तनाव व डर में रहता है कि पता नहीं कब क्या हो जाये. शारीरिक हिंसा यानी थप्पड़ मारना, मुक्का मारना, बाल ,खींचना, यौन संबंध (पति-पत्नी के केस में भी) के लिए मजबूर करना, धमकियां देना, काली, मोटी या अन्य किसी बुरे नाम से पुकारना, मायके जाने से रोकना, दूसरे लोगों से संपर्क करने-मिलने जुलने से रोकना, पैसों के लिए हाथ तंग रखना, बच्चों या अन्य के सामने अपमानित करना…घरेलू हिंसा की सूची में कई अत्याचार दर्ज हैं.
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बताइये कि बोलने से निकलेगा हल
हर हाल में चुप रहूंगी, उफ तक नहीं करुंगी, घर की बात, घर की इज्जत जैसी बातें परवरिश के क्रम में ही मन में इतने भीतर तक बैठा दी जाती हैं कि अच्छी पढ़ी लिखी महिलाएं भी कई बार तमाम कानूनी जानकारियों के बावजूद घरेलू हिंसा का दर्द झेलती रहती हैं. चुप्पी को तोड़ना बहुत जरूरी है. चुप रहने से स्थिति समय के साथ बिगड़ती ही है. नहीं समझता तो बिना देर आगे बढ़ें. मायके-ससुराल या परिजन-मित्रों में आपको जिसपर भरोसा है, उसे अपनी समस्या बताएं. वरिष्ठ परिजनों से मध्यस्था के लिए कहें. अड़ोस-पड़ोस में बताएं.
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प्रतिकार की शुरुआत
सबसे पहले संवाद का रास्ता अख्तियार करें. संबंधित व्यक्ति को समझाने का प्रयास करें. आवास का अस्थायी ही सही, विकल्प ढूंढिए. घरेलू हिंसा का समय व तारीख एक डायरी में मेंटेने करें और उसकी डिटेल्स भी लिखें. जब शिकायत दर्ज करेंगी तो ये सबूत काम आयेंगे.
यह भी जरूरी
जमाने से थक कर कोई अपने घर में ही सुकून चाहता है. जब घर की चारदीवारी ही भय और कष्ट दिलाये तो आखिर कोई कहां जाये. ऐसे हालात में हौसला को बचाये रखना जरूरी होता है. ऐसे लोगों से मिले जिनके साथ वक्त गुजारना अच्छा महसूस कराता है. आजीविका और आश्रय के विकल्पों पर भी लगातार विचार कीजिए. सामाजिक दायरा बढ़ाएं. ऐसे लोगों के नंबर अपने पास रखें जो जरूरत पड़ने पर आपकी मदद करें. हेल्पिंग ग्रुप्स से भी संपर्क रखें. जरुरत पड़े तो काउंसलर की मदद लें.
एक्सपर्ट व्यू
शिकायत दर्ज कीजिए, आश्रय और गुजाराभत्ता का है प्रावधान
जया कुमार, वरीय क्रिमिनलअधिवक्ता, धनबाद
झारखंड में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. अगर हिंसा/अत्याचार देहरी के बाहर से जब अत्याचार होता है तो महिला के साथ पूरा परिवार खड़ा होता है. लेकिन जब घरेलू हिंसा की शिकार होती है तो आमतौर पर महिला अलग थलग पड़ जाती है. जब परिवार से ही आक्रामकता की बात उठती है तो सहारे के लिए जगह और गुजारा भत्ता की समस्या सिर उठाए खड़ी दिखती हैं. हालांकि एक अच्छा कानून घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 है, पर कार्यान्वयन स्तर पर होने वाली चूक की वजह से महिलाएं अधिक लाभान्वित होती नहीं दिखतीं.
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत पीड़िता अपनी समस्या थाने में दर्ज नहीं कर सकती. कोई एफआईआर इसके लिए दर्ज नहीं होता. शिकायत दर्ज होने के बाद सीधे मजिस्ट्रेट के सामने बयान देना होता है. इस समस्या के निपटारे के लिए हर जिले में प्रोटेक्शन ऑफिसर होते हैं. मजिस्ट्रेट के पास दर्ज बयान संबंधित थाने के प्रोटेक्शन ऑफिसर तक पहुंचते हैं और वह दोनों पक्षों को नेाटिस भेज कर बुलाते हैं. फिर उनके सामने दोनों पक्ष अपनी बात कहते हैं. प्रोटेक्शन ऑफिसर को ही बयानों की सच्चाई पता लगानी होती है. कोर्ट को पावर होता है कि पीड़िता को पति के घर यानि शेयर्ड हाउस होल्ड में सुरक्षित रहने का अधिकार दे. यानि अपने ही घर में जहां रहती आयी है, वहां पूरी सुरक्षा के साथ रहने का अधिकार है. बच्चों व महिला के लिए गुजारा भत्ता दिलाने का भी कोर्ट को अधिकार है.
लेकिन इस अधिनियम के तहत शोषण करने वाले को जेल का प्रावधान नहीं है. इसे क्रिमनल सेक्शन नहीं माना गया है. ऐसे में शोषक को गिरफ्तार होने का भय नहीं है. पीड़िता के हित में त्वरित कार्रवाई नहीं होती. इन सब चूक की वजह से घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को ज्यादातर मामलों में न्याय नहीं मिल पाता. विद्रोह के बाद जब न्याय नहीं मिलता तो सैंकड़ों, हजारों महिलाओं को नियति समझकर चुपचाप दर्द सहने की विविशता का बोध होता है.
अत्याचार हो तो यह करें
अगर कोई अपना मारपीट कर रहा हो, तो बेहिचक 100 या 1095 पर फोन करें. मारपीट का केस दर्ज होगा. घरेलू हिंसा के तहत न्याय चाहते हैं तो कोर्ट में जाकर मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराएं. थाना जाने पर भी आपको मजिस्ट्रेट के पास ही भेजा जाएगा. महिला आयोग को मेल भी कर सकती हैं. महिला आयोग की वेबसाइट ncwapps.nic.in पर जाकर वहां शिकायत दर्ज कर सकती हैं. ncw@nic.in पर जाकर भी शिकायत कर सकती हैं. हर राज्य में महिला आयोग होता है. वह भी संबंधित व्यक्ति को बुला कर पूछताछ करता है. घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को रिपोर्ट करने और सहायता लेने के लिए जुलाई 2021 में 24×7 हेल्पलाइन 7827170170 सेवा शुरू की गई है.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने 2022 में 6,900 घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किये
2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की विभिन्न श्रेणियों में दर्ज 30,900 मामलों में से 23 फीसदी केस घरेलू हिंसा के हैं. राज्यवार बात करें तो घरेलू हिंसा की सर्वाधिक शिकायतें ( 55 फीसदी) यूपी से होती है. इस मामले में दिल्ली दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर था. 2021 में भी इन्हीं तीन राज्यों से सबसे ज्यादा शिकायतें महिला आयोग को मिली थीं.
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