Dumka : मुख्यमंत्री सचिवालय के कैम्प कार्यालय का हाल बेहाल है. देखरेख के अभाव में उपराजधानी का मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय खंडहर होते जा रहा है . झारखंड राज्य के अस्तित्व में आए 20 साल से अधिक हो गए है . इस दौर में संताल परगना के आमलोगों की समस्याओं के निदान के लिए 26 जनवरी 2006 में पूरे तामझाम से प्रमंडलीय मुख्यालय दुमका में मुख्यमंत्री सचिवालय के कैम्प कार्यालय का शुभारंभ किया गया. लेकिन आज कैम्प कार्यायल का हाल बेहाल है.
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14 साल में महज एक- दो मुख्यमंत्री ही कार्यालय पहुंचे है
14 साल में महज एक दो बार ही मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचे है. मधु कोड़ा और शिबू सोरेन और रघुवर दास ही पहुंचे. पूर्व सीएम रघुवर दास ने शहर के लोगों से मुलाकात की थाी और उनकी समस्या सुने और चले गए. हेमंत सरकार के 1 साल से अधिक हो जाने के बाद भी हेमंत सोरेन यहां एक बार भी पहुंचे.
बता दें कि मुख्यमंत्री सचिवालय के इस कैम्प कार्यालय में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और आप्त सचिव के लिए सभी जरूरी सुविधाओं वाले चैम्बर बने हुए हैं. इस कैम्प कार्यालय की देखभाल के लिए महज एक आदेशप मनोज कुमार दास और सुरक्षा कर्मी के रूप में उदय बैठा समेत सिर्फ दो कर्मी पदस्थापित हैं.
बाबूलाल मरांडी ने 2002 में दुमका को दिया था उपराजधानी का दर्जा
बाबूलाल जब झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बने. तो राजधानी रांची के बाद संताल परगना को सभी सुविधाओं से सम्पन्न कर प्रमंडलीय मुख्यालय दुमका को उपराजधानी बनाने की कवायद भी शुरू की गयी. इस प्रयास के क्रम में राज्य गठन के प्रारम्भिक दौर में राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 2002 में दुमका को उपराजधानी का दर्जा दिया, ताकि राजधानी रांची से करीब 500 किलोमीटर दूर साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा और दुमका जिले के लोगों को जरूरी काम के लिए रांची नहीं दौड़ना पड़े. और दुमका में मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय का निर्माण किया गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने बडे ही तामझाम से इस कार्यालय का उद्घाटन किया था. वर्तमान समय में इस कार्यालय से किसी को कोई लाभ नही मिल रहा है .
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