NewDelhi : एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे और जफर आगा जैसे छह वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की निंदा की है. बता दें कि इन पत्रकारों पर किसानों की गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड तथा उस दौरान हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गयी है.
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मीडिया को आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाये
गिल्ड ने एफआईआर को डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने तथा दबाने’ का प्रयास करार दिया है. साथ ही मांग की है कि एफआईआर तुरंत वापस ली जाये. कहा कि मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाये. बयान में कहा गया है कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया.
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घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से सूचनाएं मिलीं
गिल्ड ने कहा, प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं. अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था, कह कि गिल्ड उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है.
जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कीं. गिल्ड ने कहा कि इन एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पत्रकारों के ट्वीट दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर उपद्रव का कारण बने. एफआईआर दस भिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गयी हैं जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं.
इसके पहले नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है. जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ शामिल हैं.
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