Surendra Soren
Ranchi: अगर आप कभी झाऱखंड की राजधानी रांची आये होंगे, तो शहर के बीचो बीच स्थिति अलबर्ट एक्का चौक से जरूर गुजरे होंगे, लेकिन 20 साल झाऱखंड झारखंड के और 49 साल शहादत के बाद भी एक अदद् समाधि स्थल परमवीर लांस नायक अलबर्ट एक्का के गांव जारी, गुमला में नहीं बन पाया. समाधि बनाने की कोशिश पिछले पांच साल से चल रही है, लेकिन आज भी परमवीर की विधवा बलदीना एक्का उनके समाधि स्थल के निर्माण की बाट जोह रही हैं. शहीद के गांव में समाधि स्थल बने, इसकी कोशिश और कहानी भी बड़ी दिलचस्प मोड़ से गुजर कर इस दौर तक पुहंची है.3 दिसंबर 2015 को तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने समाधि स्थल का शिलान्यास किया था, जो अबतक अधूरा है. तत्कालीन सरकार ने उनके नाम पर एक पार्क और सड़क का नामकरण करने की घोषणा की थी, लेकिन यह वादा भी पूरा नहीं हुआ. पढ़िये पूरी रिपोर्ट
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बलमदीना एक्का की अंतिम इच्छा है समाधि स्थल
परमवीर अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का की आखरी इच्छा है कि उनके पति का समाधि स्थल उनके गांव में भी बने. इसे लेकर जनजातीय परामर्शी परिषद् के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने प्रयास शुरू किये और सरकार से इसकी पहल किये. वे परमवीर अलबर्ट एक्का फाउंडेशन के संस्थापक भी हैं. दिसंबर 2015 को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ रतन तिर्की, परवीर की पत्नी व राज्य सरकार के एक अधिकारी जॉर्ज दादेल त्रिपुरा गये थे. समाधि स्थल पर करीब 1 घंटे तक बलमदीना एक्का ने वक्त गुजारे और पूरे सैन्य सम्मान के साथ वहां की मिट्टी अपने आंचल में बांध कर अपने साथ लेकर लौटी थी. उसी मिट्टी को रखकर निजी प्रयास से एक समाधि स्थल का निर्माण किया. इस प्रयास में परमवीर अलबर्ट एक्का फाउंडेशन के साथ साथ संत जॉन स्कूल ओल्ड बॉयज एसोसियेशन के राजकुमार लकड़ा, कुमुद झा, राजीव चड्ढा, संजय सिंह, साजिद अख्तर की बड़ी भूमिका रही.
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समाधि स्थल की मिट्टी अब भी गुमला ट्रेजरी में है पड़ा
30 नवंबर 2015 को बीएसएफ का एक जवान थैले में त्रिपुरा से समाधि की मिट्टी लेकर रांची पहुंचा था, जिसपर खूब विवाद हुआ और सरकार का यह प्रयास उल्टा पड़ गया. समाधि स्थल शिलान्यास के मौके पर उस मिट्टी को लेने से परमवीर की पत्नी ने मना कर दिया, जिसके बाद आज भी वो मिट्टी वाली कलश गुमला ट्रेजरी में पड़ा है.
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सेनाध्यक्ष भी आये थे पिछले साल
थल सेना अध्यक्ष जनरल विपिन राउत 4 जनवरी को गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड आये थे. गुमला जिले के इतिहास में यह पहला मौका था, जब कोई थल सेना अध्यक्ष परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की धरती पर आये थे. सेनाध्यक्ष ने चैनपुर में शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और शहीद अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का को सम्मानित किया था. उस वक्त भूतपूर्व सैनिकों ने गुमला में सैनिक स्कूल, एक कैंटिन समेत कई मांग सेनाध्यक्ष के समक्ष रखी थी.
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कौन थे परमवीर अलबर्ट एक्का
1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई को कोई शायद ही कोई भूला सकता है. युद्ध भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच था लेकिन इस जंग ने बांग्लादेश को जन्म दिया. इस जंग में सैकड़ों सैनिक शहीद हुए थे, इन्हीं सैनिकों में एक थे लांस नायक अल्बर्ट एक्का, जिनके बलिदान ने बांग्लादेश को तो स्वतंत्रता दी ही साथ ही अगरतला को भी पाकिस्तान में मिलने से बचाया. अगर आज अगरतला भारत का हिस्सा है तो इसका श्रेय जाता है एक आदिवासी सैनिक अल्बर्ट एक्का को. एक्का का जन्म 27 दिसम्बर, 1942 को झारखंड के गुमला जिला के डुमरी ब्लॉक के जारी गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम जूलियस एक्का और मां का नाम मरियम एक्का था. बचपन से ही वे खेल में भी बहुत अच्छे थे. खेलों में अच्छे प्रदर्शन के की वजह से उन्हें दिसंबर 1962 में भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया. उन्होंने फौज में बिहार रेजिमेंट से अपना कार्य शुरू किया. बाद में जब 14 गाड्स का गठन हुआ, तब एल्बर्ट अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ स्थानांतरित कर किए गए. एक्का के अनुशासन और दृढ़ता को देखते हुए ट्रेनिंग के दौरान ही उन्हें लांस नायक का पद दे दिया गया था. उन्हें उनके रेजिमेंट के साथ उत्तर-पूर्वी भारत में पोस्टिंग मिली ताकि वहां पर बढ़ रहे विद्रोह को रोका जा सके. लेकिन जब 1971 में भारत-पाकिस्तान की लड़ाई शुरू हुई तो उन्हें पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) भेजा गया.
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3 दिसंबर 1971 का वो अहम तारीख
1971 के जंग के दौरान अलबर्ट एक्का और उनके कुछ साथियों को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में गंगासागर पर अपना कब्ज़ा जमाने के आदेश मिले.गंगासागर अगरतला से सिर्फ 6.5 किलोमीटर दूर है और अगरतला आज त्रिपुरा की राजधानी है. गंगासागर में पाकिस्तान पर पकड़ बनाना बहुत ज़रूरी था ताकि भारतीय सेना अखौरा की तरफ़ बढ़ सके. अखौरा पहुंचना बांग्लादेश की आज़ादी के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यहीं से भारतीय सेना ढाका जा सकती थी.3 दिसंबर की सुबह गंगासागर रेलवे स्टेशन पर लड़ाई शुरू हुई.इनमें से एक की कमान अलबर्ट एक्का को दी गयी. मोर्चे पर मशीन गनों के चलते भारतीय सेना को काफी नुकसान हो रहा था. यह देखकर एक्का ने अपना निशाना पाकिस्तान की इन मशीन गनों और बंकरों पर साधा. उन्होंने अकेले ही पाकिस्तानी बंकर पर धावा बोल दिया. उन्होंने बंदूक से दो पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, इसके बाद पाकिस्तानी मशीनगनें भी बंद हो गयीं. हालांकि, इसमें एक्का बुरी तरह घायल हो गये थे. पर फिर भी वे अपने साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे ,लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर पाकिस्तान की तरफ से फायरिंग फिर शुरू हो गयी. एक दो-मंजिला मकान से भी ऑटोमेटिक मशीनगन फायर कर रही थी. ऐसे में अपनी परवाह किये बिना वे हाथ में एक बम लेकर दुश्मन के ठिकाने की तरफ बढ़े और उन पर बम फेंक दिया. इस धमाके में पाकिस्तानी सैनिक और उनकी मशीन गन दोनों का ही मुंह बंद कर दिया. ये एक्का और उनके सैनिकों का अदम्य साहस ही था, कि एक भी पाकिस्तानी फौजी अगरतला में प्रवेश नहीं कर पाए. उनकी वजह से भारत को युद्ध में बढ़त मिली और उन्होंने बांग्लादेश को आज़ादी दिलवायी.
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एक्का को भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से नवाज़ा गया. साथ ही, एक पोस्टल स्टैम्प भी उनके सम्मान में जारी की गयी. बांग्लादेश ने भी इस महान सैनिक को ‘फ्रेंड्स ऑफ़ लिबरेशन वॉर ऑनर’ से सम्मानित किया. त्रिपुरा सरकार ने हाल ही में उनके नाम पर ‘अलबर्ट एक्का पार्क’ बनाया है. इस पार्क में परमवीर की एक प्रतिमा भी स्थापित है.