Ranchi: वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री सचिवालय को मिले शिकायत पत्र में आरोप लगाया गया था कि चापाकल लगाने की योजना में की अवैध वसूली हुई. राज्य के सभी 24 जिलों में कार्य आवंटन के नाम पर ठेकेदारों से कमीशन की वसूली की गयी. रघुवर राज में यह शिकायत आयी थी. लेकिन विभाग ने जांच नहीं करायी. अब नयी सरकार में विभाग ने जांच शुरु की है. लेकिन जांच उन्हें ही दिया गया है, जिनपर घोटाला करने का आरोप है.
![आरोपः प्रति चापाकल 1600 से 2000 की वसूली, मंत्री और सचिव तक पहुंचता था कमीशन का हिस्सा](https://i0.wp.com/lagatar.in/wp-content/uploads/2021/02/chapanal-paper.jpg?resize=600%2C400&ssl=1)
आरोप है कि प्रति चापाकल 1600 से 2000 रुपए कमीशन लेकर कार्य आवंटन पत्र जारी किया गया था. वसूली का आरोप डोरंडा स्थित प्रोग्राम मैनेजमेंट यूनिट, पीएमयू के तत्कालीन मुख्य अभियंता रमेश कुमार पर है. शिकायत पत्र में आरोप यह भी लगाया गया है कि रमेश कुमार द्वारा वसूले गए कमीशन की राशि विभागीय मंत्री और सचिव तक पहुंचाया गया है. जिसकी जानकारी वसूली के समय खुद रमेश कुमार ने ठेकेदारों को दी थी. शिकायत पत्र में कहा गया है कि 2000 रुपए कमीशन राशि में से 800 रुपए मंत्री और 800 रुपए विभागीय सचिव को दिया गया. वहीं रमेश कुमार ने 200 से 400 रुपए तक की वसूली प्रत्येक चापानल अपने लिए किया.
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कमीशन में किसको मिलता था कितना पैसा
विभागीय मंत्री : 800 रुपए
विभागीय सचिव : 800 रुपए
मुख्य अभियंता, पीएमयू : 200 से 400 रुपए
कमीशन वसूली में स्टेट कॉर्डिनेटर मनोज सिंह की अहम भूमिका
सीएमओ को मिले शिकायत पत्र में बताया गया था कि चापानल निर्माण के नाम पर कमीशन वसूली में पीएमयू के तत्कालीन स्टेट कॉर्डिनेटर मनोज सिंह की भी अहम भूमिका थी. मनोज सिंह पीएमयू में बैठते थे. जो रमेश कुमार के बेहद करीबी थे. चापानल घोटाले की शिकायत आने पर मनोज सिंह ने अचानक काम छोड़ दिया. वे संविदा पर बहाल थे. उनकी बहाली मूलत: यांत्रिक प्रभाग में लेखा लिपिक के रूप में हुई थी. पैसे और पैरवी की बदौलत वे स्टेट कॉर्डिनेटर बन गए.
निर्धारित वेतन से 400 प्रतिशत ज्यादा लेते थे भुगतान
शिकायत पत्र में कहा गया है कि मनोज सिंह क्षेत्रीय अभियंताओं और ठेकेदारों से कमीशन वसूली में अहम भूमिका निभाते थे. जो अभियंता या ठेकेदार इनकी बात नहीं मानता था, उसे दूसरे मामलों में अफसरों से कह कर फंसा देते थे. मनोज सिंह वसूली गयी कमीशन राशि अफसरों के घर पहुंचाते थे. अफसरों ने अपने फायदे के लिए मनोज सिंह को सेवा विस्तार देते रहे. उनको मूल वेतन, जो निर्धारित था, उससे 400 प्रतिशत ज्यादा का भुगतान किया जाता था. जो जांच का विषय है.
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