Devinder Sharma
राजनीति को एक तरफ रखते हुए, छत्तीसगढ़ के किसानों के पास खुश होने के लिए पर्याप्त कारण हैं. गत 12 मार्च को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने राज्य के 24.72 लाख धान किसानों के बैंक खातों में 13,320 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए. यह राशि धान किसानों को कमीपूरक भुगतान के रूप में देय थी. पिछले चुनावों से पहले किए गए वादे के अनुसार, सत्तारूढ़ भाजपा ने खरीफ 2023-24 सीजन के लिए कॉमन ग्रेड धान के लिए 2,183 रुपये प्रति क्विंटल और ए ग्रेड धान के लिए 2,203 रुपये के खरीद मूल्य पर प्रत्येक किसान से 21 क्विंटल धान खरीदा था. 3,100 रुपये प्रति क्विंटल के खरीद मूल्य के वादे और केंद्र द्वारा एमएसपी मूल्य पर खरीद के वादे के बीच 917 रुपये प्रति क्विंटल का अंतर अब किसानों के खाते में डाल दिया गया है. यानी प्रतिवर्ष औसत किसान की आय में एक लाख रुपये की वृद्धि होगी. इस साल लगभग 147 लाख टन की रिकॉर्ड खरीद के साथ, किसान निश्चित रूप से बहुत उत्साहित हैं. हालिया स्थितिजन्य आकलन सर्वे के अनुसार, छत्तीसगढ़ में एक किसान परिवार की औसत मासिक आय 9, 677 रुपये है. इसलिए प्रतिवर्ष करीब एक लाख रुपये की अतिरिक्त आय किसान परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण छलांग है.
यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा गत 14 मार्च को नई दिल्ली में संपन्न किसान महापंचायत ने सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को जारी रखने का संकल्प लिया है. स्वामीनाथन के सी 2+50 प्रतिशत फार्मूले के अनुसार एमएसपी की गणना की मांग के मुकाबले, छत्तीसगढ़ सरकार ने 3,100 रुपये प्रति क्विंटल के खरीद मूल्य का भुगतान किया है, जो असल में डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा की गयी सिफारिश से भी अधिक है. दूसरी ओर, किसान यूनियनें कहती रही हैं कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा तय किए गए एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल पर देशभर में धान की खरीद 2+50 प्रतिशत फार्मूले के जरिये की जाती है. ए2 जेब खर्च है, जो किसानों द्वारा फसल उत्पादन में खर्च होता है और एफएल का मतलब पारिवारिक श्रम की आंकी गयी लागत के रूप में है. लेकिन अगर एमएसपी को स्वामीनाथन के सी2+50 प्रतिशत के फार्मूले (सी2 का मतलब व्यापक लागत) के अनुसार तैयार किया जाता है, तो खरीफ 2023-24 सीजन के लिए धान की कीमत 2,886.50 रुपये प्रति क्विंटल बन जाती है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने वास्तव में इस विपणन सीज़न में धान किसानों को जो भुगतान किया है, वह सी2+50 प्रतिशत की सिफारिश के बराबर नहीं है, बल्कि वास्तव में सी2+60 प्रतिशत से अधिक बनता है. यह बढ़ी हुई कीमत राज्य चुनावों से पहले एक रस्साकशी का नतीजा है. इस होड़ में आगे रहने की कोशिश में, कांग्रेस ने 3,200 रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीदने का वादा किया था, प्रत्येक किसान से 20 क्विंटल खरीद के साथ, जबकि भाजपा ने 3,100 रुपये प्रति क्विंटल का वादा किया था, लेकिन प्रत्येक एकड़ से खरीदे गए 21 क्विंटल के लिए कीमत सुनिश्चित की थी. यहां पिछली कांग्रेस सरकार के प्रति निष्पक्ष होने के लिए, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि छत्तीसगढ़ देश के बाकी भागों, केरल को छोड़कर, के मुकाबले धान की काफी अधिक कीमत चुका रहा था. साल 2022-23 खरीफ सीज़न के लिए, भूपेश बघेल की सरकार ने किसानों को खरीद मूल्य के अतिरिक्त 9000 रुपये प्रति एकड़ की इनपुट सब्सिडी का भुगतान किया था.
छत्तीसगढ़ की कीमतों का मतलब है धान के रेट में तुलनात्मक तौर पर सी2+50 लागत से प्रति क्विंटल 234 रुपये अधिक की बढ़ोतरी. बहरहाल, धान की अधिक कीमत ने किसानों की आशाओं-आकांक्षाओं को जगा दिया है. किसान कह रहे हैं कि अब वे अपने बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक खर्च करने में सक्षम होंगे, बाजार भी उत्साह से भरे हुए हैं.
छत्तीसगढ़ में विभेदकारी मूल्य तंत्र के जरिये किसानों को किया जा रहा अधिक भुगतान मुख्यधारा के अर्थशास्त्रियों के लिए राहतकारी है, जो लगातार स्वामीनाथन फार्मूले के मुताबिक एमएसपी बढ़ाने पर बाजार विकृति वाला तर्क देते रहे हैं, और अब छत्तीसगढ़ मॉडल द्वारा कायम किये जा रहे नए बेंचमार्क के साथ तो और भी अधिक. वे नहीं चाहते कि एमएसपी बढ़ाया जाए, क्योंकि यह उनके दावे के अनुसार बाजारों को विकृत कर देगा, लेकिन अगर राज्य सरकार को भावांतर कीमत के रूप में मूल्य अंतर का भुगतान करना पड़े तो वे खुश हैं. वास्तव में, अर्थशास्त्री नहीं चाहते कि कार्पोरेट और एग्रीबिजनेस कंपनियां कृषि पदार्थों के लिए अधिक कीमत अदा करें. बाजार से फसल उपज की सही कीमत देनी चाहिए. इसे कृषि उपज के लिए कम भुगतान करके और कृषि आय में नुकसान को बजटीय मदद द्वारा कवर करने के लिए छोड़ देने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.
पहले से ही दुनिया की 54 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में किसानों के लिए उत्पाद मदद के रूप में प्रति वर्ष 851 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च कर रही है, ताकि कमी की भरपायी हो सके. यह अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ है, जबकि कृषि व्यवसाय से जुड़ी कंपनियां बड़े आराम से धन अर्जित कर रही हैं. ऑक्सफैम के अनुसार, दुनिया में बीते कुछ वर्षों में 68 नए खाद्य अरबपति बने हैं, जिन्हें फूड बैरन कहा जाता है. यह कहना कि उच्च एमएसपी के चलते मुद्रास्फीति अधिक हो जाएगी और बाजारों को विकृत कर देगी, और कुछ नहीं, बल्कि जनता में डर पैदा करने का एक प्रयास है. महामारी वर्ष 2020 से शुरू हुए पिछले तीन वर्षों में, कॉर्पोरेट पर रिकॉर्ड मुद्रास्फीति के भंवर के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होने का आरोप लगाया गया है. यहां तक कि आईएमएफ भी स्वीकार करता है कि मुद्रास्फीति में कॉर्पोरेट मुनाफे का हिस्सा, जिसे कॉर्पोरेट लालच के रूप में जाना जाता है, 40 प्रतिशत से अधिक है. कुछ लोग इसे ग्रीडफ्लेशन यानी लालच स्फीति कहते हैं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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