Chulbul
Ranchi: रांची शहर में तीन मुख्य कलीसिया- जीईएल का क्राइस्ट चर्च, रोमन कैथलिक का संत मारिया गिरजाघर और सीएनआई के छोटानागपुर डायसिस का संत पॉल कैथेड्रल हैं. इन तीनों कलीसियाओं के अलावा भी शहर में कई और छोटे-बड़े चर्च हैं. पर ये तीन गिरजाघर सबसे पुराने हैं जहां से इतिहास की कई रोचक घटनाएं जुड़ी हैं. अगले तीन दिनों तक हम आपको इन तीनों कलीसियाओं के इतिहास से जुड़ी कुछ जानकारियां देंगे.
आज हम बात करेंगे छोटानागपुर की धरती पर ईसाई धर्म को जन्म देने वाले जीईएल चर्च की. इस चर्च को क्राइस्ट चर्च के नाम से जाना जाता है. यह जीईएल चर्च कांप्लेक्स कंपाउड में स्थित है. 101 वर्ष पूर्व बना यह चर्च छोटानागपुर की धरती पर स्थापित सबसे बड़ा और पुराना चर्च है. छोटानागपुर ही नहीं बल्कि पूरे भारत में गोस्सनर कलीसिया की स्थापना का श्रेय जीईएल चर्च को जाता है. गोस्सनर मिशन के संस्थापक फादर योहान्नेस एंवेजेलिस्ता गोस्सनर है. इसलिए कलीसिया का नाम फादर योहान्नेस एंवेजेलिस्ता गोस्सनर नाम पर रखा गया.
लालू के वकील से बात करते लगातार लीगल संवाददाता विनीत उपाध्याय
चार मिशनरियों ने शुरु किया सुसमाचारों का प्रचार-प्रसार
2 नवंबर, 1845 को रेव्ह इमिल शव्स, रेव्ह फ्रेड्रिक वच, रेव्ह ऑगस्त ब्रंत और रेव्ह थेयोदोर यानके बाइबिल के वचनों के सुसमाचार-प्रसार के लिए रांची पहुंचे. फादर गोस्सनर के कहने पर इन चारों मिशनरियों ने सुसमाचार-प्रसार के अलावा यहां आदिवासियों की परिस्थिति को देखते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं भी देनी शुरु की.
राज्य के पहले गर्ल्स स्कूल की शुरुआत की
आदिवासियों की दयनीय स्थिति को देखते हुए चारों मिशनरियों ने यहां के लोगों को शिक्षित करना शुरु किया. इन्होंने राज्य में सबसे पहले गर्ल्स स्कूल की शुरुआत की. 1 दिसंबर 1845 में उन्होंने बेथेसदा की नींव रखी, जहां लड़कियों की उचित शिक्षा की व्यवस्था की गई.
इसे भी पढ़ें: लालू का जेल मैन्युअल उल्लंघन मामला : HC ने तलब की जेल ऑथोरिटी से विस्तृत रिपोर्ट
प्रथम बपतिस्मा के साथ शुरु हुआ कलीसिया का फैलाव
25 जून, 1846 को मार्था नाम की लड़की कलीसिया की स्थापना के बाद बपतिस्मा लेकर कलीसिया में शामिल होने वाली पहली सदस्य बनी. इसके बाद धीरे-धीरे लोग कलीसिया से जुड़ते गए और कलीसिया का विस्तार होने लगा. इसी का परिणाम है कि आज रांची शहर में लगभग 5000 से भी अधिक विश्वासी इस कलीसिया से जुड़े हैं.
पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोनोमस हुआ कलीसिया
1915 में पहले विश्व युद्ध के समय जर्मन मिशनरियों को अपने देश लौटना पड़ा. ऐसे में छोटानागपुर में कलीसिया के पूर्वजों ने इसे स्वतंत्र रुप से चलाने का निर्णय लिया. बिशप फोस्स वेस्टकॉट ने कलीसिया के संचालन की बागडोर संभाली. इसके बाद 10 जुलाई, 1919 में इसे ऑटोनोमस घोषित कर आत्मशासित, आत्मपालित और स्व-सुसमाचार करने का फैसला लिया गया.
इसे भी पढें: कोरोना की वजह से कई बीमारियों में आयी गिरावट, झारखंड में मलेरिया के कुल 11हजार मरीज मिले
ऑटोनोमस संचालन के 100 वर्ष पूरे
10 जुलाई, 2019 को जीईएल कलीसिया ने छोटानागपुर में अपने स्वतंत्र रुप से संचालन के 100 वर्ष पूरे किए. इस अवसर पर पिछले साल अक्टूबर-नवंबर माह में तीन दिवसीय जुबली समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें न केवल देश बल्कि विदेशों से भी जीईएल कलीसिया से जुड़े कई बिशप और अतिथि शामिल हुए थे. इस दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्होंने भारत में अपने 100 वर्ष पूरे होने की खुशी मनायी.
पांच डायसिस और एक हेड-क्वार्टर कांग्रीगेशन से जुड़े हैं हजारों विश्वासी
वर्तमान में कलीसिया के सफल संचालन के लिए इसे पांच डायसिस – नॉर्थ ईस्ट डायसिस, नॉर्थ वेस्ट डायसिस, साउथ ईस्ट डायसिस, साउथ वेस्ट डायसिस और मध्य डायसिस में बांटा गया है. इसके साथ ही एक हेड क्वार्टर कांग्रीगेशन का भी निर्माण किया गया, जो रांची में स्थित है. हेड क्वार्टर कांग्रीगेशन के सभी डायसिस की माता-कलीसिया होती हैं. इसके प्रमुख मॉडरेटर होते है. वर्तमान में रांची हेडक्वार्टर कांग्रीगेशन को मॉडरेटर बिशप जोहन डांग है और सचिव पद पर प्रदीप कुजूर नियुक्त है.
इसे भी पढ़ें: पीएम मोदी कोविड महामारी और चुनौतियों पर करेंगे सर्वदलीय बैठक