Abhay Verma
Giridih : सदर अस्पताल में ब्लड बैंक का स्टॉक जीरो है. चार ब्लड ग्रुप में से एक यूनिट भी ब्लड नहीं है. जिन मरीजों को बल्ड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, उनके परिजन साथ में डोनर को भी लेकर आ रहे हैं. कोरोना काल से इस ब्ल्ड बैंक में रक्त संकट बरकरार है. डोनर को साथ नहीं लाने पर मरीज की जान भी जा सकती है. 23 अगस्त को भी ब्लड बैंक सूचना पट पर स्टॉक जीरो दिखाया गया. कोरोना काल के बाद सामाजिक संस्थाएं भी रक्तदान शिविर आयोजन में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है.
हीमोफीलिया और थैलेसीमिया के डेढ़ सौ मरीज
जिले में हीमोफीलिया और थैलेसीमिया के 150 मरीज हैं. उन्हें एक माह में कम से कम 350 यूनिट रक्त की जरूरत होती है. ऐसे मरीज परिजनों के साथ समय-समय पर रक्त चढ़ाने सदर अस्पताल आते हैं. दोनों बीमारियों के मरीजों को ब्लड बैंक से बगैर किसी शुल्क या एक्सचेंज के ब्लड देने का प्रावधान है. ब्लड स्टॉक में नहीं रहने से आखिर मरीजों को कैसे मिले? सामाजिक संस्था श्रेया क्लब के सचिव रमेश यादव ऐसे मरीजों के लिए मसीहा साबित हो रहे हैं. मरीज आने के बाद रमेश युवाओं को तलाशते हैं और मरीज को रक्त उपलब्ध कराते हैं.
रेड क्रॉस को भी दिलचस्पी नहीं
रेडक्रॉस भी रक्त की उपलब्धता को लेकर गंभीर नहीं है. सिर्फ चुनाव के दौरान पद हासिल करने लिए रेडक्रॉस के सदस्य सक्रियता दिखाते हैं. उसके बाद शिथिल पड़ जाते हैं. रक्दान शिविर आयोजित करने को लेकर भी सदस्यों को गंभीरता दिखानी चाहिए.
सामाजिक संस्थाओं को आना होगा आगे
सदर अस्पताल ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ. सोहेल अख्तर ने बताया कि कोरोना काल के बाद रक्त भंडारण में लगातार कमी बनी रहती है. रक्तदान करने में आम लोगों व सामाजिक संस्थाओं को आगे आने होगा. इसके बाद ही जरूरतमंदों को रक्त मिल सकेगा.
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