LagatarDesk: सरकारी कंपनियों के विनिवेश और निजीकरण के चल रहे प्रयासों में सरकार World Bank की सलाह लेगी, जिससे परिसंपत्तियों (Assets) की ब्रिकी को आसान बनाया जा सके. इस विषय में वित्त मंत्रालय के निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति विभाग ने World Bank से एक समझौता किया है. इस करार के अनुसार Assets की ब्रिकी पर World Bank सरकार को राय देगा. इस समझौते से सार्वजनिक कंपनियों के Assets के Monetization Analysis और बेस्ट अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण का भी फायदा मिलेगा.
निजीकरण क्या है
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो निजीकरण का अभिप्राय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण में थीं.
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निवेश एव सार्वजनिक परिसंपत्ति विभाग को सौंपी जिम्मेदारी
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि इस योजना से गैर मुख्य संपत्ति की Monetization की प्रक्रिया को बढ़ावा और गति मिलेगी. इससे कम इस्तेमाल होने वाले Assets की Value को फायदा मिलेगा, जिससे अच्छे वित्तीय संसाधन हासिल किये जा सकें. सरकार ने यह जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के निवेश एव सार्वजनिक परिसंपत्ति विभाग को दी है कि वह केंद्रीय सार्वजनिक उद्योगों के गैर मुख्य संपत्ति के कार्य को आगे बढ़ायें.
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नॉन कोर एसेट्स क्या हैं
नॉन कोर एसेट्स ऐसी संपत्ति है, जो कंपनी के व्यावसायिक कार्यों में उपयोग नहीं किये जाते हैं. वे आमतौर पर कंपनियों को सबसे अच्छी सेवा देते हैं. क्योंकि जब अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता होती है, तो उन्हें बेचा जा सकता है. कुछ व्यवसाय अपने बैंक ऋण का भुगतान करने के लिए अपनी नॉन कोर एसेट्स बेचते हैं.
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LIC के IPO के लिए भी लिए गए निर्णय
केंद्रीय सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम के वैल्यूशन के लिए एक्चूरियल फर्म से बिड (निविदा) आमंत्रित किया है. कंपनियां इसके लिए 8 दिसंबर तक आवेदन कर सकती हैं. इसके लिए सोमवार को टेंडर जारी किया गया. सरकार की योजना LIC में अपनी अल्पमत हिस्सेदारी को बेचकर इसे शेयर बाजार में रजिस्टर्ड कराने की है. डेलॉयट और एसबीआई कैपिटल को पहले से ही इसके लिए नियुक्त कर दिया गया है.
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विनिवेश का लक्ष्य
सरकार लगातार सरकारी कंपनियों का विनिवेश करके संसाधन जुटा रही है. इस साल का सरकार का विनिवेश से 2.10 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य था लेकिन कोरोना के कारण इस लक्ष्य को हासिल करना असंभव सा हो गया है.
निजीकरण का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर
निजीकरण से भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ के साथ इसके कुछ दुष्प्रभाव भी है. निजी क्षेत्र की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के अधिक आर्थिक एवं सामाजिक लाभ हैं और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निजीकरण की कई कठिनाइयां हैं. निजीकरण करने से कंपनी की पूरी कार्यप्रणाली में बदलाव हो जाता है. कंपनी की गैर मुख्य संपत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए नहीं किया जा सकता. वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रही समस्याओं के कारण सरकार के नियंत्रण के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को सीमित कर पाना बहुत ही मुश्किल कार्य है. निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेजी से अंतरराष्ट्रीयकरण होगा और इसके दुष्प्रभावों से भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा.