Anand Kumar
टेस्ट की जीत कोई तुक्का नहीं होती, खासतौर पर तब, जब आप कुछ ही दिन पहले 36 रन के शर्मनाक स्कोर पर पिच की मिट्टी चाट चुके हों. जब आपका कप्तान और महान बल्लेबाज आपका साथ छोड़ कर घर लौट चुका हो और जब आपके दो प्रमुख बॉलर चोटिल होकर ड्रेसिंग रूम में बैठे हों. टेस्ट क्रिकेट बहुत मेहनत, संयम, धैर्य और अनुशासन मांगता है और मेलबर्न का मैदान आज एक औसत कदकाठी वाले भारतीय कप्तान को झुक कर सलाम कर रहा है, तो वह इसका हकदार है.
यह तय था कि अजिंक्य रहाणे ऑस्ट्रेलिया में दूसरे टेस्ट से कप्तानी संभालेंगे, लेकिन कंगारुओं ने सिडनी में 36 रन पर भारतीय बल्लेबाजी का जो जुलूस निकाला था, उसमें रहाणे भी शामिल रहे थे. तो क्या वह एक ऐसी टीम का आत्मविश्वास लौटा पायेंगे, जिसका भरोसा ही हिल चुका था. और टीम भी कैसी, विराट कोहली अपने बच्चे के जन्म की खुशी मनाने स्वदेश लौट चुके थे और रोहित शर्मा अभी भी टीम के साथ नहीं जुड़े थे. रहाणे के पास स्थापित बल्लेबाज के नाम पर सिर्फ पुजारा ही ऐसे अकेले थे, जिनके पास भरोसेमंद टेस्ट रिकॉर्ड था. पहले टेस्ट में गेस्ट अपीरिएंस टाइप बल्लेबाजी करनेवाले पृथ्वी शॉ को मेलबर्न में बाहर का रास्ता दिखाया जाना था और अति प्रतिभाशाली बल्लेबाज शुभमन गिल को पहली बार कंगारुओं की नई गेंद के सामने खुद को साबित करने की चुनौती मिलने वाली था. मोहम्मद शमी सिडनी में हाथ पर बाउंसर की चोट खाकर दूसरे टेस्ट में बाहर बैठनेवाले थे और रहाणे के पास एक ऐसी टीम थी, जिसके पास शायद हौसला तो था, लेकिन उसके हुनर का इम्तेहान होना अभी बाकी था.
कहते हैं कि नाकामियों की राख से ही नायक पैदा होते हैं, बिल्कुल फीनिक्स पक्षी की तरह और एक सच्चा नायक ही अपनी टूटी, थकी और हारी हुई सेना को एक खूंखार, लड़ाकू और विजयी फौज में तब्दील करने का माद्दा रखता है. रहाणे ने बिल्कुल ऐसा ही किया. उन्होंने सिडनी में पहले टेस्ट के बाद आलोचना का शिकार बन रही भारतीय टीम का मनोबल संभाला. अपने पास मौजूद खिलाड़ियों से सर्वश्रेष्ठ टीम चुनी और उसमें ऐसा जोश और जुनून भरा कि टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी सरजमीन पर चौथे दिन ही धो डाला.
ध्यान रखिए! यह वही टीम है जिसने 2 हफ्ते पहले पहली पारी में लीड लेने के बावजूद दूसरी पारी में टेस्ट इतिहास का अपना सबसे छोटा स्कोर बनाकर अपनी थू-थू करा ली थी. गेंदबाजों ने तो पहले टेस्ट में भी अपना काम किया था, लेकिन बल्लेबाजों ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया था. मेलबर्न टेस्ट में भी शुरुआत अच्छी नहीं रही. मयंक अग्रवाल सस्ते में निपट गए, लेकिन पहला टेस्ट खेल रहे शुभमन गिल ने दिखाया कि उनके अंदर प्रतिभा है और अगर उन्हें लगातार मौके दिये जायें, तो वे बड़े स्तर पर इसे भुनाना भी जानते हैं. 64 गेंदों में 45 रनों की पारी इसका प्रमाण है. पुजारा विकेट पर लंबा टिककर खेल सकते हैं, लेकिन रन बटोरने के मामले में वे सुस्त हैं. मेलबर्न में भी वही हुआ. पुजारा 70 गेंद खेलकर जब आउट हुए तो उनका निजी स्कोर मात्र 17 रनों का था और तब नया कप्तान क्रीज पर आया. स्टार्क, कमिंस और हेजलवुड आग उगल रहे थे, लेकिन मेलबर्न को एक ऐसी पारी मिलनेवाली थी, जो लंबे समय तक याद रखी जायेगी. रहाणे निडरता से शांतचित्त और एकाग्र होकर खेले. उन्होंने मैदान के चारों ओर रन बटोरे और हनुमा विहारी, ऋषभ पंत के साथ छोटी लेकिन महत्वपूर्ण साझेदारियां बनायी, लेकिन असल फर्क डाला छठे विकेट के लिए रवींद्र जडेजा के साथ उनकी साझेदारी ने. एक गलत बॉल पर रन आउट होने के पहले उन्होंने जडेजा के साथ 121 रन जोड़ डाले. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 3 बार तिहरा शतक जड़ने का कारनामा करने वाले इकलौते भारतीय बल्लेबाज जडेजा ने संयम और धैर्य की मिसाल पेश करते हुए अर्धशतक बनाया और कमजोर मानी जा रही भारतीय बल्लेबाजी 326 के स्कोर तक जा पहुंची.
ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी 195 रन से 131 रन ज्यादा. मगर कंगारू अपनी धरती पर खेल रहे था और उनके पास भले डेविड वॉर्नर नहीं था लेकिन स्टीवन स्मिथ की अगुवाई में बल्लेबाजों की एक ऐसी सेना थी, जो अपेक्षाकृत अनुभवहीन भारतीय गेंदबाजी को उधेड़ कर रख देने की क्षमता रखती थी, लेकिन भारतीय गेंदबाजों के इरादे भी कमजोर नहीं थे. पहली पारी में अपनी नपीतुली और अनुशासित गेंदबाजी और कप्तान रहाणे की चतुराई से सजायी गयी फील्डिंग की बदौलत उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को 195 के मामूली स्कोर पर रोक दिया था. सवाल था कि क्या दूसरी पारी में भी गेंद से यही कमाल दिखा पायेगी टीम इंडिया.
ऑस्ट्रेलिया का पहला विकेट सस्ते में निबटा जब जो बर्न्स को उमेश यादव ने सस्ते में निबटा दिया, लेकिन तभी गेंदबाजी करते समय उमेश के पैरों में खिंचाव हुआ और उन्हें मैदान से बाहर जाना पड़ा. रहाणे के पास गेंदबाजी के विकल्प सीमित थे. पेस बैटरी के नाम पर उनके पास सिर्फ जसप्रीत बुमराह थे, जिनका साथ देने की जिम्मेदारी आ गई थी नवागंतुक मोहम्मद सिराज पर. स्पिन के माहिर अश्विन को जडेजा के साथ जोड़ी बनानी थी. सिराज ने पहली पारी में अपनी गेंदबाजी से काफी प्रभावित किया था. उनकी गेंदों में तूफानी रफ्तार भले नहीं है, लेकिन उनकी लाइन-लेंथ और स्विंग ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को खूब परेशान किया और पहली पारी में सिराज 2 विकेट झटकने में सफल रहे.
दूसरी पारी में उन्होंने जसप्रीत बुमराह के साथ कमान संभाली और हेड, ग्रीन तथा लायन के विकेट निकाले. थोड़े-थोड़े अंतराल पर ऑस्ट्रेलिया अपने विकेट गवांता चला गया. रहाणे की चतुराई भरी कप्तानी और जसप्रीत बुमराह, रविचंद्रन अश्विन और जडेजा के गेंदबाजी अनुभव को मेलबर्न ने अपनी आंखों से देखा. सही दिशा और अनुशासन में गेंदबाजी, फील्ड की सटीक जमावट की रहाणे की योजना बिल्कुल सटीक बैठी. ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को हावी होने का कोई मौका नहीं मिला. ऑस्ट्रेलिया 200 पर ढेर हो गया और भारत को जीत का लक्ष्य मिला 70 रन, जो उसने आठ विकेट रहते हासिल कर लिया. एक बार फिर शुभमन गिल ने 36 गेंदों में नाबाद 35 रन बनाकर कंगारू गेंदबाजों को दबाव बनाने का मौका ही नहीं दिया. विजयी रन कप्तान रहाणे के बल्ले से निकला, जिसके वह पूरे हकदार हैं. मेलबर्न में भारत की यह चौथी टेस्ट विजय है. ऑस्ट्रेलिया की सरजमीन पर 34 साल से कोई टीम अपना पहला टेस्ट हारने के बाद सिरीज नहीं जीती है. रहाणे ने मेलबर्न को मुट्ठी में करके उम्मीदें जगायी हैं, देखना है कि क्या भारतीय टीम का यह नया नायक 34 साल का इतिहास बदलने का माद्दा रखता है.