Girish Malviya
जिस देश के शासन प्रमुख ने कोरोना से इनकार किया या अपने नागरिकों को कोरोना वैक्सीन लगवाने में आनाकानी की, उसकी संदेहास्पद ढंग से मृत्यु हो गयी. और मजे की बात यह है जैसे ही उनकी मृत्यु हुई, उनके बाद शासन की बागडोर संभालने वालों ने इस ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ के सामने घुटने टेक दिए अब वहां टीके लग रहे हैं और सब ठीक है.
सबसे ताजा मामला हैती का है. आज से ठीक एक महीने पहले हैती के राष्ट्रपति, जोवेनेल मोसे की 28 भाड़े के सैनिकों के एक सुव्यवस्थित समूह द्वारा रात में उनके घर में उनके बिस्तर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई.
पश्चिमी गोलार्ध में हैती ही एकमात्र देश था, जिसने कोरोना वैक्सीन प्रोग्राम को लागू करने से इनकार कर दिया था, एस्ट्राजेनका को तो साफ मना कर दिया था. हैती के राष्ट्रपति राष्ट्रपति जोवेनेल मोसे ने वायरस से बचाव के लिए हैती के लोगों से हर्बल ड्रिंक पीने का आग्रह किया था. हैती आश्चर्यजनक रूप से कोरोना के प्रकोप से बचा रह गया. हैती ने उनके समय में कोरोना वायरस को खारिज कर दिया या इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए थे.
लेकिन जैसे ही 7 जुलाई जोवेनल मोसे की हत्या हुई. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने अगले हफ्ते आधा मिलियन वैक्सीन खुराक भेजी. जिन्हें 14 जुलाई को तुरंत पोर्ट औ प्रिंस में पहुंचा दिया गया. अब हैती में टीके लग रहे हैं.
हर्बल ड्रिंक की बात से आपको तंजानिया के राष्ट्रपति मुगफेली की याद आ गयी होगी. ये वही हैं, जिन्होंने देश की केंद्रीय प्रयोगशाला में एक भेड़, बकरी और पपीते के फल के नमूने भेजे थे और उन सब में कोरोना पाया गया था. उन्होंने साफ-साफ कोरोना के अस्तित्व से इनकार कर दिया था. अक्टूबर 2020 में तंजानिया में चुनाव हुए और जॉन मागूफुली ने 83 प्रतिशत वोट हासिल किये थे. यानी वे फिर सत्ता में आ गये थे. लेकिन फरवरी 2021 को वे गायब हुए और मार्च में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. उनकी मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया. उनके बाद जो राष्ट्रपति बनी वह एक महिला थी. उन्होंने भी आत्मसमपर्ण कर दिया और अब वहां भी वैक्सीन लगनी शुरू हो गयी है.
लेकिन मौतों का यह सिलसिला तंजानिया से नहीं शुरू हुआ था. यह शुरू बुरुंडी से हुआ था.
पिछले साल जून 2020 में वहां के राष्ट्रपति पियरे नर्कुनज़िज़ा की हार्ट अटैक से अचानक मृत्यु हो गई थी. उन्होंने भी कोरोना को बीमारी मानने से इनकार कर दिया था. बुरुंडी के नए राष्ट्रपति एवरिस्टे नादिशिमी ने जुलाई में घोषणा की कि COVID-19 देश का “सबसे बड़ा दुश्मन” था. लेकिन वह भी कोरोना टीकाकरण के खिलाफ थे. फिर पता चला है कि उन्हें भी आईएमएफ ने कर्ज देकर पटा लिया है. बुरुंडी को महामारी के नतीजे से निपटने में मदद करने के लिए $ 78 मिलियन (65 मिलियन यूरो) के सहायता पैकेज के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमति बन गयी है. स्वास्थ्य मंत्री थद्दी नदिकुमाना ने घोषणा की है कि बुरुंडी विश्व बैंक द्वारा पेश किए गए कोवैक्स टीकों को स्वीकार करेगा. अब वहां भी टीके लगने शुरू हो गए है.
कितने आश्चर्य की बात है कि पूरे विश्व में इन तीन देशों के राष्ट्रपतियों ने ही कोरोना और वैक्सीन प्रोग्राम का विरोध किया था और आज वे जीवित नहीं हैं. लगभग एक साल के भीतर तीनों की संदेहास्पद ढंग से मृत्यु हो गयी.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.