Ranchi: हूल दिवस पर बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने शहीद सिदो-कान्हू को श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने कहा कि सिदो-कान्हू का बलिदान अमर है. यह बलिदान जनजाति समाज की शौर्य गाथा है. अमर शहीद सिदो-कान्हू के नेतृत्व में भोगनाडीह में 20 हज़ार संथाल आदिवासियों को लेकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की शुरुआत हुई थी.लेकिन इतिहास में आदिवासी पुरखों को जितना सम्मान देना चाहिए था उतना सम्मान नहीं मिल पाया.कांग्रेस सरकार ने जनजाति आन्दोलनकारी को कभी सम्मान एवं इतिहास में स्थान देने का काम नहीं किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजाति समाज के शूरवीरों को अलग अलग तरीके से सम्मान देने का काम किया. प्रधानमंत्री लगातार कई ऐसे मंचों से जनजाति नायकों की वीरता का जिक्र करते हैं.
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हेमंत सरकार ने शहीदों को नहीं दिया सम्मान
हेमन्त सरकार पर प्रहार करते हुए बाबूलाल ने कहा कि जिन पूर्वजों को देश एवं समाज ने इतना सम्मान दिया उनके वंशज रामेश्वर मुर्मू का हत्या हो जाना और परिवार एवं आदिवासी समाज ने इस हत्या की सीबीआई जांच की मांग की,तो सरकार में बैठे लोगों ने उनकी बात को अनदेखा कर दिया. रूपा तिर्की हत्याकांड में भी जनजाति समाज ने सीबीआई जांच की मांग की, उसे भी हेमंत सरकार ने इनकार कर दिया उल्टे स्व रूपा के पिता को ही अभियुक्त बना दिया.
सिदो-कान्हू ने अंग्रेजी शासन व्यवस्था के खिलाफ किया संघर्ष- दीपक प्रकाश
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने कहा कि 166 वर्ष पूर्व संथाल आदिवासियों पर अंग्रेज एवं अंग्रेजियत एवं उनके शासन व्यवस्था के खिलाफ सिदो-कान्हू ने संघर्ष किया. उन्होंने कहा कि इतिहास में जाने पर यह प्रतीत होता है कि भारत की आजादी को लेकर हुए सबसे पहले आंदोलन में बाबा तिलका मांझी के बाद झारखंड में सिदो-कान्हू के नेतृत्व में हूल क्रांति को माना जाता है.
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सिदो-कान्हू ने शोषण, दमन के खिलाफ किया था आंदोलन- समीर उरांव
बीजेपी एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा कि 166 वर्ष पहले 1855 में अंग्रेजों ने अपना हुकूमत कायम किया था. उस वक्त अंग्रेज वहां के आदिवासियों के शोषण एवं प्रताड़ना के साथ-साथ सांस्कृतिक व्यवस्था पर भी अतिक्रमण कर रहे थे. उस शोषण, दमन के खिलाफ सिदो-कान्हू, चांद-भैरो,फूलों-झानो के नेतृत्व में हूल आंदोलन की शुरुआत किया गया.