Surjit Singh
तमाम नियमों व मर्यादाओं को तोड़ कर मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून बनाये. राज्यसभा में एक तरह का “लोकतांत्रिक पाप” करके कानून पास कराये. अब वही सरकार उसे एक-डेढ़ साल के लिये टाल देने की बात कर रही है. तो क्या सरकार अब इस मुद्दे पर बैकफुट पर चली गयी है. क्या पहली बार मोदी सरकार ने यह मान लिया है कि गलती हुई है.
लेकिन वह इस गलती को साफ-साफ स्वीकार करने से डर रही है. गलती सुधारने के बजाये इधर-उधर की बातें करके देश और किसानों को उलझा रही है.
सरकार किसानों को कैसे उलझा रही है, ये बात इन तथ्यों से समझें
– पहले सरकार के लोगों को किसान आंदोलन में शामिल लोगों को खालिस्तानी आतंकी बताया गया.
– फिर कहा गया कि विपक्ष किसानों को बरगला रहा है.
फिर सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया कि अगर कानून में खामी है, तो वह कोर्ट जाये.
किसानों ने कोर्ट जाने से इंकार कर दिया, तब सरकार ने किसानों की कुछ मांगें मान ली.
लेकिन किसान तीनों कृषि बिल को वापस करने की मांग पर अड़े रहें.
– इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों की समीक्षा करने और किसानों से बात करने के लिये कमेटी का गठन किया. किसानों ने कमेटी के समक्ष जाने से इंकार कर दिया.
– तब कृषि मंत्री ने एक अजीब सा बयान दिया. कहा: किसान कृषि कानूनों को वापस करने के अलावे कोई और विकल्प दे. सरकार विचार करेगी. लेकिन किसान अपनी मांग पर कायम रहे.
– सरकार यह बताने की कोशिश करती रही कि आंदोलन में सिर्फ दो राज्य पंजाब-हरियाणा के किसान हैं. जबकि किसान आंदोलन का समर्थन केरल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों के किसान भी कर रहे हैं. और दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं.
बहरहाल, सरकार को यह मान लेना चाहिए कि उससे गलती हुई है. गलती मानने में सरकार की “हिचक” उसकी कमजोरी को ही दर्शाता है. बड़प्पन तो बिल्कुल नहीं समझा या माना जायेगा.
कानून को वापस लेने को लेकर सरकार को “हार” जैसा कुछ भी नहीं मानना चाहिए. बल्कि इसे इस तरह लिया जाना चाहिए कि लोकतंत्र में सरकार जनता के लिए होती है. अगर जनता को कानून ठीक नहीं लग रहा है, संदेह है, गलत लग रहा है, तो सरकार ऐसे कानून को वापस लेती है.
यह काम सरकार जितनी जल्दी कर लेगी, फजीहत उतनी ही कम होगी. क्योंकि अब देश के किसानों को ऐसा लगने लगा है कि मोदी सरकार “एक जिद्दी शासक” है. अब तक यह आरोप सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग लगाते थे, पर अब देशभर के किसान भी यही कहने लगेंगे. तब मोदी सरकार और भाजपा को डैमेज कंट्रोल करना भी मुश्किल हो जायेगा.