सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाये गये 1998 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया.
NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को कहा कि सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन (मुकदमा) से छूट नहीं मिलती. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाये गये 1998 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
SC overrules 1998 verdict granting immunity to lawmakers from prosecution for taking bribe to make speech, cast vote in legislature
— Press Trust of India (@PTI_News) March 4, 2024
VIDEO | “A seven-judge bench of the Supreme Court has unanimously said that accepting money to ask questions in Parliament or vote in the Rajya Sabha elections is against the constitutional values. That’s why no immunity would be given (to the Parliamentarians),” says advocate… pic.twitter.com/DYGviH6Oci
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पांच न्यायाशीधों की पीठ ने अभियोजन से छूट दी थी
पांच न्यायाशीधों की पीठ के फैसले के तहत सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट दी गयी थी. सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है. अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों एवं विशेषाधिकारों से संबंधित हैं.
SC ने कहा, हम 1998 में सुनाये गये जस्टिस पीवी नरसिम्हा के फैसले से सहमत नहीं
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पीठ के लिए फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में इन अनुच्छेदों के तहत छूट नहीं है क्योंकि यह सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट करती है. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा कि हम 1998 में सुनाये गये जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं है, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट प्रदान की गयी थी.
मामला तभी बन जाता है, जब कोई सांसद रिश्वत लेता है
जान लें कि 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से फैसला दिया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चल सकता. इस संबंध में सीजेआई चंद्रचूड़ का कहना था कि अगर कोई रिश्वत लेता है तो वह केस बन जाता है. अपनी बात साफ करते हुए कहा कि यह मायने नहीं रखता कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी. मामला तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद रिश्वत लेता है.
विशेषाधिकार का मकसद सदन में भय रहित वातावरण कायम करना है
सीजेआई ने कहा, आर्टिकल 105/194 के तहत मिले विशेषाधिकार का मकसद सदन में (सांसद के लिए) भय रहित वातावरण कायम करना है. कहा कि अगर कोई विधायक राज्यसभा चुनाव में वोट देने के लिए रिश्वत लेता है, तो वह भी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट का सामना करेगा.
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