Surjit Singh
आर्थिक दुनिया में एक खबर तैर रही है. खबर फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के बिकने की हो रही है. यह दावा किया जा रहा है कि आने वाले वक्त में अनाज को संरक्षित रखने वाली और गरीबों तक पहुंचाने वाली इस कॉरपोरेशन को जल्द ही सरकार बेच देगी.
यह चर्चा अनायास ही नहीं हो रही है. इसकी वजह एफसीआइ पर लगातार बढ़ रहा कर्ज और देश के कॉरपोरेट हाउस का एफसीआइ की तर्ज पर बड़े पैमाने पर गोदाम बनाने की वजह से हो रही है.
एफसीआइ की स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी. तब से लेकर वर्ष 2014 तक (करीब 50 साल में) एफसीआइ पर 91,409 करोड़ रुपये कर्ज था. वर्ष 2014 से वर्ष 2020 तक यह कर्ज बढ़ कर 3.5 लाख करोड़ हो गया है. मतलब छह सालों में कर्ज करीब 382 प्रतिशत बढ़ा है.
यहां गौर करने वाली बात यह है कि एफसीआइ को किसी तरह की आय नहीं होती. एफसीआइ सिर्फ एक सरकारी सब्सिडी का माध्यम है. जिसका काम फूड स्टोरेज और पीडीएस डीलर के जरिये गरीबों तक अनाज पहुंचाना है. मोदी सरकार में एफसीआइ से कहा गया कि एफसीआइ कर्ज लेकर खर्चा उठाये. 100 प्रतिशत कर्ज की गारंटी सरकार देगी. जिसके बाद एफसीआइ पर कर्ज बढ़ता चला गया.
आज की तारीख में स्थिति यह है कि FCI पूरी तरह फाइनेंसियली कमजोर हो चुका है. इसकी स्थिति BSNL, MTNL, ONGC जैसी हो गयी है. जिन्हें बेचने की तैयारी शुरु करने की खबरें आती रहती हैं.
अब एफसीआइ के बारे में यह भी जान लें. FCI पर जितना कर्ज है, उससे 3 गुना कीमत की जमीन FCI के पास है. यानी सोने की खान है. जब कोई भी उद्योगपति इसे खरीदेगा, तो सरकार यह तर्क देगी कि कर्ज भी चुकायेगा. इसे हम स्वीकार भी कर लेंगे. पर इस बात पर कोई गौर नहीं करेगा कि जब कर्ज की 100 प्रतिशत गारंटी सरकार दे रही है, तो खरीदने वाले उद्योगपति को सौंपने से पहले उसके कर्ज को सरकार चुका देगी.
अब यह बताने की जरुरत नहीं है कि वह कौन उद्योगपति है, जो पिछले दो-तीन सालों से देशभर में एफसीआइ की तरह बड़े-बड़े गोदाम बना रहा है. किसानों ने भी तो देश को यह बता ही दिया है कि मोदी सरकार सिर्फ दो उद्योगपति के लिए ही काम कर रही है.