Girish Malviya
वैसे इन शर्मशार करने वाली रिपोर्टों से न तो देश के लोग परेशान होते हैं और ना ही सरकार चिंतित होती है. क्योंकि देश की खराब हालात बयां करने वाली रिपोर्ट पर चर्चा करने वाला अब गुमराह करने वाला साबित कर दिया जाता है. फिर भी लोगों को कल ही आयी UNDP (United Nation Development programe) की रिपोर्ट के बारे में जानना जरुरी है. जिसमें कहा गया है कि भारत इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स यानी मानव विकास सूचकांक में एक पायदान नीचे फिसल गया है.
189 देशों की लिस्ट में भारत 130वीं रैंक से फिसलकर 131वीं रैंक पर पहुंच गया है. युनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की ओर से जो रिपोर्ट जारी की गयी है. उसके अनुसार भारत की मौजूदा रैंकिंग 131 है.
कुछ महीने पहले ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट सामने आयी थी. इस सूचकांक में भी दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान को छोड़कर बाकी सभी देश भारत से ऊपर के पायदान पर बताये गये थे. हंगर इंडेक्स में भारत 94वें स्थान पर आया था, जबकि अफगानिस्तान का दर्जा 97वां रहा.
आस-पास के बाकी देशों में पाकिस्तान 88वें, म्यांमार 78वें, बांग्लादेश 75वें, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर थे. गनीमत रही कि मानव विकास सूचकांक में भारत की स्थिति बांग्लादेश, पाकिस्तान से अभी बेहतर है.
आप यदि UN की वर्ष 2014 की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट पर गौर करे तो पायेंगे कि तब भी भारत 131वें पायदान पर ही था. वर्ष 2015 और वर्ष 2016 में भी वह 131वें नंबर पर ही रहा. वर्ष 2018 में भारत 129 वें स्थान पर आया. इसके बाद वर्ष 2019 में वह 130 वें स्थान पर रहा. लेकिन इस साल वह वापस पीछे खिसककर 131वें नंबर पर पहुंच गया.
यानी मोदी राज में हम नौ दिन में अढ़ाई कोस भी नहीं चले. 6 सालो में हमने कोई प्रगति हासिल नहीं की है अब यह कैसे हुआ यह देखना दिलचस्प है.
दरअसल ‘मानव विकास सूचकांक’ हमें यह बताता है कि किसी देश में लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा की पहुंच कितनी है, उनका जीवन स्तर कैसा है. पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब अल हक ने ‘मानव विकास सूचकांक’ इजाद किया था. यह इंडेक्स नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डा. अमर्त्य सेन की मानवीय क्षमता की अवधारणा पर आधारित है.
सेन का मानना था कि क्या लोग अपने जीवन में बुनियादी चीजों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित जीवन स्तर पाने में सक्षम हैं. मानव विकास सूचकांक भी इन्हीं बिन्दुओं पर आधारित है. इसके तीन प्रमुख बिंदु हैं, जिसके आधार पर इस इंडेक्स का निर्माण किया जाता है.
पहला है जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, दूसरा है संभावित स्कूली शिक्षा या मीन ईयर्स ऑफ स्कूलिंग, तीसरा ओर अंतिम महत्वपूर्ण बिंदु है, पीपीपी आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय.
UNDP की यह रिपोर्ट कहती है कि क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर वर्ष 2018 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2019 में गिरकर 6,681 डॉलर हो गयी. दरअसल यही बड़ा कारण है भारत के पिछड़ने का! मोदी सरकार के समर्थक कह सकते हैं कि यह ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स एक पाकिस्तानी अर्थशास्त्री ने बनायी थी, इसलिए हम इस इंडेक्स को नहीं मानते.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.