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ओपिनियन

बिहार में हिलोर बा, प्रशांते किशोर बा

सबकी तमन्नाएं हैं, गलतफहमियां भी हैं. चाहे इधर चिराग हों या उधर के सहनी. सीट बंटवारे की पहले सुलझ भी गयी तो टिकट बंटवारे का बखेड़ा खड़ा होगा. जिसे टिकट नहीं मिलेगा, उसकी भुजाएं फड़केंगी, सुसुप्त पराक्रम अंगड़ाई लेगा. नहीं दलीय तो निर्दलीय ही सही, लेकिन बेटिकट करने वालों को उनकी औकात दिखानी ही पड़ेगी.

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त्वरित टिप्पणी : दलित सीजेआई पर ‘सनातनी’ जूता!

चीफ जस्टिस बीआर गवई न सिर्फ जन्मना दलित हैं, बल्कि उस बाबा साहेब अंबेडकर को आदर्श मानते हैं (इस बात को उन्होंने छिपाया भी नहीं है), जिन्होंने इस जमात के पवित्र ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ के पन्नों को सार्वजनिक रूप से जलाया था और मृत्यु के कुछ समय पहले एक बड़े समारोह में अपने हजारों समर्थकों के साथ हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था!

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गांधीवादी सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी की अनसुलझी गांठ

जब ज्वालामुखी फट जाता है और आग का दरिया तांडव मचाने बहने लगती है, तो उसके बाद हाय हाय करते हुए हम लकीर पीटने लगते हैं. जब बादल फटता है, भयंकर नुकसान कर देता है, तो अपनी गलतियों को छिपाने के लिए पर्यावरण पर दोष मढ़ने लगते हैं.

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’वंदे मातरम’ एक ‘हथियार’ भी है!

इनके पास धार्मिक/सांप्रदायिक गोलबंदी, या कहें, ‘हिंदुओं का खून खौलने’ के लिए मुद्दों और तरीकों की कमी नहीं है. ये इनका प्रयोग लगातार करते रहते हैं. अब एक ऐसा ही पुराना मुद्दा नये रूप में लाया गया है. ‘वंदे मातरम’ गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर देशव्यापी समारोह! शायद याद हो, कुछ वर्ष पहले ये जोर जोर से ‘‘भारत में यदि रहना है, तो ‘वंदे मातरम’ गाना होगा” चिल्लाते थे. किसी के इनकार करने पर मारपीट और अपमानित करने की घटनाएं भी हुईं! ये क्यों और किनसे जबरन यह गीत गवाना चाहते हैं, यह रहस्य नहीं है.

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विनय सिंह के प्रति नरमी की वजह क्या थी? अब तक सुस्त क्यों थी ACB?

हजारीबाग जिला में गैर मजरुआ खास किस्म जंगल (प्रकृति की जमीन यानी डीम्ड श्रेणी का भूखंड) की दाखिल-खारिज पत्नी के नाम पर कराया. यह घोटाला तब किया गया, जब विनय चौबे हजारीबाग के डीसी थे.

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कुशल कूटनीति से निकलेगा 'अमेरिकी समस्या' का हल

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 वर्ष के हो गए. कहा जाता है कि उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है, इंसान उतना ही परिपक्व होता है. अतः हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री दीर्घायु हों, क्योंकि वह व्यक्ति विशेष के नहीं, दल के ही नहीं, हमारे 140 करोड़ से भी अधिक भारतीय के संरक्षक हैं, हमारे देश के गौरव हैं.

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बिहारः दंगल से पहले अखाड़ियों की वर्जिश

दशहरे के बाद जब चुनाव की घोषणा होगी, तो गठबंधन आधार ले लेंगे, सीटें बंट जायेंगे, उम्मीदवारी तय होने लगेगी और जनसभाएं, रैलियां शुरु हो जायेंगे, तब तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगेगी. यह चुनाव देखने और समझने लायक होगा. इसलिए चुनावों में दिलचस्पी लेने वाले विश्लेषक और राजनीतिज्ञों को इस बार का बिहार चुनाव बहुत कुछ सिखा देगा.

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हे भगवान- ऐसे मित्र व ऐसी मित्रता किसी को ना मिले

एक तरह से अमेरिका में रह रहे और जाने वाले प्रोफेशनल्स को घुसपैठिया कह दिया गया. घुसपैठिया किसे कहते हैं, यह तो आप सब जानते ही हैं. ऐसे ही मित्रों और ऐसी ही मित्रता को देखते हुए कहा गया है- हे भगवान- ऐसे मित्र व ऐसी मित्रता किसी को ना मिले. बाकी गर्व करते रहिये. डंका तो बज ही रहा है.

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DGP कार्यालय ने गिरफ्तार क्यों नहीं कराया वांटेड राजेश राम को! रंजीत क्यों मांग रहा था ओड़िसा के कारोबारी का नंबर!

वांटेड राजेश राम पुलिस मुख्यालय के जिस अफसर से भी मिलता था, उसने उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कराया? क्या ऐसा नहीं करके उस अफसर ने कर्तव्य के प्रति लापरवाही नहीं बरती? क्या उसे गिरफ्तार नहीं कराना विभागीय कार्यवाही और सीआरपीसी की धाराओं के उल्लंघन का नहीं बनता है?

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अंधी सुरंग में कसमसाता नेपाल

नेपाल में सुशीला कार्की ने सत्ता संभाल ली है. उन्होंने अपनी कैबिनेट में तीन लोगों को शामिल कर लिया है. ओमप्रकाश अरियाल को गृह मंत्री के साथ-साथ कानून मंत्री बनाया है. रामप्रसाद खनाल वित्त और कुलभान घिसिंग उर्जा विभाग देख रहे हैं. लेकिन नेपाल की ओली सरकार गिरानेवाले युवाओं (जैन-जी) के एक समूह ने गृह मंत्री अरियाल के विरुद्ध हल्ला बोल दिया है. इस समूह के नेता सुदन गुरुंग ने न केवल अरियाल को हटाने के लिए पीएम आवास पर प्रदर्शन किया, बल्कि कहा कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गयी तो कार्की को वहीं भेज दिया जायेगा जहां से लाया गया है.

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शैक्षणिक डिग्री निजी और गोपनीय!

हालांकि यह खबर अब बासी हो चुकी है, लेकिन यह फैसला कुछ जमा नहीं!  लगता नहीं कि डिग्री का यह भूत आसानी से मोदी जी का पीछा छोड़ेगा. वैसे भी यह हाईकोर्ट का फैसला है, सुप्रीम कोर्ट में पलट भी सकता है. कायदे से पलटना ही चाहिए!

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इथेनॉल मिलावटखोरी और मुनाफाखोरी राष्ट्रीय उद्यम है

लूटतंत्र लंबा चले, इसलिए रेलवे को मारकर, बीमार करके, लोगों को हाइवे पर चलाने बनाने का काम भी जोरों पर है. हाइवे ठेकों का क्या गणित है, उस पर फिर कभी बात करेंगे. एक दौर में समाजवादी मूर्ख सरकारें मुनाफाखोर और मिलावटखोर पर छापे मारती थी, उन्हें जेल भेजती थी. तंग आकर उन लोगों ने एक पार्टी बनाई, 40 रुपये में तेल देने का सपना दिखाकर सत्ता में आये और अब मिलावटखोरी और मुनाफाखोरी राष्ट्रीय उद्यम है.

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ईज ऑफ डूइंग बिजनेस या ईज ऑफ डूइंग पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा

जब कॉरपोरेट कंपनियां किसी नेता की ब्रांडिंग करने लगती है, तो सत्ता और पूंजी के बीच पारस्परिक लाभ का संदेह गहराता है. सरकार की नीतियों का उद्देश्य सुधार से कहीं अधिक राजनीतिक ब्रांडिंग तो नहीं है. हालात यह है कि भारत की बड़ी कंपनियां विज्ञापनों की वजह से "पीएम ब्रांडिंग एजेंसी" बनी गई है. जब टूथपेस्ट से लेकर कार तक के विज्ञापन में "मोदी जी का तोहफा आपके घर तक" लिखा जाने लगा है. ऐसा लगने लगा है कि जीएसटी में छूट ने कॉरपोरेट कंपनियों को चाटुकारिता का नया मौका दे दिया है.

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'काली दाल' की जांच कराने से क्यों हिचक रही सरकार

देश के राष्ट्रीय चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) का निर्णय लिया, जिसकी शुरुआत बिहार से की गई. कारण था कि कुछ महीने बाद वहां विधानसभा का चुनाव होने वाला है. चूंकि इसमें कोई ऐसी विशेष बात नहीं थी, इसलिए किसी को इसमें कुछ आपत्तिजनक भी नहीं लगा था.

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मीडिया को लेकर नेपाल से जो वीडियोज आ रहे हैं, गलत है, पर जिम्मेदार हम ही हैं

मीडियाकर्मियों से बदसलूकी, मारपीट, सरकारी सिस्टम का इस्तेमाल कर जेल भेजने की घटनाएं भारत में भी कम नहीं होती. पर, नेपाल जैसी शायद नहीं. इन हालातों के लिए जिम्मेदार कौन हैं. मुझे यह मानने में कतई झिझक नहीं है कि इसके लिए जिम्मेदार हम पत्रकार और मीडिया संस्थान के मालिकान व प्रबंधन ही हैं.

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