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बच्चों को कुपोषण से बचाएं : अमेरिकी वैज्ञानिकों का रिसर्च

Nishikant Thakur

 

पौधे की नियमित देखभाल करते हैं, ताकि वह जल्द बड़ा हो,  हरा-भरा रहे,  इसलिए जड़ में खाद-पानी डालना पड़ता है. यह उस की परवाह करना कहा जाता है. यदि आप उसकी परवाह करते हैं तो निश्चित रूप से पौधा हरा रहेगा और अपनी हरियाली से अपनी खुशबू से तथा यदि फलदार है तो जब अपने स्वरूप में आएगा आपको आंतरिक खुशी होगी. पौधे की हरियाली, उसकी खुशबू, उसके फल आपकों उत्साह से भर देगा और उसका और भी ख्याल रखेंगे.  


जड़ में खाद-पानी आपने दिया, इसलिए उन फूलों की खुशबू, उसके फल खाकर निहाल होते रहेंगे . यही हाल गर्भ में आए शिशुओं का होता है. यदि गर्भकाल से ही ख्याल रखा जाए, उचित परामर्श विशेषज्ञों से लिया जाए  तो जन्मकाल से ही शिशु स्वास्थ्य होगा, निरोग रहेगा. आगे चलकर उसका मस्तिष्क विकसित होता रहेगा. लेकिन, यदि गर्भ से ही शिशु का ख्याल नहीं रखा जाएगा तो जन्म लेते ही वह कई रोगों से ग्रस्त हो जाएगा, फिर आप अपनी कमी नहीं बताएंगे बल्कि ईश्वर को कोसते रहेंगे  कि उनके साथ  ऐसा  क्यों हुआ ?

 

स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के लिए मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के चेयरमैन तथा पद्मविभूषण से सम्मानित डॉ. पुरुषोत्तम लाल से बातचीत की. उन्होंने बताया कि गर्भस्थ माताओं के खानपान का पूरा असर बच्चों पर होता है.  माता के जीवन स्तर का भी पूरा असर आने वाले बच्चों पर होता है. गलत खानपान, असामान्य स्थानों पर रहकर बीड़ी-सिगरेट, शराब जैसी आदतों का सेवन करना भी गर्भस्थ शिशु के जन्म  के बाद  असर डालता है.  यदि गर्भस्थ माताएं गलती या जानबूझकर गलत दावा का सेवन करती हैं तो इसका भी असर जन्म लेने वाले शिशु पर पड़ता है. कुछ तो जिसे हम जन्मजात कहते हैं वह माता-पिता के माध्यम से ही शिशु पर असर करता है.  


दोस्त नहीं बनाना,एकांगी सोच रखना, दिनभर बैठकर टेलीविजन देखना, ए-आई का लत पड़ जाना  तथा सामाजिक संबंधों से अपने को अलग रखना भी कुपोषण के शिकार हो जाते हैं. रही गर्मी में रहने के कारण मस्तिष्क के कमजोर होना तो यह भारतीय परिवेश में आदिकाल से होता आया है. इसलिए जब तक देश की शिक्षा का स्तर नहीं सुधरता देश सुशिक्षित नहीं होता इस तरह की परेशानियों और रोगों से देश पीड़ित होता रहेगा.विश्व के कई संस्थानों द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर शोध किए जाते रहे हैं और परिणाम यह हुआ है बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार देखने को मिला है. अब उस तरह से बच्चे काल के गाल में नहीं समा पाते जो पिछले सदियों होते रहते थे.

 

विश्व के कई शोध संस्थानों ने इसे सिद्ध कर दिया है, यदि बच्चे के गर्भ में आने पर ही माता-पिता गर्भस्थ शिशु का विशेषज्ञों के माध्यम से ख्याल रखने लगे तो बच्चों के अकाल मृत्यु के जो कारण बनते हैं उसमें कमी आती है, आगे भी स्वास्थ्य बच्चों का जन्म होगा. अभी अमेरिका के आईनियस ऑक्सफोर्ड (आईओआई) ने एक शोध में पाया है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध का पांच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चों में खतरा बढ़ सकता है. जिसमें कहा गया है कि पांच वर्ष से कम आयु के गंभीर कुपोषित बच्चों में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी बैक्रेटिक विकसित होने का खतरा काफी बढ़ सकता है. अब यह समझने का प्रयास करते हैं कि यह कुपोषण क्या है - कुपोषण का तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा ऊर्जा या पोषक तत्वों का अधितम या असंतुलित होना है. 

 


कुपोषण को थोड़ा और जाने तो कुपोषण, यानि शरीर को पर्याप्त पोषण न मिलना कई कारणों में एक हो सकते हैं. जिनके मुख्य कारण गरीबी,  अज्ञानता, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और भोजन की कमी शामिल हैं. इसके अतिरिक्त कुछ चिकित्सकीय और मानसिक अस्वस्थता कुपोषण के कारण हो सकते हैं.कुपोषण एक वैश्विक समस्या है. विकसित और विकासशील दोनों देशों में गरीबी, पोषण इसके प्रमुख कारण है. हम दुनियाभर में बेहतर शिक्षा और वंचितों के लिए समर्थन, जिनमें स्वच्छ जल पौष्टिक संपूर्ण खाद्य पदार्थ और दवाइयां उपलब्ध कराना संभव है. कुपोषण की कमी आम है, यह दुनियाभर में बीमारी विकलांगता और मृत्यु का एक बड़ा कारण भी है. 

 


कुपोषण से शिक्षा, बुनियादी ढांचे और नीतिगत उपायों सहित कई मोर्चों पर लड़ने की आवश्यकता है. घर पर संतुलित आहार खा कर कुपोषण को रोकने में मदद कर सकते हैं. भारतीय परिपेक्ष्य में देखें तो प्रारंभिक स्तर पर जिस खान पान और स्वच्छ जल की बात शोधकर्ता करते हैं क्या यह भारतीय समाज  के लिए संभव है? यदि है तो कैसे? इसपर यदि नजर डालें तो क्या ऐसा खान पान इस देश में संभव है, जहां अस्सी करोड़ लोग मुफ्त की राशन योजना के तहत लाइन में लगे रहते हैं? शोधकर्ताओं का कहना है कि पर्याप्त पोषण प्रदान करें. विशेषज्ञ प्रोटीन, कैलोरीज और आवश्यक विटामिन जो खनिजों से भरपूर हो. अगर आपको पर्याप्त आहार नहीं मिलता है तो आप कुपोषण के शिकार हो सकते हैं. कुपोषण में मांसपेशियों का क्षय दिखाई दे सकता है, लेकिन इसे देखा भी नहीं जा सकता है और कुपोषण के शिकार हो सकते हैं.

 

 

इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के साउथ बेल्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ने अध्ययन के बाद कहा कि बच्चों के सीखने की क्षमता अधिक गर्मी से प्रभावित होता है. इस शोधकर्ता ने भारत को शामिल करते हुए  कुल 61 देशों के लगभग 14.5 मिलियन छात्रों से संबंधित सात पूर्व प्रकाशित अध्ययनों के डाटा की समीक्षा की है . शोधकर्ता के अध्ययन में बताया गया हैं कि लंबे समय तक गर्मी के संपर्क मे रहने से बच्चों के संज्ञानात्मक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.शोधकर्ता लव वर्ष्णेय ने कहा है कि ज्यादा तापमान से दिमाग और खून के बीच अवरोध टूट जाता है और दिमाग में अवांछनीय प्रोटीन और आयन जमा होने लगते हैं, लिहाजा दिमाग में सूजन और उनके सामान्य कार्यों में बाधा आने लगती है और मस्तिष्क कोशिकाएं मरने लगती है .

 

इतना ही नहीं शरीर को नियंत्रित करने वाला दिमागी हिस्सा भी प्रभावित होता है जो पसीने के माध्यम से शरीर का तापमान नियंत्रित करता है. भारत का तापमान जो लगभग अनियंत्रित है और अत्यधिक तापमान वाला देश है उसे कैसे नियंत्रित किया जाए ?उपाय के रूप जो परिवार आर्थिक रूप से कुछ संपन्न है वह तो अपने बच्चों को विदेश भेज देते हैं, लेकिन भारत की झोपड़ियों में रहने वाले अथवा सुदूर गांव रहने वाले क्या कर सकते हैं. सच तो यह है कि इस प्रकार के परिवार के गरीब बच्चे अपने देश में अशिक्षित रह जाते हैं और उनकी आबादी बढ़ती जाती है और उनका पूरा परिवार गरीबी रेखा के नीचे रह जाता है .

 

यह अस्सी करोड़ लोगों की सच्चाई होती है . जब तक देश का प्रत्येक वर्ग शिक्षित नहीं होगा यह देश गरीबी से जूझता हुआ पिछड़ता ही जाएगा. विश्व के परिवेश अथवा भारत के भी शोधकर्ता इस बात को जानते हैं, लेकिन उनका काम यहीं खत्म हो जाता है. अब सरकार का ही यह कर्तव्य होता है कि ऐसे समाज को किस तरह संपन्न कराया जाए ताकि समाज का हर व्यक्ति अपने दो जून का तथा अपने परिवार और बच्चों को स्वास्थ्य जीवन और शिक्षित कराने में सक्षम हो सके. जो स्थिती आज देश की बनी हुई है उसमें तो ऐसा लगता है कि बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षित समाज का निर्माण करने में अभी वर्षों लग सकता है . ऐसा इसलिए कि जनता सरकार की उम्मीद पर ही और भरोसे पर निर्भर रहतीं है; क्योंकि उसका विश्वास होता है कि सरकार ही इस गरीबी, अशिक्षा को दूर कर सकती है .

 

डिस्क्लेमर :  लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

 

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