बात ज्यादा पुरानी नहीं है. नितिन गडकरी केंद्र सरकार में सड़क व परिवहन मंत्री तब भी थे, अब भी वही हैं. इनका काम है सड़कें बनाना, सड़कों को ठीक करना. वाहनों का निर्माण वाली कंपनियां उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. प्रदूषण के मामले के लिए अलग मंत्रालय है.
पेट्रोल-डीजल का काम पेट्रोलियम मंत्रालय देखता है. लेकिन कुछ साल पहले वाहन और प्रदूषण की चिंता नितिन गडकरी करते दिखे. सार्वजनिक सभाओं में. चर्चाओं में और सरकार ने पेट्रोल डीजल में 20 प्रतिशत इथनॉल मिलाने का फैसला लिया.
गडकरी के सार्वजनिक बयान कुछ ऐसे थे- सस्ते तेल मिलेंगे. प्रदूषण कम होगा. इथनॉल के कारण देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी.
सवाल यह है कि क्या किसी को सस्ता पेट्रोल-डीजल मिला, प्रदूषण भी कम नहीं हुआ. तेल कंपनियों को कितने लाख करोड़ डॉलर की बचत हुई, वह सरकार को पता होगा. पर आम लोगों को इस बचत का कोई फायदा बिल्कुल नहीं मिला.
बड़ा सवाल यह है कि जिस नितिन गडकरी को सड़क की परवाह करनी चाहिए थी, वह उद्योग व पेट्रोलियम मंत्रालय की परवाह क्यों कर रहे थे.
गडकरी के बेटे की कंपनी पूर्ति पावर एंड शुगर, जिसकी वैल्यू करीब 500 करोड़ थी, उस कंपनी का शेयर रॉकेट की तरह बढ़ा. कंपनी का शेयर प्राइस दोगुना हो गया. कंपनी की वैल्यू करीब 1100 करोड़ की हो गई.
यह बात भी सही है कि इथनॉल बनाने वाली दूसरी कंपनियों को भी बड़ा फायदा हुआ. तेल कंपनियों को भी लाखों करोड़ का फायदा हुआ. लेकिन आम लोगों को क्या मिला. भारी नुकसान और झुंझलाहट.
अब यह रिपोर्ट सबके सामने है कि पेट्रोल-डीजल में इथनॉल मिलने की वजह से वाहनों की प्रति लीटर चलने की क्षमता में करीब 10 प्रतिशत की कमी आ गई. सरकार ने भी यह बात मान ली है.
यानी अगर आपकी कार पेट्रोल-डीजल से 15-20 किमी प्रति लीटर का एवरेज देती थी, तो इथनॉल मिले तेल की वजह से 13-18 किमी प्रति लीटर की एवरेज माईलेज देने लगी है. इंजनों का नुकसान हुआ है सो अलग.
एक अनुमान के मुताबिक करीब 6000 करोड़ रुपये का नुकसान इंजनों की मरम्मती की वजह से इंश्योरेंस कंपनियों व आम लोगों को हुआ है.
गडकरी के इस तथाकथित प्रगतिशील विचारों व प्रयासों से जो सबका नुकसान हुआ है, उसके लिए जिम्मेदार कौन-कौन है. आम लोगों व उनके वाहनों का नुकसान हुआ है, यह बात तो मोदी सरकार ने मान ली है.
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह पूरा मामला भ्रष्टाचार का है या नहीं, इसकी कभी जांच होगी. ताकि पता चल सके किस-किस को कितने का फायदा हुआ. क्या गडकरी कभी इस बात पर अफसोस जाहिर करेंगे कि उनकी इस प्रगतिशील सोंच की वजह से देश को कितना नुकसान हो गया.
नितिन गडकरी के मामले में एक और बात समझ लें, देश में ऐसा पहली बार हुआ है, जब परिवहन मंत्रालय के तहत काम करने वाली एनएचआई घाटे में चली गई है. घाटे इतने हो चुके हैं कि केंद्र की सरकार ने इनके मंत्रालय को बैंकों से लोन लेने पर रोक लगा दी थी.
इन्होंने सरकार की संपत्ति (सड़क) को बेचना शुरु किया, तब जाकर कर्ज में थोड़ी कमी आयी है. इनका मंत्रालय टोल टैक्स तो खूब वसूल रहा है, लेकिन देश में हाईवे की मरम्मती पर आंखे बंद कर ली है. लिहाजा हाईवे पर गड्ढे नजर आने लगे हैं. विश्वास ना हो तो कभी रांची-टाटा फोरलेन पर गुजर करके देखिये.
गडकरी किस तरह हवा में बातें करते हैं, इसका अंदाजा वर्ष 2016 की एक घटना से पता चलता है. वह रांची में हिंदी दैनिक प्रभात खबर के कार्यालय आये थे. पत्रकारों से लंबी बात की थी.
तब हमने इनसे यह सवाल किया था कि रांची से रामगढ़ (28 किमी) जाने वाले वाहन चालक को भी 80 किमी का टोल क्यों देना पड़ता है, यह गलत है.
तब इन्होंने दावा किया था कि अगले छह माह में ऐसी व्यवस्था लाएंगे, जिसमें आप जितने किमी चलेंगे, उतने का ही टोल टैक्स लगेगा. आज 9 साल बीतने के बाद भी वह ऐसी व्यवस्था लागू नहीं कर पाये हैं.
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